Book Title: Gita Darshan Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 409
________________ - पूर्व की जीवन-कलाः आश्रम प्रणाली - अनासक्त का यह गुणधर्म है। अनासक्त देखता है जिंदगी को; | और दुख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जो ऊपर होता है, वह हमें न इस तरफ भागता, न उस तरफ भागता। और परमात्मा जो ले | | दिखाई पड़ता है; जो नीचे होता है, वह छिप जाता है। थोड़ी देर माता है जिंदगी में, उसमें से चुपचाप साक्षी की भांति गुजर जाता बाद, जब एक पहल से ऊब जाते हैं और उलटते हैं, तब दूसरा है। इसलिए कष्ण ने उल्लेख किया जनक का। और कष्ण जब पहल दिखाई पड़ता है। उल्लेख करें, तो सोचने जैसा है। कृष्ण ने उल्लेख किया जनक का लेकिन कृष्ण कह रहे हैं, तेरा तो मंगल होगा ही, लोकमंगल भी कि जनक जैसे ज्ञानी। और अर्जुन तू तो इतना ज्ञानी नहीं है। उनका | होगा। लोकमंगल क्या होगा? सबका मंगल क्या होगा? मतलब साफ है। वे यह कह रहे हैं कि तू तो इतना ज्ञानी नहीं है कि | असल में जो आसक्त हैं, वे भी; और जो विरक्त हैं, वे भी, तू वैराग्य की बात करे। जनक जैसा ज्ञानी भी छोड़ने को, भागने को | जगत को आनंद के मार्ग पर ले जाने वाले नहीं बनते। नहीं बनते हैं आतुर न हुआ! जनक जैसा ज्ञानी चुपचाप वहीं जीए चला गया, | | दो कारणों से। एक तो जो स्वयं ही आनंद के मार्ग पर नहीं है, उसके जहां था। जीवन से किसी को भी आनंद नहीं मिल सकता। क्योंकि हम वही तो क्या था सूत्र जनक का? सूत्र था, अनासक्तियोग। सूत्र था, दे सकते हैं, जो हमारे पास है। हम वह नहीं दे सकते, जो हमारे जहां हमें दो दिखाई पड़ते हैं, वहां तीसरा भी दिखाई पड़ने लगे, दि पास नहीं है। दूसरा, जो व्यक्ति जितना आसक्त या विरक्त होकर थर्ड फोर्स। दो तो हमें सदा दिखाई पड़ते हैं, तीसरा दिखाई नहीं कर्म में लगता है, उतना ही तनाव, उतना ही टेंस उसका व्यक्तित्व पड़ता है। विरक्त को भी दो दिखाई पड़ते हैं। आसक्त को भी दो | होता है। दिखाई पड़ते हैं-मैं, और वह, जिस पर मैं आसक्त हूं। विरक्त | | और ध्यान रहे, हम करीब-करीब ऐसे ही हैं, जैसे कोई पानी में को भी दो दिखाई पड़ते हैं-मैं, और वह, जिससे मैं विरक्त हूं। | एक पत्थर फेंके। झील है, एक पत्थर फेंक दिया। तो पत्थर तो झील अनासक्त को तीन दिखाई पड़ते हैं-वह जो आकर्षण का केंद्र है | | में थोड़ी देर में नीचे बैठ जाता है तलहटी में, भूमि में बैठ जाता है। या विकर्षण का, और वह जो आकर्षित हो रहा या विकर्षित हो रहा, | | लेकिन पत्थर से उठी लहरें फैलती चली जाती हैं; दूर अनंत किनारों और एक और भी, जो दोनों को देख रहा है। तक फैलती चली जाती हैं। ठीक वैसे ही, जब भी हमारे चित्त में यह जो दोनों को देख रहा है-अर्जुन से कृष्ण कहते हैं-तू | जरा-सा तनाव उठता है, तो हम मनुष्य के जीवन के सरोवर में तरंगें इसी में प्रतिष्ठित हो जा। इसमें तेरा हित तो है ही, तेरा मंगल तो है। पैदा करते हैं। फिर चाहे हमारा तनाव चला भी जाए, वे तरंगें फैलती ही, इसमें लोकमंगल भी है। क्यों, इसमें क्या लोकमंगल है? यह चली जाती हैं। वे न मालम कितने लोगों को स्पर्श करती हैं और न तो मेरी समझ में पड़ता है, आपकी भी समझ में पड़ता है कि अर्जुन | | मालूम कितने लोगों के जीवन में अमंगल बन जाती हैं। का मंगल है। अनासक्त कोई हो जाए, तो जीवन के परम आनंद | | सिर्फ अनासक्त व्यक्ति के भीतर से तनाव की, चिंता की, दुख के द्वार खुल जाते हैं। आसक्त भी दुखी होता है, विरक्त भी दुखी की, पीड़ा की विकृत तरंगें नहीं उठती हैं। सिर्फ अनासक्त व्यक्ति होता है। आसक्त भी सुखी होता है, विरक्त भी सुखी होता है। बुद्ध से जो तरंगें उठती हैं, वे सदा मंगलकारी हैं। इसलिए लोकमंगल ने कहा है, जिसे हम प्रेम करते हैं, वह आ जाए, तो सुख देता है; है। लोकमंगल यहां बहुत ही गहरे अर्थों में कहा है। जिसे हम घृणा करते हैं, वह चला जाए, तो सुख देता है। जिसे हम हम चौबीस घंटे अपने चारों तरफ रेडिएट कर रहे हैं। जो भी घृणा करते हैं, वह आ जाए, तो दुख देता है, जिसे हम प्रेम करते | | हमारे भीतर है, वह रेडिएट हो रहा है, वह विकीर्णित हो रहा है, हैं, वह चला जाए, तो दुख देता है। फर्क क्या है? बुद्ध ने पूछा है। उसकी किरणें हमारे चारों तरफ फैल रही हैं। हर आदमी अपने चारों दोनों ही दोनों काम करते हैं। हां, किसी के आने से सुख होता है, | | ओर प्रतिपल उसी तरह लहरें उठा रहा है, जैसे पत्थर फेंका गया किसी के जाने से। किसी के जाने से सुख होता है, किसी के आने | | झील में उठाता है। हम कल समाप्त हो जाएंगे। लेकिन हमारे द्वारा से–बस इतना ही फर्क है। | उठाई गई लहरें अनंत हैं; वे कभी समाप्त न होंगी; वे चलती ही मित्र भी सुख देते हैं, मित्र भी दुख देते हैं। शत्रु भी सुख देते हैं, | | रहेंगी; वे कभी दूर तारों के निवासियों को भी छुएंगी। अब वैज्ञानिक शत्रु भी दुख देते हैं। असल में जो भी सुख देता है, वह दुख भी | कहते हैं, कोई पचास हजार तारों पर जीवन है। अभी तक उन्होंने देगा। और जो भी दुख देता है, वह सुख भी देगा। क्योंकि सुख | कोई चार अरब तारे खोज निकाले हैं। जीवन वहां समाप्त नहीं होता 379

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