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Smm गीता दर्शन भाग-1 AM
और पुरुष के बीच ज्यादा आकर्षण को जन्माती थी। पुरानी संस्कृति ने नई अवस्था पा ली। में तलाक मुश्किल था। आकर्षण भारी था। अपनी ही पत्नी से | ___ क्रोध तक सिर्फ मन गरम है, मोह पर भाप बन जाता है। नई मिलना कहां हो पाता था! कितनी बाधाएं थीं! संयुक्त परिवार बड़ी अवस्था शुरू हो गई मन की, ए न्यू स्टेट; क्वालिटेटिव चेंज हो बाधा का काम करता था। आकर्षण जीवनभर खिंचता था। गया, गुणात्मक अंतर हो गया। क्रोध तक गुणात्मक अंतर नहीं है, जीवनभर ही नहीं, स्त्री और पुरुष चाहते थे कि मरकर भी यही स्त्री, | | परिमाणात्मक अंतर है, क्वांटिटेटिव चेंज हो रहा है सिर्फ। इसलिए यही पुरुष मिल जाए। तलाक जन्म के साथ भी करने का मन नहीं क्रोध से वापस लौट जाना आसान है, मोह से वापस लौट जाना था। जन्मों-जन्मों तक एक को ही पा लेने का आकर्षण था। राज | बहुत मुश्किल हो जाता है। कहां है ? राज इसी सूत्र में है, बाधाएं बहुत थीं।
इसलिए मोह को कृष्ण कहते हैं कि उससे स्मृति भ्रष्ट हो जाती __ क्रोध सबसे बड़ी बाधा है। असल में क्रोध बाधा से ही पैदा है। क्योंकि चित्त भाप-भाप हो जाता है। लौटना बहुत कठिन है। हुआ चित्त-विकार है। तो मोह पैदा हो जाता है। और जहां मोह अब उसको ठंडा करना बहुत कठिन है। अब ईंधन हटाने से कुछ पैदा होता है, वहां स्मृति भ्रष्ट हो जाती है। स्मृति मोह से भ्रष्ट न होगा। और फिर मोह के तत्व को ठीक से समझें, तो पता चलेगा क्यों हो जाती है?
कि स्मृति क्यों मोह नष्ट करता है। आमतौर से हम सोचते होंगे काम से भ्रष्ट होनी चाहिए स्मति। | मनष्य के मन में स्मति का जो काम है. मोह का उससे विपरीत काम से भ्रष्ट नहीं होती, क्योंकि काम प्राकृतिक तथ्य है। आमतौर काम है। स्मृति तथ्यगत है। स्मृति का मतलब ही यही है कि जो से हमें सोचना चाहिए, क्रोध से भ्रष्ट हो जाती है स्मृति। लेकिन | जाना, उसे वैसा ही याद रखना जैसा जाना। मेमोरी का मतलब ही क्रोध से भी नहीं होती। क्योंकि क्रोध सिर्फ काम के मार्ग में पड़ी इतना है। राइट मेमोरी, ठीक स्मृति का मतलब इतना ही है कि हम अड़चन से पैदा होता है। क्रोध प्रोजेक्टिव नहीं है। यह समझना अपनी तरफ से कुछ नहीं जोड़ते, जो है, उसको ही स्मरण रखते हैं। पड़ेगा। क्रोध का कोई सम्मोहन नहीं है। क्रोध केवल प्रतिकार है, | | उसमें हमारा कोई जोड़ नहीं होता। प्रक्षेप नहीं। क्रोध किसी दूसरे का प्रतिकार है, किसी बाधा को हटाने | - मोह कहना चाहिए क्रिएटिव है, सृजनात्मक है। वह वही नहीं की चेष्टा है। बाधा हट जाए, क्रोध खो जाएगा।
| देखता, जो है; वह वह प्रोजेक्ट करता है, निर्माण करता है, जो , मोह क्रोध से भी सबल है। मोह प्रोजेक्टिव है; मोह अंधा कर | चाहता है कि हो। मोह स्वप्न-निर्माता है। मोह सम्मोहक है, देता है। क्रोध पागल करता है, मोह अंधा कर देता है। मोह कहता हिप्नोटिक है। मोह अपने हिप्नोटिज्म का जाल फैला देता है। वह है, कुछ भी हो! सब बाधाओं को भूलकर मोह पागल होकर जिसे बिलकुल अंधा होकर वही देखने लगता है, जो देखना चाहता है। पाना चाहता है, उसके पीछे दौड़ पड़ता है। क्रोध बाधाओं को इसलिए अक्सर हम कहते हैं कि जब कोई मोहग्रस्त होता है, अलग करने की कोशिश करता है, काफी रिअलिस्टिक है; क्रोध | कोई प्रेम में पागल हो जाता है, तो फिर उसे तथ्य दिखाई नहीं पड़ते। बहुत यथार्थ है। लेकिन मोह कहता है, बाधाएं! कोई बाधाएं नहीं | | वह आग में चल सकता है, वह पहाड़ों से कूद सकता है। उसे फिर हैं, छलांग लगाएंगे, दौड़कर निकल जाएंगे।
कुछ दिखाई नहीं पड़ता। फिर वह रिअलिस्ट नहीं रह जाता, वह मोह अंधा कर देता है। और जब चित्त अंधा होता है, तभी स्मृति सोम्नाबलिस्ट हो जाता है; वह नींद में चलने लगता है। उसका क्षीण होती है। हां, मोह तक आने के लिए काम और क्रोध जरूरी | चलना फिर नींद में चलना है। हैं। लेकिन मोह कहना चाहिए परिपाक है। मोह हमारे चित्त के | __इसलिए प्रेमी को मनुष्य हमेशा से पागल कहता रहा है। और विकार की सौ डिग्री अवस्था है, जहां से भाप बनना शुरू होता है।। | प्रेम को सदा से अंधा कहता रहा है। ठीक होगा कि प्रेम की जगह निन्यानबे डिग्री तक भी पानी भाप नहीं बनता, गरम ही रहता है। हम मोह का उपयोग करें। ठीक शब्द मोह है। मोह अंधा है, ब्लाइंड
और गरम रहने में एक खूबी है कि अभी चाहे, नीचे से अगर ईंधन ___ है। प्रेम बड़ी और बात है। निकाल लिया जाए, तो फिर ठंडा हो सकता है। लेकिन सौ डिग्री प्रेम को मोह के साथ एक कर लेने से गहरा, भारी नुकसान हुआ पर पहुंचकर भाप बन जाएगा। फिर आप ईंधन निकालो या कुछ है। प्रेम एक बहुत ही और बात है। प्रेम तो उसी के जीवन में घटित करो, भाप सिर्फ ईंधन निकालने से फिर ठंडी नहीं हो सकती। पानी होता है, जिसके जीवन में मोह नहीं होता। लेकिन हम प्रेम को ही
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