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गीता दर्शन भाग-1 AM
घूमता है। जमीन भी सैटेलाइट है, वह सूर्य को केंद्र बनाकर घूमती है। सूर्य भी सैटेलाइट है, वह किसी महासूर्य को केंद्र बनाकर घूमता है। सब अदर ओरिएंटेड हैं। .
लेकिन उन्हें माफ किया जा सकता है, क्योंकि उनकी चेतना इतनी नहीं कि वे जान सकें कि क्या अदर और क्या सेल्फ; क्या स्वयं और क्या पर। आदमी को माफ नहीं किया जा सकता, वह जानता है। पति पत्नी का सैटेलाइट है, पत्नी के आस-पास घूम रहा है। कभी छोटा वर्तुल बनाता है, कभी बड़ा वर्तुल बनाता है, लेकिन पत्नी के आस-पास घूम रहा है। पत्नी पति की सैटेलाइट है। वह उसके आस-पास घूम रही है। कोई धन के आस-पास घूम रहा है, कोई काम के आस-पास घूम रहा है, कोई पद के आस-पास घूम रहा है-सैटेलाइट, पर-आयत्त। दूसरा केंद्र है, हम तो सिर्फ परिधि पर घूम रहे हैं—यही दिवालियापन है।
लेकिन हम अपने केंद्र स्वयं हैं, किसी के आस-पास नहीं घूम रहे हैं. तो आदमी स्वायत्त है। यही सम्राट होना है। यही स्प्रिचअल रिचनेस है। जिसको जीसस ने किंगडम आफ गाड, परमात्मा का साम्राज्य कहा, उसको कृष्ण कह रहे हैं, स्वायत्त हुआ पुरुष परम आनंद को उपलब्ध हो जाता है। क्योंकि पर-आयत्त हुआ पुरुष परम दुख को उपलब्ध हो जाता है। दुख यानी पर-आयत्त होना, आनंद यानी स्वायत्त होना।
ये सब समाधिस्थ व्यक्ति की तरफ ही वे इशारे करते जा रहे हैं अर्जुन को। सब दिशाओं से, अनेक-अनेक जगहों से वे इशारे कर रहे हैं कि समाधिस्थ पुरुष यानी क्या। वह जो सवाल पूछ लिया था अर्जुन ने, हो सकता है, वह खुद भी भूल गया हो कि उसने क्या सवाल पूछा था। लेकिन कृष्ण उसके सवाल को समस्त दिशाओं से ले रहे हैं। कहीं से भी उसकी समझ में आ जाए।
तो वे यह कह रहे हैं कि जो स्वयं ही अपना केंद्र बन गया, जिसका अब कोई पर केंद्र नहीं है, ऐसा पुरुष परम ज्ञान को, परम शांति को, परम आनंद को उपलब्ध हो जाता है।
अभी इतना। फिर शेष सांझ हम बात करेंगे।
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