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yam मोह-मुक्ति, आत्म-तृप्ति और प्रज्ञा की थिरता +m
पहाड़ पर आप चल रहे हैं। मैं अपने रास्ते को कहता हूं, यही| यह जो...ऊपर से ढांचे नहीं दिखाई पड़ेंगे, लेकिन अगर बहुत ठीक। आप कहते हैं, उस रास्ते के बाबत क्या खयाल है, वह जो गहरे में खोज-बीन की, तो बहुत जीवंत पैटर्न, लिविंग पैटर्न होंगे। वहां से जा रहा है? मैं कहता हूं, बिलकुल गलत! जब मैं कहता | पैटर्न भी डेड और लिविंग हो सकते हैं। हूं, बिलकुल गलत, तो मेरा मतलब यह नहीं होता कि वह एक चित्रकार एक चित्र बनाता है, वह डेड होता है। लेकिन बिलकुल गलत। मैं भलीभांति जानता हूं, उससे भी लोग पहुंचे हैं। | एक चित्र प्रकृति बनाती है, वह लिविंग होता है। एक चित्रकार भी
लेकिन हजार रास्ते जा रहे हैं पहाड़ पर। और आप चल सकते हैं | एक वृक्ष बनाता है, लेकिन वह मरा होता है। एक वृक्ष प्रकृति भी सिर्फ एक पर, हजार पर नहीं। और अगर आपको हजार ही ठीक बनाती है, लेकिन वह जीवंत होता है। वह प्रतिपल बदल रहा है। दिखाई पड़ जाएं, तो संभावना यह नहीं है कि आप हजार पर चलें, | कुछ पत्ते गिर रहे, कुछ आ रहे, कुछ जा रहे, कुछ फूट रहे, हवाएं संभावना यही है कि आप एक पर भी न चलें। दो कदम एक पर हिला रही हैं। चलें, फिर दो कदम दूसरे पर चलें, फिर दो कदम तीसरे पर चलें। एक सूर्य सुबह उगता है, और एक वानगाग भी सूर्योदय का जैसा आपका चित्त है डांवाडोल, वह रास्ते बदलता रहे और आप | चित्र बनाता है। लेकिन वानगाग के सूर्योदय का चित्र ठहरा हुआ पहाड़ के नीचे ही भटकते रहें।
है, स्टैटिक, स्टैगनेंट है। सुबह का सूरज कभी नहीं ठहरता है; __ हजार रास्ते भी पहुंच जाते हैं पहाड़ पर, लेकिन हजार रास्तों से उगता ही चला जाता है, कहीं नहीं ठहरता। इतना उगता चला जाता चलकर कोई भी नहीं पहुंचता। अनंत रास्ते पहुंचते हैं परमात्मा तक, | है कि डूब जाता है, एक क्षण नहीं ठहरता है। लेकिन अनंत रास्तों से कोई भी नहीं पहुंचता। पहुंचने वाले सदा | । जिंदगी में जो पैटर्न हैं, वे सब जीवित हैं। वे ऐसे ही हैं जैसे किसी एक ही रास्ते से पहुंचते हैं।
वृक्ष के नीचे खड़े हो जाएं। पत्तों से छनकर धूप की किरणें आती .तो महावीर जिस रास्ते पर खड़े हैं, उचित है कि वे कहें, इसी | हैं। वृक्ष में हवाएं दौड़ती हैं, नीचे छाया और धूप का एक जाल बन रास्ते से पहुंच जाओगे, आ जाओ। और जरूरी है कि आपको इस जाता है। वह प्रतिपल कंपता रहता है, बदलता रहता है-प्रतिपल। रास्ते पर चलने के लिए भरोसा और निष्ठा आ सके, वे कहें कि | स्थितप्रज्ञ की प्रज्ञा तो स्थिर होती है, लेकिन उसके जीवन का बाकी कोई रास्ता नहीं पहुंचाता है।
| पैटर्न बिलकुल जीवंत होता है, वह प्रतिपल बदलता रहता है। महावीर को आपकी वजह से भी असत्य बोलने पड़ते हैं। और | कृष्ण से ज्यादा बदलता हुआ व्यक्ति खोजना मुश्किल है। नहीं बुद्ध को भी आपकी वजह से असत्य बोलने पड़ते हैं। मनुष्य के | | तो हम सोच ही नहीं सकते कि एक ही आदमी बांसुरी भी बजाए ऊपर जो अनुकंपा है ज्ञानियों की, उसकी वजह से उन्हें ढेर असत्य | | और एक ही आदमी सुदर्शन चक्र लेकर भी खड़ा हो जाए। और बोलने पड़ते हैं। लेकिन इस भरोसे में वे असत्य बोले जाते हैं कि | एक ही आदमी गोपियों के साथ नाचे भी, और इतना कोमल, और आप एक से भी चढ़कर जब शिखर पर पहुंच जाएंगे, तब आप खुद | वही आदमी युद्ध के लिए इतना सख्त हो जाए। और वही आदमी ही देख लेंगे कि सभी रास्ते यहीं ले आए हैं।
| नदी में स्नान करती स्त्रियों के कपड़े लेकर वृक्ष पर चढ़ जाए, और _अब जैसे पूछा है कि क्या ढांचा होगा? ढांचा कोई नहीं होगा। | वही आदमी नग्न होती द्रौपदी के लिए वस्त्र बढ़ाता रहे, बढ़ा दे। लेकिन जैसे यह बातः कृष्ण भी कहेंगे कि इस रास्ते से चलो, बद्ध यह एक ही आदमी इतने बदलता पैटन भी कहेंगे कि इस रास्ते से चलो, महावीर भी कहेंगे कि इस रास्ते से | जिन्होंने कृष्ण को गोपियों के वस्त्र उठाकर वृक्ष पर बैठते देखा चलो, शंकर भी कहेंगे कि इस रास्ते से चलो। और अगर झंझट बनी | होगा, क्या वे सोच सकते थे कभी कि किसी नग्न होती स्त्री के यह
और शंकर से किसी ने पूछा, बुद्ध के रास्ते के बाबत क्या खयाल वस्त्र बढ़ाएगा? यह आदमी! भूलकर ऐसा नहीं सोच सकते थे। है? तो वे कहेंगे, बिलकुल गलत। और बुद्ध से अगर किसी ने पूछा | कोई सोच सकता था कि यह आदमी, जी मोर के पंख बांधकर और कि महावीर के रास्ते के बाबत क्या खयाल है? तो बुद्ध कहेंगे, | | स्त्रियों के बीच नाचता है, यह आदमी कभी युद्ध के लिए जगत की बिलकुल गलत। और महावीर से किसी ने पूछा कि बुद्ध के रास्ते के सबसे मुखर वाणी बन जाएगा? कोई सोच भी नहीं सकता था। मोर बाबत क्या खयाल है? तो महावीर कहेंगे, भटकना हो तो बिलकुल के पंखों से और युद्धों का कोई संबंध है, कोई संगति है? ठीक। इस मामले में तो बिलकुल एक ही बात होगी।
लेकिन यह मृत आदमी नहीं है, मोर के पंख इसे बांधते नहीं।
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