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Sam गीता दर्शन भाग-1 AM
यदा ते मोहकलिलं बुद्धि तितरिष्यति । स्वभावतः, उसके जीवनभर की सारी संपदा नष्ट हुई जा रही है। तदा गन्तासि निवेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च ।। ५२।।। | जिसे उसने जीवन समझा है, वही नष्ट हुआ जा रहा है। जिसके और हे अर्जुन, जिस काल में तेरी बुद्धि मोहरूप दलदल को | आधार पर वह खड़ा था, वह आधार गिरा जा रहा है। जिसके बिलकुल तर जाएगी, तब तू सुनने योग्य और सुने हुए के आधार पर उसके मैं में शक्ति थी, बल था; जिसके आधार पर वह वैराग्य को प्राप्त होगा।
कुछ था, समबडी था, वह सब बिखरा जा रहा है।
जान सोलिज ने एक किताब लिखी है, अरेस्ट्रोस। उसमें कुछ
कीमती वचन लिखे हैं। उसमें एक कीमती वचन है, नोबड़ी वांट्स + हरूपी कालिमा से जब बुद्धि जागेगी, तब वैराग्य | टु बी नोबडी। नोबडी वांट्स टु बी नोबडी। ठीक-ठीक अनुवाद । फलित होता है। मोहरूपी कालिमा से! मनुष्य के | मुश्किल है। कोई भी नहीं चाहता कि ना-कुछ हो। सभी चाहते हैं, आस-पास कौन-सा अंधकार है?
समबडी हों, कुछ हों। एक तो वह अंधकार है, जो दीयों के जलाने से मिट जाता है।। उसकी समबडीनेस बिखरी जा रही है, उस आदमी की। वह कुछ धर्म से उस अंधकार का कोई भी संबंध नहीं है। वह हो तो भी कोई | था इस मकान के होने से। और जिनका भी कुछ होना किसी और फर्क नहीं पड़ता है, नहीं हो तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता है। फिर चीज के होने पर निर्भर है, किसी दिन ऐसा ही रुदन, ऐसी ही पीड़ा धर्म किस अंधकार को मिटाने के लिए चेष्टारत है? | उन्हें घेर लेती है। क्योंकि वे सब जो बाहर की संपदा पर टिके हैं,
एक और भी अंधकार है, जो मनुष्य के शरीर को नहीं घेरता, किसी दिन बिखरते हैं, क्योंकि बाहर कछ भी टिकने वाला नहीं है। वरन मनुष्य की चेतना को घेर लेता है। एक और भी अंधकार है, वह उसी के मकान में आग लग गई हो, ऐसा नहीं, सभी के बाहर जो मनुष्य की आत्मा के चारों तरफ घिर जाता है। उस अंधकार को | के मकानों में आग लग जाती है। असल में बाहर जो भी है, वह कृष्ण कह रहे हैं, मोहरूपी कालिमा। तो अंधकार और मोह इन दो आग पर चढ़ा हुआ ही है। शब्दों को थोड़ा गहरे में समझना उपयोगी है।
तो छाती पीटता है, रोता है। स्वाभाविक है। फिर पड़ोस में से अंधकार का लक्षण क्या है? अंधकार का लक्षण है कि दिखाई कोई दौडा हआ आता है और कहता है. व्यर्थ रो रहे हो तम। तम्हारे नहीं पड़ता जहां, जहां देखना खो जाता है, जहां देखना संभव नहीं लड़के ने मकान तो कल बेच दिया। उसका बयाना भी हो गया है। हो पाता, जहां आंखों पर परदा पड़ जाता है-एक। दूसरा, जहां क्या तुम्हें पता नहीं? बस, आंसू तिरोहित हो गए। उस आदमी का दिखाई न पड़ने से कोई मार्ग नहीं मालूम पड़ता, कहां जाएं! क्या छाती पीटना बंद हो गया। जहां रोना था, वहां वह हंसने लगा, करें! तीसरा, जहां दिखाई न पड़ने से प्रतिपल किसी भी चीज से | मुस्कुराने लगा। सब एकदम बदल गया। टकरा जाने की संभावना हो जाती है। अंधकार हमारी दृष्टि का खो अभी भी आग लगी है, मकान जल रहा है; वैसा ही जैसा जाना है।
क्षणभर पहले जलता था। फर्क कहां पड़ गया? मकान अब मेरा मोह में भी ऐसा ही घटित होता है। इसलिए मोह को अंधकार | | नहीं रहा, अपना नहीं रहा। मोह का जो जोड़ था मकान से, वह टूट कहने की सार्थकता है। मोह में जो हम करते हैं, मोह में जो हम होते गया है। अब भी मकान में आग है, लेकिन अब आंख में आंसू हैं, मोह में जैसे हम चलते हैं, मोह में जो भी हमसे निकलता है, नहीं हैं। आंख में जो आंसू थे, वे मकान के जलने की वजह से थे? वह ठीक ऐसा ही है, जैसे अंधेरे में कोई टटोलता हो। नहीं कुछ | | वह मकान अब भी जल रहा है। आंख में जो आंसू थे, वे मेरे के पता होता, क्या कर रहे हैं! नहीं कुछ पता होता, क्या हो रहा है! | जलने की वजह से थे। मेरा अब नहीं जल रहा है, आंखें साफ हो नहीं कुछ पता होता, कौन-सा रास्ता है! कौन-सा मार्ग है! आंखें | | गई हैं। अब आंसुओं की परत आंख पर नहीं है। अब उस आदमी नहीं होती हैं। मोह अंधा है। और मोह का अंधापन आध्यात्मिक | को ठीक-ठीक दिखाई पड़ रहा है। अभी उसे कुछ भी दिखाई नहीं अंधापन है, स्प्रिचुअल ब्लाइंडनेस है।
पड़ रहा था। सुना है मैंने, एक आदमी के मकान में आग लग गई है। भीड़ | उधर आग की लपटें थीं, तो इधर आंख में भी तो आंसू थे, सब इकट्ठी है। वह आदमी छाती पीटकर रो रहा है, चिल्ला रहा है। धुंधला था, सब अंधेरा था। अब तक उसके हाथ-पैर कंपते थे,
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