Book Title: Gita Darshan Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 421
________________ OM वर्ण व्यवस्था की वैज्ञानिक पुनर्स्थापना - Am शूद्र हो जाता है। बहाने खोजकर शूद्र हो जाता है। अगर वह ब्राह्मण के पैर दबाने से ब्रह्म कैसे मिल जाएगा! शूद्र की कल्पना के बाहर के घर में पैदा हो जाए, तो वह कहेगा कि नहीं, ब्रह्म की खोज से है कि आंख बंद करके शून्य में उतर जाने से ब्रह्म कैसे मिल क्या होगा? मैं तो कोढ़ी की सेवा करूंगा! वह कहेगा, ध्यान-व्यान | जाएगा! क्षत्रिय की कल्पना के बाहर है कि बिना लड़े जब कुछ भी से कुछ भी नहीं होगा। धर्म यानी सर्विस, सेवा! नहीं मिलता, तो ब्रह्म कैसे मिल जाएगा! वैश्य की कल्पना के बाहर __ अगर इस मुल्क के धर्मों में हम खोज करने जाएं, तो इस मुल्क है कि जब धन के बिना कुछ भी नहीं मिलता, तो धर्म कैसे मिल का धर्म मौलिक रूप से ब्राह्मणों ने निर्मित किया। इसलिए इस जाएगा! वैश्य अगर पहुंचेगा भी धर्म के पास, तो धन से ही मुल्क के धर्म में सेवा नहीं आ सकी, सर्विस का कंसेप्ट नहीं आया। पहुंचेगा। ये टाइप हैं। और जब मैं यह कह रहा हूं कि व्यक्तियों के इस मुल्क के धर्म ने सेवा की बात ही नहीं की कभी, क्योंकि वह टाइप का सवाल है...। मौलिक रूप से ब्राह्मण ने उसको निर्मित किया था। वह एक वर्ण वर्ण की धारणा समाज के बीच नीच-ऊंच का प्रश्न नहीं है। वर्ण के द्वारा निर्मित था, उसकी दृष्टि उसमें प्रवेश कर गई। की धारणा समाज के बीच व्यक्ति वैभिन्य का प्रश्न है। और इसलिए __इसलिए पहली दफे जब क्रिश्चिएनिटी से हिंदू और जैन और दुनिया में चार तरह के लोग सदा रहेंगे और चार तरह के धर्मों की बौद्धों की टक्कर आई, तो बहुत मुश्किल में पड़ गए वे। क्योंकि धारणा सदा रहेगी। हां, इन चार से मिल-जुलकर भी बहुत-सी क्रिश्चिएनिटी जिस घर से आई थी, जीसस एक बढ़ई के बेटे थे। वे धारणाएं बन जाएंगी, लेकिन वे मिश्रित होंगी। लेकिन चार शुद्ध स्वर एक शूद्र परिवार से आते हैं। जन्म उनका एक घुड़साल में होता है। धर्मों के सदा पृथ्वी पर रहेंगे, जब तक आदमी के पास आत्मा है। जिंदगी के जो उनके बचपन का काल है, वह बिलकुल ही समाज और वह समाज स्वस्थ समाज होगा, जो इस भेद को इनकार न का जो चौथा वर्ग है, उसके बीच व्यतीत हुआ है। इसलिए जीसस करे-क्योंकि इनकार करने से नियम नहीं मिटता, सिर्फ समाज को ने जब धर्म निर्मित किया, तो उस धर्म में सर्विस मौलिक तत्व बना। नुकसान होता है जो इस भेद को स्वीकार कर ले।। इसलिए सारी दुनिया में ईसाई के लिए सेवा धर्म का श्रेष्ठतम रूप है।। अब उलटी हालतें होती हैं न! अगर रामकृष्ण मिशन में कोई ध्यान नहीं, मेडिटेशन नहीं, सर्विस! ब्रह्म का चिंतन नहीं, पड़ोसी की | | आदमी संन्यासी हो जाए, तो वे उससे कहेंगे, सेवा करो। वह टाइप सेवा! और इसलिए ईसाइयत ने सारी दुनिया में जो ब्राह्मण से उत्पन्न अगर ब्राह्मण का है, तो मुश्किल में पड़ जाएगा। उसकी कल्पना धर्म थे, उन सबको कंडेम्ड कर दिया। के बाहर होगा, कैसी सेवा! सेवा से क्या होगा? लेकिन अगर कोई बुद्ध और महावीर पैदा तो हुए क्षत्रिय घरों में, लेकिन उनके पास सेवाभावी व्यक्ति बुद्ध का अनापानसती योग साधने लगे-कि बुद्धि ब्राह्मण की थी। और यह भी जानकर आपको हैरानी होगी कि सिर्फ श्वास पर ध्यान करो तो वह सेवाभावी व्यक्ति कहेगा, यह महावीर क्षत्रिय घर से आए, लेकिन महावीर का जो धर्म निर्मित क्या पागलपन है! नानसेंस। श्वास पर ध्यान करने से क्या होगा? किया, वह जिन गणधरों ने किया, वे ग्यारह के ग्यारह ब्राह्मण थे। कुछ करके दिखाओ! लोग गरीब हैं, लोग भूखे हैं, लोग बीमार हैं। महावीर ने जो बातें कहीं, उनको जिन्होंने संगृहीत किया, वे ग्यारह उनकी सेवा करो। ही ब्राह्मण थे। महावीर के ग्यारह जो बड़े शिष्य हैं-ग्यारह बड़े ये व्यक्तियों के भेद हैं। और अगर इन भेदों को हम वैज्ञानिक शिष्य, जिन्होंने महावीर के सारे धर्मशास्त्र निर्मित किए–वे ग्यारह | | रूप से साफ-साफ न समझ लें, तो बड़ी कठिनाई होती है। लेकिन के ग्यारह ब्राह्मण थे। इसलिए कोई उपाय न था कि हिंदुस्तान का | | हमारा युग भेद को तोड़ रहा है, कई तरह से तोड़ रहा है। जैसे कोई भी धर्म सेवा पर जोर दे सके। उदाहरण के लिए आपको कहूं। स्त्री और पुरुष का बायोलाजिकल हां, विवेकानंद ने जोर दिया, क्योंकि विवेकानंद शूद्र परिवार से | | भेद है, ब्राह्मण और क्षत्रिय का साइकोलाजिकल भेद है। शूद्र और आते हैं, कायस्थ हैं। इसलिए विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन को | वैश्य का मनोवैज्ञानिक भेद है, स्त्री और पुरुष का जैविक भेद है। ठीक क्रिश्चियन मिशनरी के ढंग पर निर्मित किया। हिंदुस्तान में | लेकिन हमने भेद तोड़ने का तय कर रखा है। हम भेद को इनकार सेवा के शब्द को लाने वाला आदमी विवेकानंद है। फिर गांधी ने | करने को उत्सुक हैं। तो हमने पहले वर्णों को तोड़ने की कोशिश जोर दिया। की सारी दुनिया में। एक तो सारी दुनिया में वर्ण बहुत स्पष्ट नहीं यह टाइप की बात है। ब्राह्मण की कल्पना के बाहर है कि शूद्र थे, सिर्फ इसी मुल्क में थे। हमने उनको तोड़ने की कोशिश की। 391

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