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- मोह-मुक्ति, आत्म-तृप्ति और प्रज्ञा की थिरता -AM
से परिचित हैं, जो बीमारी को दबाकर उपलब्ध होता है। दबाने की | ब्लैक-बोर्ड, उतने अक्षर साफ दिखाई पड़ते हैं। प्रक्रिया को इसलिए हम दवा कहते हैं। दवाई–दबाने वाली। जितना हीन आदमी, उतनी श्रेष्ठता दिखाई पड़ती है। जितना जिससे हम बीमारी को दबाते रहते हैं, उसको हम दवा कहते हैं। | | श्रेष्ठ आदमी, उतनी श्रेष्ठता सफेद दीवार पर सफेद अक्षरों जैसी
लेकिन एक और स्वास्थ्य है, जो बीमारी का अभाव है-दबाव | लीन हो जाती है, दिखाई नहीं पड़ती है। कंट्रास्ट में, विरोध में नहीं, सप्रेशन नहीं-एब्सेंस। लेकिन अगर हम मेडिकल साइंस से | दिखाई पड़ती है। पूछने जाएं, तो वह कहेगी कि नहीं, हम ऐसे किसी स्वास्थ्य को | अगर आपको पता चलता है कि मैं स्वस्थ हूं, तो समझना कि नहीं जानते हैं, जो बीमारी का अभाव है। हम तो ऐसे ही स्वास्थ्य | बीमारी कहीं दबी है। अगर आपको पता चलता है, मैं ज्ञानी हूं, तो को जानते हैं, जो बीमारी से लड़कर उपलब्ध होता है। समझना कि अज्ञान कहीं दबा है। अगर आपको पता चलता है कि
इसलिए अगर आप किसी चिकित्सक से जाकर कहें कि मुझे मैं दृढ़ चित्तवान हूं, तो समझना कि भीतर भूसा कहीं भरा है। अगर स्वस्थ होना है, तो वह कहेगा, हम कुछ रास्ता नहीं बता सकते हैं। पता ही नहीं चलता...। हमसे तो यह पूछो कि कौन-सी बीमारी है, उसे अलग करना है, इसलिए उपनिषद कहते हैं कि जो कहता है, मैं जानता हूं, उसे मिटाना है, तो हम रास्ता बता सकते हैं।
| समझना कि नहीं जानता है। इसलिए उपनिषद एक अदभुत वचन इसलिए आज तक दुनिया की कोई भी मेडिकल साइंस, चाहे कहते हैं। शायद इससे ज्यादा करेजियस स्टेटमेंट, इससे ज्यादा वह आयुर्वेद हो और चाहे वह एलोपैथी हो और चाहे होमियोपैथी साहसी वक्तव्य पथ्वी पर कभी नहीं दिया गया है। उपनिषद कहते हो और चाहे यूनानी हो और चाहे कोई और हो, कोई भी पैथी हो, हैं कि ज्ञानी को क्या कहें! अज्ञानी तो भटक ही जाते हैं अंधकार में, वह अब तक स्वास्थ्य की परिभाषा नहीं कर पाई, सिर्फ बीमारियों ज्ञानी महा-अंधकार में भटक जाते हैं, ग्रेटर डार्कनेस। अज्ञानी तो की परिभाषा कर पाई है। उससे पूछो कि स्वास्थ्य क्या है ? तो वह भटकते ही हैं अंधकार में, ज्ञानी महा-अंधकार में भटक जाते हैं। कहेगी, हमें पता नहीं। हमसे पूछो कि बीमारियां क्या हैं, तो हम | | किन ज्ञानियों की बात कर रहा है उपनिषद? उन ज्ञानियों की बात बता सकते हैं, टी.बी. का मतलब यह, कैंसर का मतलब यह, फ्लू कर रहा है, जिन्हें ज्ञान का पता है कि ज्ञान है। का मतलब यह। लेकिन स्वास्थ्य का क्या मतलब है ? स्वास्थ्य का | जिन्हें दृढ़ता का पता है, वे दृढ़ नहीं हैं। कृष्ण जिस दृढ़ता की हमें कोई पता नहीं है।
बात कह रहे हैं, उसे एडलर की दृढ़ता से बिलकुल भिन्न जान लेना। हीनता को दंबाकर एक श्रेष्ठता प्रकट होती है, यह श्रेष्ठता सदा | | कृष्ण का मनोविज्ञान बहुत और है। वह विपरीत पर खड़ा हुआ नहीं ही नीचे की हीनता पर कंपती रहती है। सदा भयभीत, सदा अपने | है। क्योंकि जो विपरीत पर खड़ा हुआ मकान है, किसी भी दिन गिर को सिद्ध करने को आतुर, सदा अपने को तर्क देने को चेष्टारत, जाएगा; उसका कोई भरोसा नहीं है। जो प्रतिकूल पर ही निर्मित है, सदा संदिग्ध, सदा भीतर से भयग्रस्त।
वह अपने शत्रु पर ही आधार बनाए है। स्वभावतः, अपने ही शत्रु और एक ऐसी भी श्रेष्ठता है-असंदिग्ध, अपने को सिद्ध करने के कंधे पर हाथ रखकर जो बलशाली हुआ है, वह कितनी देर को आतुर नहीं, अपने को प्रमाणित करने के लिए चेष्टारत नहीं, बलशाली रहेगा? जो अपने ही विपरीत को अपनी बुनियाद में जिसे अपने होने का पता ही नहीं। । ।
आधारशिला के पत्थर बनाया है, उसके शिखर कितनी देर तक अब ध्यान रहे, जिस दृढ़ता का आपको पता है, वह एडलर आकाश में, सूर्य की रोशनी में उन्नत रहेंगे? कितनी देर तक? वाली दढता होगी। और जिस दढता का आपको पता ही नहीं है. नहीं यह नहीं हो सकता ज्यादा देर। और जितनी देर ये शिखर वह कृष्ण वाली दृढ़ता होगी। जिस दृढ़ता का पता है...पता चलेगा | ऊपर उन्नत दिखाई भी पड़ेंगे, उतनी देर नीचे बुनियाद में पूरे समय कैसे? पता हमेशा कंट्रास्ट में चलता है। स्कूल में शिक्षक लिखता | संघर्ष है, पूरे समय द्वंद्व है, पूरे समय प्राणों में कंपन है, वेवरिंग है, है सफेद खड़िया से काले ब्लैक-बोर्ड पर। सफेद दीवार पर भी | ट्रेंबलिंग है। वहां कंपन चलता ही रहेगा, वहां भय हिलता ही रहेगा, लिख सकता है, लिख जाएगा, पता नहीं चलेगा। लेकिन काले | वहां पानी की धार कंपती ही रहेगी। यह रेत पर बनाया हुआ मकान ब्लैक-बोर्ड पर लिखता है; लिखता है, दिखाई पड़ता है। काले पर | है। रेत पर भी नहीं, पानी पर बनाया हुआ मकान है। यह अब गिरा, लिखता ही इसीलिए है कि दिखाई पड़ सके। जितना काला | अब गिरा, अब गिरा-भीतर आप जानते ही रहेंगे; अब गिरा,
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