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गीता दर्शन भाग-1 AM
दो क्यारियों में बीज बोए। एक-से बीज. एक-सी खाद. एक-सी किसी के पास जाते हैं. तो लगता है कि आलिंगन भर लें. कोई जैसे क्यारी, एक-सा सूरज का रुख। लेकिन एक क्यारी के ऊपर उन्होंने पास बुलाता है; कोई चीज खींचती है, अट्रैक्ट करती है। पॉप म्यूजिक बजाया। पॉप म्यूजिक, जो आज सारी दुनिया की नई । लेकिन ये तो खैर मनोभाव हैं, हो सकता है, कल्पना हो। फ्रांस जेनरेशन का संगीत है। संगीत कम है, विसंगीत ज्यादा है। लेकिन के एक वैज्ञानिक ने एक यंत्र विकसित किया है, जो यंत्र बताता है उसका नाम तो संगीत ही है। तो पॉप म्यूजिक बजाया रोज एक घंटे। कि व्यक्ति से जो तरंगें निकल रही हैं, वे रिपल्सिव हैं या अट्रैक्टिव
और दूसरी क्यारी पर क्लासिकल, शास्त्रीय संगीत बजाया- | हैं। उस यंत्र के पास, जैसे आप वजन तौलने की मशीन पर खड़े बिथोवन, मोझर्ट, वेजनर-इनका संगीत बजाया। शास्त्रीय | होते हैं और कांटा घूमकर बताता है, ऐसा ही उस मशीन के सामने
सही अर्थों में स्वरों का संगम और सामंजस्य है। खडे हो जाते हैं और कांटा घमकर बताना शरू कर देता है कि इस बड़ी हैरानी का अनुभव हुआ। और यह प्रयोग वैज्ञानिकों के द्वारा व्यक्ति से जो किरणें निकल रही हैं, वे लोगों को दूर हटाने वाली किया गया।
होंगी कि पास खींचने वाली होंगी। जिस क्यारी पर पॉप म्यूजिक बजाया गया, उस क्यारी के बीजों आज नहीं कल, जब हम मनुष्य के जीवन में और थोड़ी गहराई ने फूटने से इनकार कर दिया। और जिस क्यारी पर शास्त्रीय संगीत | से समझ पाएंगे, तो हमें इन सत्यों का पता चलेगा। और अगर बजाया गया, उसके बीज जल्दी फूट गए, समय के पहले। आज वर्षा खो गई है, और आज अगर अन्न खो गया है, और आज बामुश्किल पॉप वाली क्यारी के बीज टूटे भी, तो उनमें जो अंकुर | अगर सब कुछ खो गया है, और सब दुर्दिन और दुख से भर गया आए, अर्द्धमृत, पहले से ही मरे हुए। उनमें फूल तो लग ही नहीं। | है, तो उसका कुल कारण इतना ही नहीं है, कुल कारण इतना ही सके। और शास्त्रीय संगीत वाली क्यारी पर, जैसे फूल साधारणतः | नहीं है कि संख्या बढ़ गई है; उसका कुल कारण इतना ही नहीं है उन बीजों से आने चाहिए थे, उससे डेढ़ गुने बड़े फूल आए और कि पृथ्वी की पैदा करने की क्षमता कम हो गई है; उसका कुल डेढ़ गुने ज्यादा बड़ी संख्या में आए।
कारण इतना ही नहीं है कि हम वैज्ञानिक खाद नहीं डाल पा रहे हैं। ___ अब डिलाबार लेबोरेटरी के वैज्ञानिकों का कहना है कि संगीत नहीं, उसके और गहरे कारण भी हैं। मनुष्य से जो तरंगें निकलती की जो तरंगें पैदा हुईं, उन्होंने अंतर पैदा किया है। क्या संगीत से | | थीं और सारी प्रकृति से उन तरंगों का जो तालमेल था, वह टूट गया जब तरंगें पैदा होती हैं, तो आदमियों के कर्मों से तरंगें पैदा नहीं होती है; जो इनर हार्मनी थी, वह टूट गई है। मनुष्य ने अपने हाथ से ही हैं? और अगर संगीत से तरंगें पैदा होती हैं, तो क्या आदमी की सब तालमेल तोड़ डाला है। वह अकेला खड़ा हो गया है दुश्मन चेतना, चित्त की अवस्थाओं से तरंगें पैदा नहीं होती हैं? क्या | । की तरह। न बादलों से कोई दोस्ती है, न नदियों से कोई प्रेम है। अहंकार से भरा हुआ आदमी अपने चारों तरफ विसंगीत नहीं। वे लोग आज हमें पागल ही मालूम पड़ते हैं, जो किसी नदी को फैलाता है? क्या अहंकार से शून्य, विनम्र आदमी अपने चारों ओर नमस्कार करते हैं। पागल हैं; नदी को और नमस्कार कर रहे हैं! शास्त्रीय संगीत को नहीं फैलाता है?
ऐसे तो पागलपन लगता ही है कि नदी को नमस्कार कर रहे हैं। कृष्ण जब कह रहे हैं, यज्ञ से होती है वर्षा, तो वे यह कह रहे हैं लेकिन जिन लोगों ने पहली बार नदी को नमस्कार किया था, उनके कि जब निरहंकारी लोग इस पृथ्वी पर जीते हैं, तो सारा जीवन उनके भाव का आपको कुछ खयाल है? जिन्होंने पहली बार नदी के लिए सब कुछ करने के लिए तैयार हो जाता है। बादल भी वर्षा करते चरणों में सिर रखा था, उनके भाव का कुछ खयाल है? जरूर हैं, पौधे भी अन्न से भर जाते हैं, अन्न भी प्राण को लेकर आता है। उन्होंने नदी से एक मैत्री, एक हार्मनी का अनुभव किया था। जो और जब व्यक्ति गलत तरंगें अपने चारों ओर फैलाने लगते हैं...। पहाड़ों पर चढ़कर नमस्कार करने गए थे, उनके भाव का कोई
और यह भी मैं आपको कहना चाहूं कि आप कहेंगे कि संगीत खयाल है? लेकिन आज की दुनिया में भाव सिर्फ बिना भाव की से व्यक्ति की तरंगों का क्या संबंध? व्यक्ति से कोई तरंगें उठती चीज है; उसका कोई भाव नहीं रह गया है, उसका कोई मूल्य ही हैं? तो आपमें से बहुतों को निरंतर अनुभव हुआ होगा कि जब आप | नहीं है। उसका कोई मूल्य ही नहीं है। भावपूर्ण होना मूर्खतापूर्ण किसी एक व्यक्ति के पास जाते हैं, तो अचानक रिपल्सिव मालूम होना हो गया है। इससे बड़ी हालांकि मूर्खता नहीं हो सकती है। होता है कि हट जाएं; जैसे कि कोई चीज आपको धक्का देती है। यह जो कृष्ण कह रहे हैं, यज्ञपूर्ण कर्मों से, यज्ञपूर्ण प्रार्थनाओं
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