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MO+ गीता दर्शन भाग-1 AM
नहीं है, कांप्लेक्स है, इसमें पूरा शरीर संयुक्त है। और पूरा शरीर गया बल, साधक का ही इंद्रियों को दिया गया अभ्यास, साधक की इंतजार करने लगेगा कि लाओ। सब तरफ से दबाव पड़ने लगेगा ही इंद्रियों को दी गई कंडीशनिंग, संस्कार...। कि लाओ।
और संस्कार बड़ी प्रबल चीज है। हम सब संस्कार से जीते हैं। चालीस-पचास साल का दबाव है। और आपने जो निर्णय | | हम चेतना से नहीं जीते, हम जीते संस्कार से हैं। संस्कार बड़ी प्रबल लिया है सिगरेट न पीने का, वह सिर्फ चेतन मन से लिया है। और | चीज है। इतनी प्रबल चीज है कि जब संस्कार की सारी स्थिति भी यह दबाव चालीस साल का अचेतन मन के गहरे कोनों तक पहंच | चली जाती है, अकेला संस्कार रह जाता है, तो अकेला संस्कार भी गया है। इसकी बड़ी ताकत है। और मन जल्दी बदलने को राजी। काम करता रहता है। नहीं होता, क्योंकि अगर मन जल्दी बदलने को राजी हो, पूरा मन, | मैंने सुना है, विलियम जेम्स एक बहुत बड़ा मनोवैज्ञानिक तो आदमी जिंदा नहीं रह सकता। इसलिए मन को बहुत | अमेरिका में हुआ। वह संस्कार पर बड़ा काम कर रहा था। असल आर्थोडाक्सी दिखलानी पड़ती है। मन को पूरी कोशिश करनी पड़ती | | में जो मनोविज्ञान संस्कार पर काम नहीं करता, वह मनोविज्ञान बन है कि जो चीज चालीस साल सीखी है, वह एक सेकेंड में छोड़ोगे! | ही नहीं सकता। क्योंकि बहुत गहरी पकड़ तो मनुष्य की कंडीशनिंग तब तो जिंदगी बहुत मुश्किल में पड़ जाए।
की है। सारी पकड़ तो वहां है, जहां आदमी जकड़ा हुआ है; जहां एक आदमी चालीस साल एक स्त्री को प्रेम करता रहा, जरा-सा | अवश, हेल्पलेस हो जाता है। तो वह कंडीशनिंग पर काम कर रहा गुस्सा आता है, कहता है, छोड़ देंगे! लेकिन कोई छोड़ता-वोड़ता है। वह एक दिन होटल में बैठा हुआ है, एक मित्र से बात कर रहा नहीं, क्योंकि वह चालीस साल जो पकड़ा है, उसका वजन ज्यादा | है। और उसने कहा कि इतना अजीब जाल है संस्कार का मनुष्य है। और अगर ऐसा छोड़ना होने लगे, तो जिंदगी एकदम | का कि जिसका कोई हिसाब नहीं है। अस्तव्यस्त हो जाए। इसलिए मन कहता है, जिसको चालीस साल | तभी उसने देखा कि सामने पहले महायुद्ध का रिटायर हुआ पकड़ा है, कम से कम चालीस साल छोड़ो।
| मिलिट्री का एक कैप्टन चला जा रहा है। अंडों की एक टोकरी लिए फिर मन के भी संकल्प के क्षण हैं और संकल्पहीनता के क्षण |हए है। उसे सझा कि ठीक उदाहरण है। विलियम जेम्स ने होटल हैं। मन कभी एक ही स्थिति में नहीं होता। कभी वह संकल्प के | के भीतर से चिल्लाकर जोर से कहा, अटेंशन। वह मिलिट्री का . शिखर पर होता है, तब ऐसा लगता है कि दुनिया की कोई ताकत | | आदमी अंडे छोड़कर अटेंशन खड़ा हो गया। सारे अंडे जमीन पर नहीं रोक सकती। कभी वह विषाद के गड्ढे में होता है, तब ऐसा गिर पड़े। रिटायर हुए भी वर्षों हो गए उसे। लेकिन अटेंशन ने लगता है, कोई जरा-सा धक्का दे जाएगा तो मर जाऊंगा। | बिलकुल बंदूक के ट्रिगर की तरह काम किया। गोली चल गई।
तो जब वह संकल्प के शिखर पर होता है, तब वह कहता है, | वह आदमी बहुत नाराज हुआ कि तुम किस तरह के आदमी हो, ठीक है, छोड़ देंगे। घंटेभर बाद जब विषाद में उतर जाता है, वह | | यह कोई मजाक है? सारे अंडे फूट गए! लेकिन विलियम जेम्स ने कहता है, क्या छोड़ना है! कैसे छोड़ सकते हैं! नहीं छूट सकती है, | | कहा, तुमसे किसने कहा कि तुम अटेंशन हो जाओ। हमें अटेंशन अपने वश की बात नहीं है। इस जन्म में नहीं हो सकता है। यह | | कहने का हक है। तुमसे ही कहा, यह तुमने कैसे समझा? और कहता जाता है भीतर, हाथ तब तक सिगरेट को खोल लेते हैं, हाथ | तुमसे भी कहा, तो तुम्हें होने की मजबूरी किसने कही कि तुम हो तब तक मुंह में लगा देते हैं, दूसरा हाथ माचिस जला देता है। जब | जाओ! उस आदमी ने कहा, यह सवाल कहां है, यह कोई सोचने तक वह भीतर यह सोच ही रहा है, नहीं हो सकता, तब तक शरीर | | की बात है! ये पैर वर्षों तक अटेंशन सुने हैं और अटेंशन हुए हैं। पीना ही शुरू कर देता है। तब वह जागकर देखता है, क्या हो गया | इसमें कोई गैप ही नहीं है बीच में। उधर अटेंशन, इधर अटेंशन यह? यह तो फिर सिगरेट पी ली? नहीं, यह नहीं हो सकता है! घटित होता है। तब निर्णय पक्का हो जाता है कि यह हो ही नहीं सकता है। करीब-करीब, वह जो कृष्ण कह रहे हैं, वह एक बहुत इसलिए कृष्ण कहते हैं कि इंद्रियां खींच-खींचकर गिरा देती हैं। मनोवैज्ञानिक सत्य है, कि आदमी की इंद्रियां, उसकी कंडीशनिंग
| और एक जन्म की नहीं, अनेक जन्मों की। हमने वही-वही. इंद्रियां क्या गिराएंगी! साधक का ही अतीत में इंद्रियों को दिया वही-वही किया है। हम वही-वही करते रहे हैं। हम उसी जाल में
साधक को।
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