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120+ स्वधर्म की खोज -m
जाता है, तो बड़े दुखी और बड़े पीड़ित हैं।
आप भीतर कर्म कर सकते हैं? कर्म के लिए बहिर्मुख होना जरूरी सांख्य कहता है, कर्म स्वप्न से ज्यादा नहीं है। अगर यह समझ | | है, बाहर जाना जरूरी है। कर्म के लिए अपने से बाहर निकलना में आ जाए, तो कृष्ण के सामने और प्रश्न उठाने की अर्जुन को कोई | पड़ेगा, तो ही कर्म हो सकता है। इसलिए जितना कर्मठ व्यक्ति, जरूरत नहीं है। यह समझ में नहीं आया है। फिर भी नासमझी भी | | उतना अपने से बाहर चला जाता है; चांद-तारों पर चला जाता है; समझदारी के प्रश्न खड़े कर सकती है। और अर्जुन वैसा ही प्रश्न | | भीतर नहीं आ सकता है। खड़ा कर रहा है।
योग बहिर्मुखी व्यक्ति के लिए मार्ग है; सांख्य अंतर्मुखी व्यक्ति | के लिए मार्ग है। और इस तरह के, दो तरह के व्यक्ति हैं। इन दो
तरह के व्यक्तियों में विरोध है; सांख्य और योग में विरोध नहीं है। प्रश्नः भगवान श्री, सांख्य समझ में तो आई है थोड़ी, इस बात को ठीक से समझ लेना जरूरी है। क्योंकि अक्सर लेकिन अनुभूति में नहीं आई है, इसलिए प्रश्न तो | व्यक्तियों का विरोध, शास्त्रों का विरोध मालूम पड़ने लगता है। उठते ही हैं। भगवान श्री, ज्ञाननिष्ठा अर्थात सांख्य, । व्यक्तियों का विरोध शास्त्रों का विरोध मालम पड़ने लगता है. है
और कर्मनिष्ठा अर्थात योग क्या अपने-अपने में पूर्ण | नहीं। अब महावीर हैं, बुद्ध हैं, शंकर हैं या नागार्जुन हैं-इनके नहीं हैं? अथवा क्या वे एक-दूसरे के पूरक हैं? और | बीच जो भी विरोध हमें मालूम पड़ते हैं, वे इन व्यक्तियों के विरोध उनमें विरोध दिखाई पड़ने का क्या कारण है? कृपया | | हैं; जिस सत्य, जिस अनुभूति, जिस अलौकिक जगत की वे बात इसे बताएं।
कर रहे हैं, वहां कोई विरोध नहीं है। लेकिन जिस मार्ग से वे पहंचे | हैं, वहां भिन्नता है। भिन्नता ही नहीं, विरोध भी है।।
अब जैसे एक बहिर्मुखी व्यक्ति है, तो उसके लिए धर्म सेवा पाख्य और योग में विरोध नहीं है; लेकिन सांख्य की बनेगी। अंतर्मुखी व्यक्ति है, उसके लिए धर्म ध्यान बनेगा। ।दिशा जिस व्यक्ति के लिए अनुकूल है, उसके लिए अंतर्मुखी व्यक्ति के लिए सेवा की बात एकदम से समझ में नहीं
- योग की दिशा प्रतिकूल है। जिसे योग की दिशा | | आएगी। बहिर्मुखी व्यक्ति के लिए ध्यान की बात एकदम से समझ अनुकूल है, उसे सांख्य की दिशा प्रतिकूल है। सांख्य और योग में | में नहीं आएगी–कि भीतर डूबकर क्या होगा? जो भी है करने का, विरोध नहीं है, लेकिन इस जगत में व्यक्ति दो प्रकार के हैं, | बाहर है। जो भी होने की संभावना है, बाहर है। व्यक्तियों का टाइप दो प्रकार का है। और इसलिए किसी के लिए । ये दो तरह के व्यक्ति हैं, मोटे हिसाब से। आमतौर से कोई भी सांख्य बिलकुल गलत हो सकता है और किसी के लिए योग | - व्यक्ति एकदम एक्सट्रोवर्ट और एकदम इंट्रोवर्ट नहीं होता। ये मोटे बिलकुल सही हो सकता है। और किसी के लिए योग बिलकुल | | विभाजन हैं। हम सब मिश्रण होते हैं—कुछ अंतर्मुखी, कुछ गलत हो सकता है और सांख्य बिलकुल सही हो सकता है। दो बहिर्मुखी। मात्राओं के फर्क होते हैं। कभी होता है कि नब्बे प्रतिशत तरह के व्यक्ति हैं जगत में।
| व्यक्ति बहिर्मुखी होता है, दस प्रतिशत अंतर्मुखी होता है। __ अभी गुस्ताव जुंग ने व्यक्तियों के दो मोटे विभाजन किए हैं। । । आमतौर से व्यक्ति मिश्रित होते हैं। ऐसा बहुत कम होता है कि एक को गुस्ताव जुंग कहता है एक्स्ट्रोवर्ट, और दूसरे को कहता है | | | व्यक्ति शुद्ध रूप से अंतर्मुखी हो। क्योंकि शुद्ध रूप से अंतर्मुखी इंट्रोवर्ट। एक वे, जो बहिर्मुखी हैं; एक वे, जो अंतर्मुखी हैं। व्यक्ति एक क्षण भी जी नहीं सकता। भोजन करेगा, तो बाहर जाना ___ जो व्यक्ति अंतर्मुखी हैं, उनके लिए योग जरा भी काम का नहीं पड़ेगा; स्नान करेगा, तो बाहर जाना पड़ेगा। अंतर्मुखी व्यक्ति अगर है। जो व्यक्ति अंतर्मुखी हैं, उनके लिए सांख्य पर्याप्त है। पर्याप्त | | सौ प्रतिशत हो, तो तत्काल मृत्यु घटित हो जाएगी। बहिर्मुखी से ज्यादा है। जो व्यक्ति बहिर्मुखी हैं, सांख्य उनकी पकड़ में ही | | व्यक्ति भी अगर सौ प्रतिशत हो, तो तत्काल मृत्यु हो जाएगी। नहीं आएगा, कर्म ही उनकी पकड़ में आएगा। क्योंकि ध्यान रहे, | क्योंकि निद्रा भी चाहिए, जिसमें भीतर जाना पड़ेगा। विश्राम भी कर्म के लिए बाहर जाना जरूरी है और ज्ञान के लिए भीतर जाना | | चाहिए, जिसमें अपने में डूबना पड़ेगा। काम से छुट्टी, अवकाश जरूरी है। कर्म अगर कोई भीतर करना चाहे, तो नहीं कर सकता। | भी चाहिए; मित्रों, प्रियजनों से बचाव भी चाहिए; अन्यथा उसका
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