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- गीता दर्शन भाग-1 40m
कीमत न चुकानी पड़ती होगी भीतरी समृद्धि की तो बाहरी | | बड़े पद पर हैं। वे मुझसे पूछने आए कि हम शिक्षित तो कर रहे हैं समृद्धि भी आएगी। हां, सिर्फ उसी जगह बाधा पड़ेगी, जहां बाहरी | लोगों को, लेकिन बेईमानी, झूठ, दगा, फरेब, सब बढ़ता चला समृद्धि कहेगी कि भीतरी शांति और आनंद खोओ, तो मैं मिल जाता है! हम अपने बच्चों को बेईमानी, दगा, फरेब, झूठ से कैसे सकती हैं। तो वैसा निष्कामकर्मी कहेगा कि मत मिलो, यही तम्हारी रोकें? तो मैंने उनसे पूछा कि दूसरों के बच्चों की पहले छोड़ दें। कृपा है। जाओ।
क्योंकि दूसरों के बच्चों को दगा, फरेब से रोकने को कोई भी तैयार प्रगति का क्या अर्थ है, इस पर सब निर्भर करता है। अगर सिर्फ हो जाता है। मैं आपके बच्चों की बात करना चाहता हूं। दूसरों के दौड़ना ही प्रगति है-कहीं भी दौड़ना, बिना कहीं पहुंचे तब बात बच्चों को दगा, फरेब से रोकने में कौन सी कठिनाई है। दूसरे का
अलग है। लेकिन कहीं अगर पहुंचना प्रगति है, तो फिर बात बेटा संन्यासी हो जाए, तो सब मुहल्ले के लोग उसको स्वागतबिलकुल अलग होगी। अगर आप यह कहते हों कि एक आदमी धन्यवाद देने आते हैं। उनका बेटा हो, तब पता चलता है! पागल है और हम उससे कहें कि तुम्हारे दिमाग का इलाज किए देते मैंने उनसे पूछा, दूसरों के बच्चों की बात छोड़ दें। आपके भी हैं। और वह कहे, दिमाग का इलाज तो आप कर देंगे, लेकिन इससे | | लड़के हैं। उन्होंने कहा, हैं। लेकिन वे कुछ डरे हुए मालूम पड़े, मेरी प्रगति में बाधा तो नहीं पड़ेगी? क्योंकि अभी मैं जितनी तेजी | जैसे ही मैंने कहा कि आपके बच्चों की सीधी बात की जाए। मैंने से दौड़ता हूं, कोई दूसरा नहीं दौड़ पाता। हम कहेंगे, बाधा पड़ेगी। | उनसे पूछा कि मैं आपसे यह पूछता हूं, आप अपने बच्चों को दगा, अभी तुम्हारी जैसी तेजी से कोई भी नहीं दौड़ पाता, लेकिन तुम | | फरेब, झूठ, खुशामद, बेईमानी-ये जो हजार बीमारियां इस समय इतनी तेजी से दौड़कर भी कहीं नहीं पहुंचते और धीमे चलने वाले मुल्क में हैं-इन सब से छुटकारा दिलाना चाहते हैं? उन्होंने बड़े लोग भी पहुंच जाते हैं। बस, इतना ही खयाल हो, तो बात समझ डरते से मन से कहा कि हां, दिलाना चाहता हूं। लेकिन मैंने कहा, में आ सकती है।
आप इतने कमजोर मन से कह रहे हैं हां, कि मैं फिर से पूछता हूं, थोड़ी हिम्मत जुटाकर कहिए। उन्होंने कहा कि नहीं-नहीं, मैं तो
दिलाना ही चाहता हूं। व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन। ___ मैंने कहा, लेकिन आप हिम्मत नहीं जुटाते। आप जितनी ताकत बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम् । । ४१।।।। | से पहले मुझसे बोले कि सब बर्बाद हुआ जा रहा है, हम मुल्कभर हे अर्जुन, इस कल्याणमार्ग में निश्चयात्मक-बुद्धि एक ही है। | के बच्चों को कैसे ईमानदारी सिखाएं! उतने जोर से आप अब नहीं और अज्ञानी (सकामी) पुरुषों की बुद्धियां बहुत भेदों वाली | कहते। उन्होंने कहा कि आपने मेरा कमजोर हिस्सा छू दिया है। अनंत होती हैं।
आपने मेरी नस पकड़ ली है। मैंने कहा कि नस पकड़कर ही बात हो सकती है, अन्यथा तो कोई बात होती नहीं। इस मुल्क में हर
आदमी बिना नस पकड़े बात करता रहता है, तो कोई मतलब ही 1 नुष्य का मन एक हो सकता है, अनेक हो सकता है। नहीं होता है। तो मैं नस ही पकड़ना चाहता हूं। ___ मनुष्य का चित्त अखंड हो सकता है, खंड-खंड हो तो उन्होंने कहा कि नहीं, इतनी हिम्मत से तो नहीं कह सकता।
सकता है। मनुष्य की बुद्धि स्वविरोधी खंडों में बंटी हुई। मैंने कहा, क्यों नहीं कह सकते? तो उन्होंने कहा कि मैं जानता हूं। हो सकती है, विभाजित हो सकती है, अविभाजित भी हो सकती इतना तो मैं चाहता हूं कि जितने ऊंचे पद तक मैं उठा, कम से कम है। साधारणतः विषयी चित्त, इच्छाओं से भरे चित्त की अवस्था एक मेरा लड़का भी उठे। और यह भी मैं जानता हूं कि अगर वह पूरा मन की नहीं होती है, अनेक मन की होती है; पोलीसाइकिक, | | ईमानदार हो, नैतिक हो, तो नहीं उठ सकता। तो फिर मैंने कहा, दो बहुचित्त होते हैं। और ऐसा ही नहीं कि बहुचित्त होते हैं, एक चित्त मन हैं आपके। दो में से एक साफ तय करिए-या तो कहिए कि के विपरीत दूसरा चित्त भी होता है।
लड़का सड़क पर भीख मांगे, इसके लिए मैं राजी हूं, लेकिन __ मैं कुछ दिन पहले दिल्ली में था। एक मित्र, बड़े शिक्षाशास्त्री बेईमानी नहीं। और या फिर कहिए कि लड़का बेईमान हो, मुझे कोई
श्वविद्यालय के पहले कुलपति थे, फिर अब और भी मतलब नहीं; लड़का शिक्षा मंत्रालय में होना चाहिए। एजुकेशन
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