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- गीता दर्शन भाग-1 AM
यह पता ही नहीं होता कि अहंकार न बचा हो, तो मिलना कैसे हो दोनों बिलकुल एक जैसे हैं। दोनों बिलकुल एक जैसे हैं। सकता है। क्योंकि मिलने वाला भी अहंकार है, न मिलने वाला भी एक और मित्र ने इस संबंध में मुझे चिट्ठी लिखकर भेजी है कि अहंकार है। हमें खयाल में नहीं आती वह बात।
| आप कहते हैं कि महावीर और बुद्ध जो कहते हैं, वह बिलकुल एक मिले कौन? होना तो चाहिए न कोई—मिलने के लिए भी, न है। तो क्या बुद्ध और महावीर को दिखाई नहीं पड़ा यह कि एक है? मिलने के लिए भी। बुद्ध हैं कहां! महावीर हैं कहां! किससे मिलना बिलकुल दिखाई पड़ता था। बिलकुल दिखाई पड़ता था। तो है? कोई पराया बचा है, जिससे मिलना है? बुद्ध अगर बचे होते, उन्होंने पूछा है कि अगर दिखाई पड़ता था, तो उन्होंने कह क्यों नहीं तो चले जाते महावीर से मिलने, या इनकार करते मिलने से। दिया कि एक है!
यह बड़े मजे की बात है कि न मिले, न इनकार किया मिलने से। उन्होंने नहीं कहा, आप पर कृपा करके। क्योंकि अगर बद्ध और वह हुआ ही नहीं, बस, इट डिडन्ट हैपेन-बस, यह हुआ ही नहीं। | महावीर कह दें कि बिलकुल एक है, तो आप सिर्फ कनफ्यूज्ड होंगे इसका कोई उपाय ही नहीं है। क्योंकि कौन मिले? किससे मिले? | | और कुछ भी नहीं हो सकता; आप सिर्फ विभ्रमित होंगे, और कुछ मिलने के लिए भी अहंकार चाहिए। और फिर किसलिए मिले? | भी नहीं हो सकता। कोई कारण चाहिए।
इसलिए महावीर कहे चले जाते हैं कि जो मैं कह रहा हूं, वही हां, अगर अहंकार होता, तो शायद एक ही धर्मशाला में ठहरने ठीक है। जो बुद्ध...बेकार है। यह जो मैं कह रहा हूं, यही ठीक से भी इनकार कर देते। कहते कि वहां हम नहीं ठहरते। ठहर गए। | है। आप इतने कमजोर चित्त हैं कि अगर महावीर इतने अतिशय से अगर कोई पकड़कर ले जाता, तो चले जाते। रुकते भी नहीं, रोकते | न बोलें, तो आपके चित्त पर कोई परिणाम ही होने वाला नहीं है। भी नहीं कि नहीं जाते। कोई पकड़कर नहीं ले गया। किसी ने दोनों | | क्योंकि आप इतने कमजोर हैं कि अगर महावीर को आप देखें कि को खींचा नहीं।
वह कहें, यह भी ठीक, वह भी ठीक; यह भी ठीक, वह भी ठीक, । असल में दोनों के आस-पास अहंकारियों का इतना बड़ा जाल | सभी ठीक, तो आप भाग खड़े होंगे। आप तो खुद ही कमजोर हैं। रहा होगा कि उसने दीवार का काम किया होगा। दोनों के | आप तो चले ही जाएंगे कि जब सभी ठीक है, तो फिर ठीक है, हम आस-पास अहंकारियों का इतना जाल रहा होगा कि उसने सख्त | | भी ठीक हैं। आप उससे जो निष्कर्ष निकालेंगे, वह यह कि फिर प्राचीर का काम किया होगा। अगर कोशिश भी चली होगी, तो | | हम भी ठीक! फिर हम जाते हैं। भक्तों ने न चलने दी होगी-मिलने की। ऐसा कैसे हो सकता है! ___ अगर महावीर को ज्ञानियों के बीच में बोलना पड़े, तो महावीर अगर बुद्ध के भक्तों ने महावीर के भक्तों से कहा होगा कि मिलाने कहेंगे, सभी ठीक। अगर बुद्ध को ज्ञानियों के बीच में बोलना पड़े, महावीर को ले आओ, तो उन्होंने कहा होगा, हम ले आएं? तुम ले बुद्ध कहेंगे, सभी ठीक। अगर ज्ञानियों के बीच में बोलना पड़े, तो आओ अपने बुद्ध को, मिलाना हो तो। उन्होंने कहा होगा, यह कैसे बुद्ध बोलेंगे ही नहीं, महावीर बोलेंगे ही नहीं। इतना भी नहीं कहेंगे हो सकता है कि बुद्ध को हम लेकर आएं! बुद्ध नहीं आ सकते। कि सभी ठीक। लेकिन बोलना पड़ता है अज्ञानियों के बीच में। मगर यह बातचीत भक्तों में चली होगी। यह उनमें चली होगी, जो | | ये बुद्ध और महावीर की पीड़ा आपको पता नहीं है। बोलना चारों तरफ घेरकर खड़े हैं। वे सदा खड़े हैं।
| पड़ता है उनके बीच में, जिन्हें कुछ भी पता नहीं है। उनके लिए इस . इस दुनिया में बुद्ध, महावीर, कृष्ण और मोहम्मद और ईसा के | तरह के एब्सोल्यूट स्टेटमेंट, इस तरह के निरपेक्ष वचन कि सभी बीच कोई दीवार नहीं है; दीवार है, भक्तों के कारण; वे जो घेरकर ठीक, सिर्फ व्यर्थ होंगे, अर्थहीन होंगे। उनके लिए कहना पड़ता है, खड़े हैं। भयंकर दीवार है। हां, बुद्ध अगर तोड़ना चाहते, तो दीवार | | यही ठीक। और इतने जोर से कहना पड़ता है कि महावीर के को तोड़ सकते थे। लेकिन तोड़ने का भी कोई कारण नहीं है। महावीर व्यक्तित्व का वजन और गरिमा और महिमा, उस यही ठीक के अगर चाहते कि मिलना है, तो मिल सकते थे। लेकिन महावीर और बीच जुड़ जाए, तो शायद आप दो कदम उठाएं। बुद्ध चाह से नहीं जीते; एकदम डिजायरलेस, अचाह से जीते हैं। हां, महावीर भलीभांति जानते हैं कि जिस दिन आप पहुंचेंगे, मिलना हो जाता, तो हो जाता। नहीं हुआ, तो नहीं हुआ। राह पर जान लेंगे, सभी ठीक। लेकिन वह उस दिन के लिए छोड़ दिया चलते मिल जाते, तो मिल जाते। नहीं मिले, तो नहीं मिले। मगर जाता है। उसके लिए कोई अभी चिंता करने की जरूरत नहीं है।
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