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आत्म-विद्या के गूढ़ आयामों का उदघाटन
धर्म बिलकुल भी फिलासफी नहीं है। धर्म एक विज्ञान है। धर्म यह पूछता है, क्या? क्यों नहीं। क्योंकि धर्म जानता है कि अस्तित्व से क्या का उत्तर मिल सकता है। क्यों का कोई उत्तर नहीं मिल सकता। विज्ञान भी पूछता है, क्या ? विज्ञान पूछता है, पानी क्या है ? हाइड्रोजन और आक्सीजन। आप पूछें कि क्यों हाइड्रोजन और आक्सीजन मिलते हैं? वैज्ञानिक कहेगा, दार्शनिक से पूछो। हमारी लेबोरेटरी में हम क्या खोजते हैं। हम बता सकते हैं कि हाइड्रोजन और आक्सीजन से मिलकर पानी बनता है । क्या, हम बताते हैं । कैसे, हम बतातें हैं। क्यों, कृपा करके हमसे मत पूछो। या तो पागलों से या फिलासफर से, इनसे क्यों पूछो।
वैज्ञानिक कहता है कि हम कितना ही खोजें, हम इतना ही जान सकते हैं कि क्या ! और जब हमें क्या पता चल जाए, तो हम जान सकते हैं, कैसे! पानी हाइड्रोजन और आक्सीजन से मिलकर बना है, हमने जान लिया — व्हाट । अब हम खोज कर सकते हैं कि कैसे मिला है। इसलिए विज्ञान क्या की खोज करता है और कैसे को प्रयोगशाला में ढूंढ़ लेता है।
धर्म भी अस्तित्व के क्या की खोज करता है और योग में कैसे की प्रक्रिया को खोज लेता है। इसलिए धर्म का जो आनुषांगिक अंग है, वह योग है । और विज्ञान का जो आनुषांगिक अंग है, वह प्रयोग है। लेकिन धर्म का कोई संबंध नहीं है क्यों से। क्योंकि एक बात सुनिश्चित है कि हम अस्तित्व के क्यों को न पूछ पाएंगे। अस्तित्व है, और यहीं बात समाप्त हो जाती है।
तो कृष्ण कह हैं कि ऐसा है कि वह जो आत्मा है, वह मरणधर्मा नहीं है। पूछें, क्यों? तो क्यों का कोई सवाल ही नहीं है। ऐसा है, थिंग्स आर सच | वह जो आत्मा है, वह आत्मा जल नहीं सकती, जन्म नहीं लेती, मरती नहीं । क्यों ? कृष्ण कहेंगे, ऐसा है । अगर तुम पूछो कि कैसे हम जानें उस आत्मा को, तो रास्ता बताया जा सकता है— जो नहीं मरती, जो नहीं जन्मती । लेकिन अगर पूछें कि क्यों नहीं मरती ? तो कृष्ण कहते हैं, कोई उपाय नहीं है। यहां जाकर सब निरुपाय हो जाता है। यहां जाकर आदमी एकदम हेल्पलेस हो जाता । यहां जाकर बुद्धि एकदम थक जाती और गिर जाती है।
लेकिन बुद्धि क्यों ही पूछती है । उसका रस क्यों में है। क्योंकि अगर आप क्यों पूछें, तो बुद्धि कभी न गिरेगी और कभी न थकेगी, कभी न मरेगी। वह पूछती चली जाएगी, पूछती चली जाएगी, पूछती चली जाएगी।
बचपन में मैंने एक कहानी सुनी है, आपने भी सुनी होगी। एक बूढ़ी औरत, नानी है। बच्चे उसे घर में घेर लेते हैं और कहानी पूछते हैं। वह थक गई है, उसकी सब कहानियां चुक गईं हैं। लेकिन बच्चे हैं कि रोज पूछे ही चले जाते हैं। वे फिर-फिर कहते हैं रोज रात, कहानी ! और वह बूढ़ी थक गई है, उसकी सब कहानियां चुक गई हैं। अब वह क्या करे और क्या न करे ! और बच्चे हैं कि पीछे पड़े हैं।
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फिर उसने एक कहानी ईजाद की। ठीक वैसी ही जैसी परमात्मा की कहानी है। उसने कहानी ईजाद की। उसने कहा, एक वृक्ष पर अनंत पक्षी बैठे हैं। बच्चे खुश हुए, क्योंकि अनंत पक्षी हैं, कथा अनंत चल सकेगी। उसने कहा, एक शिकारी है, जिसके पास अनंत बाण हैं। उसने एक तीर छोड़ा। तीर के लगते ही वृक्ष पर, एक पक्षी उड़ा। बच्चों ने पूछा, फिर ? उस बूढ़ी ने कहा, उस शिकारी ने दूसरा तीर छोड़ा, फिर एक पक्षी उड़ा। बच्चों ने पूछा, फिर ! उस बूढ़ी ने कहा, फिर शिकारी ने एक तीर छोड़ा। फिर एक पक्षी उड़ा – फुर्र | बच्चों ने पूछा, फिर! फिर यह कहानी चलने लगी, बस ऐसे ही चलने लगी । फिर बच्चे थक गए और उन्होंने कहा, कुछ और नहीं होगा? उस बूढ़ी स्त्री ने कहा कि अब मैं थक गई हूं, अब और कहानी नहीं। अब यह एक कहानी काफी रहेगी। अब तुम रोज पूछना। फिर उसने एक तीर छोड़ा - अनंत हैं तीर, अनंत हैं पक्षी ।
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यह जो हमारे क्यों का जगत है, वह ठीक बच्चों जैसा है, जो पूछ रहे हैं, क्यों? क्यों का सवाल चाइल्डिश है, यद्यपि बहुत बुद्धिमान लोग पूछते हुए मालूम पड़ते हैं। असल में बुद्धिमानों से ज्यादा | बाल- बुद्धि के लोग खोजने मुश्किल हैं। क्यों का सवाल एकदम बचकाना है। लेकिन बड़ा कीमती मालूम पड़ता है। क्योंकि दुनिया में जिनको हम बुद्धिमान कहते हैं, वे यही पूछते रहे हैं। चाहे वे यूनान के दार्शनिक हों, चाहे भारत के हों और चाहे चीन के हों, वे यह क्यों ही पूछते रहे हैं । और फिर क्यों के उत्तर खोजते रहे हैं। किसी उत्तर | ने किसी को तृप्ति नहीं दी। किसी उत्तर से हल नहीं हुआ। क्योंकि हर उत्तर के बाद पूछने वाले ने पूछा, क्यों? फिर एक तीर, फिर पक्षी उड़ जाता है। और फिर इससे कोई अंतर नहीं पड़ता है।
इसलिए मैंने निरंतर पीछे आपसे कहा कि यह किताब मेटाफिजिकल नहीं है। यह कृष्ण का संदेश जो अर्जुन को है, यह कोई दार्शनिक, कोई तत्व - ज्ञान का नहीं, यह मनस-विज्ञान का है ।। इसलिए वे कह रहे हैं, ऐसा है । और एक आत्मा जब यात्रा करती