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m गीता दर्शन भाग-1 -
नहीं पड़ता है, तब आप जानना कि सिद्धि हो गई है। जब तक ऐसा | ही किए जा रहे हैं। हम कपड़े वैसे पहन लेते हैं, जैसे दूसरे लोग न हो जाए, जब तक स्मरण रखना पड़े, जब तक होश रखना पड़े, | पहने हैं। हम मकान वैसा बना लेते हैं, जैसा दूसरे लोगों ने बनाया
और अगर होश चूके, तो या तो आसक्ति आ जाए या विरक्ति आ | | है। हम पर्दे वैसे लटका लेते हैं, जैसा पड़ोसियों ने लटकाया है। जाए, तब तक जानना कि साधना है।
हम कार वैसी खरीद लेते हैं, जैसी पड़ोसी लोग खरीदते हैं। | अमेरिका में तो कारों की वजह से मुहल्ले तक जाने जाते हैं।
क्योंकि एक मुहल्ले में लोग एक-सी ही कारें खरीद लेते हैं, तो यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः ।
शेवरलेट नेबरहुड हो जाती है, शेवरलेट वालों का मुहल्ला। स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते । । २१ ।। आदमी एक-दूसरे को देखकर करने लगता है। श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण करता है, अन्य पुरुष भी | तो कृष्ण एक और गहरी बात इसमें कह रहे हैं। वे अर्जन से कह उस-उस के ही अनुसार बर्तते हैं। वह पुरुष जो कुछ प्रमाण रहे हैं कि तू उन पुरुषों में से है, जिन पर लाखों लोगों की नजर होती कर देता है, लोग भी उसके अनुसार बर्तते हैं। है। तू जो करेगा, वही वे लोग भी करेंगे। अगर तू जीवन से भाग
गया, तो वे भी भाग जाएंगे। और हो सकता है कि तेरे लिए जीवन
से भागना बड़ा प्रामाणिक हो, तो भी वे लाखों लोग बिलकुल OF तिम श्लोक की बात और कर लें; बहुत कीमती बात | गैर-प्रामाणिक ढंग से जीवन से भाग जाएंगे। 1 इसमें कृष्ण ने कही है। मनुष्य के चित्त का एक बहुत जब बुद्ध ने संन्यास लिया, तो बुद्ध का संन्यास तो बहुत
बुनियादी लक्षण इमिटेशन है, नकल है। सौ में से आथेंटिक है। बुद्ध का संन्यास तो उनके प्राणों की पूरी की पूरी निन्यानबे आदमी आथेंटिक नहीं होते, प्रामाणिक नहीं होते, प्यास और पुकार है। लेकिन लाखों लोग बुद्ध के पीछे संन्यासी इमिटेटिव होते हैं, सिर्फ नकल कर रहे होते हैं। सौ में से निन्यानबे हुए। उतने लाखों लोग बुद्ध की हैसियत के नहीं हैं। महावीर ने लोग वही नहीं होते, जो उन्हें होना चाहिए; वही होते हैं, जो वे अपने जब संन्यास लिया, तो महावीर तो, महावीर के लिए संन्यास चारों तरफ लोगों को देखते हैं कि लोग हैं। छोटे बच्चे नकल करते नियति है, डेस्टिनी है; उससे अन्यथा नहीं हो सकता। लेकिन हैं, अनुकरण करते हैं; सब कुछ नकल से ही छोटे बच्चे सीखते | महावीर के पीछे लाखों लोग संन्यासी हुए। वे सारे लाखों लोग हैं। लेकिन हममें से बहुत कम लोग हैं, जो छोटे बच्चों की सीमा | महावीर की हैसियत के नहीं हैं। पार कर पाते हैं। हममें से अधिक लोग जीवनभर ही छोटे बच्चे रह लेकिन फिर भी मैं कहूंगा कि अगर नकल ही करनी है, तो फिल्म जाते हैं। हम सिर्फ नकल ही करते हैं। हम देख लेते हैं, वही करने स्टार की बजाय संन्यासी की ही करनी बेहतर है-अगर नकल ही लगते हैं।
करनी है। और नकल ही करनी है, तो फिर बेहतर है कि महावीर अगर आज से हम हजार साल पहले भारत के गांव में जाते, तो की नकल ही हो जाए। क्यों? क्योंकि अच्छे की नकल शायद कभी बच्चे ओंकार की ध्वनि करते मिलते। ऐसा नहीं कि बच्चे कोई बहुत | स्वयं के अच्छे का द्वार भी बन जाए। जैसे कि बुरे की नकल पवित्र थे। अभी उसी गांव में जाएं, बच्चे फिल्मी गाना गाते मिलते निश्चय ही कभी बुरे के आगमन का द्वार बन जाती है। हैं। ऐसा नहीं कि बच्चे अपवित्र हो गए हैं। नहीं, बच्चे तो वही करते मैं बुरे के लिए निश्चित कहता हूं और अच्छे के लिए शायद हैं, जो चारों तरफ हो रहा है। जो बच्चे ओंकार की ध्वनि कर रहे थे, कहता हूं। क्यों? क्योंकि अच्छा चढ़ाई है और बुरा ढलान है। वे कोई बहुत पवित्र थे, ऐसा नहीं है। लेकिन ओंकार की ध्वनि से ढलान बहुत निश्चित बन जाती है। उसमें कुछ भी नहीं करना पवित्रता के आने का द्वार खुलता था। और जो बच्चे फिल्म का गीत पड़ता; सिर्फ छोड़ दिया और उतर जाते हैं। चढ़ाई पर कुछ करना गा रहे हैं, वे कोई अपवित्र हैं, ऐसा नहीं है। लेकिन फिल्म के गीत पड़ता है श्रम। लेकिन अगर नकल में भी चढ़े, अगर कोई कैलाश से पवित्रता का द्वार बंद होता है। लेकिन वे तो इमिटेट कर रहे हैं। पर किसी के पीछे नकल में भी चढ़ गया, तो भी कैलाश पर तो
बच्चों की तो बात छोड़ दें। हम जानते हैं कि बच्चे तो नकल | पहुंच ही जाएगा। और कैलाश पर पहुंचकर जो घटित होगा, वह करेंगे, लेकिन कभी आपने सोचा कि आप इस उम्र तक भी नकल । सारी नकलें तोड़ देगा और उसके प्रामाणिक व्यक्तित्व के भी प्रकट
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