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ymमोह-मुक्ति, आत्म-तृप्ति और प्रज्ञा की थिरता -AIR
अब हाथ-पैर का कंपन चला गया। अब वह आदमी ठीक वैसा ही | | अंधकार हो जाता है। जितना सघन मैं, उतनी डार्कनेस, उतना हो गया है, जैसे और लोग हैं। और कह रहा है, ठीक; जो हो गया, निबिड़ अंधकार चारों ओर फैलता चला जाता है। जो आदमी मैं में ठीक है।
| ही जीता है, वह अंधकार में जीता है-मोह-निशा में। तभी उसका लड़का दौड़ा हुआ आता है। और वह कहता है, | तो कृष्ण कहते हैं, इस मोह की कालिमा से जो मुक्त हो जाता बात तो हुई थी, लेकिन बयाना नहीं हो पाया। बेचने की बात चली है, वैसा व्यक्ति वैराग्य को उपलब्ध होता है। लेकिन कृष्ण जिसे थी, लेकिन हो नहीं पाया। और अब इस जले हुए मकान को कौन | वैराग्य कहते हैं, हम आमतौर से उसे वैराग्य नहीं कहते हैं। इसलिए खरीदने वाला है!
इस बात को भी ठीक से समझ लेना जरूरी है। फिर आंसू वापस लौट आए; फिर छाती पीटना शुरू हो गया। | हम तो वैराग्य जिसे कहते हैं. वह राग की विपरीतता को कहते मकान अब भी वैसा ही जल रहा है! मकान को कुछ भी पता नहीं | | हैं। विपरीत राग को कहते हैं वैराग्य, हम जिसे वैराग्य कहते हैं। चला कि इस बीच सब बदल गया है। सब फिर बदल गया है। मोह | मकान मेरा है, ऐसा जानना राग है-हमारी बुद्धि में। मकान मेरा फिर लौट आया है। आंखें फिर अंधी हो गई हैं। फिर मेरा जलने नहीं है, ऐसा जानना वैराग्य है-हमारी बुद्धि में। लेकिन मेरा है या लगा है।
मेरा नहीं है, ये दोनों एक ही चीज के दो छोर हैं। कृष्ण इसे वैराग्य इस जीवन में मोह ही जलता है, मोह ही चिंतित होता है, मोह | नहीं कहते। यह विपरीत राग है। यह राग से मुक्ति नहीं है। नहीं, ही तनाव से भरता है, मोह ही संताप को उपलब्ध होता है, मोह ही | मेरा नहीं है। भटकाता है, मोह ही गिराता है। मोह ही जीवन का दुख है। | • रामतीर्थ अमेरिका से वापस लौटे, टेहरी गढ़वाल में मेहमान थे।
इसे कृष्ण मोह कह रहे हैं। बुद्ध ने इसे तृष्णा कहा है, तनहा कहा उनकी पत्नी मिलने आई। खिड़की से देखा पत्नी को आते हुए, तो है। इसे कोई और नाम दें, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इसके भीतरी | | खिड़की बंद करके द्वार बंद कर लिया। एक मित्र साथ ठहरे हुए थे, रहस्य में एक गुण है, और वह यह कि जो मेरा नहीं है, वह मेरा | सरदार पूर्ण सिंह। उन्होंने कहा, दरवाजा क्यों बंद करते हैं? क्योंकि मालूम होने लगता है। मोह की जो हिप्नोसिस है, मोह का जो | मैंने आपको किसी भी स्त्री के लिए कभी दरवाजा बंद करते नहीं सम्मोहन है, वहां जो मेरा नहीं है, वह मेरा मालूम होने लगता है; | देखा! पूर्ण सिंह जानते हैं कि जो आ रही है, उनकी पत्नी है-या और जो मेरा है, उसका कुछ पता ही नहीं चलता।
थी। रामतीर्थ ने कहा, वह मेरी कोई भी नहीं है। पर पूर्ण सिंह ने मोह के अंधकार का जो गुणधर्म है, वह यह है कि जो मेरा नहीं | कहा कि और भी जो स्त्रियां आती हैं, वे भी आपकी कोई नहीं हैं।
तुम होता है। और जो मेरा है, वह मेरा नहीं मालूम | लेकिन उन और कोई नहीं स्त्रियों के लिए कभी द्वार बंद नहीं किया! होता है। एक रिवर्सन, एक विपर्यय हो जाता है। चीजें सब उलटी | नहीं, यह स्त्री जरूर आपकी कोई है—विशेष आयोजन करते हैं, हो जाती हैं।
द्वार बंद करते हैं। रामतीर्थ ने कहा, वह मेरी पत्नी थी, लेकिन मेरी मकान मेरा कैसे हो सकता है? मैं नहीं था, तब भी था। मैं नहीं | कोई पत्नी नहीं है। पूर्ण सिंह ने कहा, अगर वह पत्नी नहीं है, तो रहूंगा, तब भी रहेगा। जमीन मेरी कैसे हो सकती है? मैं नहीं था, | उसके साथ वैसा ही.व्यवहार करें, जैसा किसी भी स्त्री के साथ तब भी थी। मैं नहीं रहूंगा, तब भी होगी। और जमीन को बिलकुल करते हैं। द्वार खोलें! पता नहीं है कि मेरी है। और मेरा मोह एक सम्मोहन का जाल फैला यह व्यवहार विशेष है; यह विपरीत राग का व्यवहार है। एक लेता है मेरा बेटा है, मेरी पत्नी है, मेरे पिता हैं, मेरा धर्म है, मेरा | भ्रम था कि मेरी पत्नी है, अब एक भ्रम है कि मेरी पत्नी नहीं है। धर्मग्रंथ है, मेरा मंदिर है, मेरी मस्जिद है—मैं के आस-पास एक | लेकिन अगर पहला भ्रम गलत था, तो दूसरा भ्रम सही कैसे हो बड़ा जाल खड़ा हो जाता है। वह जो मैं का फैलाव है, वही मोह | सकता है? वह पहले पर ही खड़ा है; वह पहले का ही एक्सटेंशन का अंधकार है।
है; वह उसी का विस्तार है। असल में मैं जो है, उसे ठीक ऐसा समझें कि वह अंधेरे का दीया | पहला भ्रम तो हमारी समझ में आ जाता है। दूसरा भ्रम विरागी है। जैसे दीए से रोशनी गिरती है, ऐसे मैं से अंधकार गिरता है। जैसे | का भ्रम है–संन्यासी का, त्यागी का-वह जरा हमारी समझ में दीया जलता है, तो प्रकाश हो जाता है; ऐसे मैं जलता है, तो |
| मुश्किल से आता है। लेकिन साफ है बात कि यह पत्नी विशेष है,
पस्तारहा
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