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गीता दर्शन भाग-1 -
गांव में गिर पड़े, उसमें से पायलट को आप बाहर निकालें, तो जो आपको ही पता चलता है। बहुत मौकों पर तो आपको भी पता नहीं पहली जिज्ञासा उठेगी, वह यह कि वह स्त्री है या पुरुष! पहली चलता। बहुत मौकों पर तो यह इतना अचेतन होता है कि आपको जिज्ञासा कि वह स्त्री है या पुरुष! फिर दूसरी जिज्ञासाएं उठेगी। | भी पता नहीं चलता। दूसरों को तो पता चलता ही नहीं, खुद आप
निश्चित ही, स्त्री और पुरुष होना एक बायोलाजिकल फैक्ट है, | भी चूक जाते हैं। यह भीतर चलता रहता है और आप कहीं और एक जैविक तथ्य है। स्त्री और पुरुष के शरीर में फर्क है। लेकिन चलते रहते हैं। लेकिन कैसे यह शुरू हो रहा है? यह फर्क इतना प्रगाढ़ होकर दिखाई पड़े, इसकी अनिवार्यता उसमें तथ्य हैं जगत में, फिक्शंस वहां नहीं हैं, फैक्ट्स हैं। कल्पनाएं नहीं है। इसकी अनिवार्यता हमारे मन की चाह में है। | मनुष्य डालता है। सुंदर है–यात्रा शुरू हुई। सुंदर है, तो चाह है।
रास्ते से आप निकलते हैं, वृक्ष लगे हैं। आपने शायद ही कभी चाह है, तो भोग है। अब चिंतन शुरू हुआ। अब वासना चिंतन देखा हो कि सभी वृक्ष एक जैसे हरे नहीं हैं। हरेपन में भी हजार तरह बनेगी। चिंतन को कहें, काल्पनिक संग पैदा हुआ। जब काल्पनिक के हरेपन हैं। हरा कोई एक रंग नहीं है, हरा भी हजार रंग है। लेकिन | संग पैदा होगा, तो क्रिया भी आएगी, काम भी आएगा। और कृष्ण आपको नहीं दिखाई पड़ेंगे। एक चित्रकार निकले, तो उसे दिखाई | कहते हैं, काम आएगा, तो क्रोध भी आएगा। क्यों? काम आएगा, पड़ेगा, हजार रंग के हरे रंग हैं। दो हरे रंग एक-से हरे रंग नहीं हैं। तो क्रोध क्यों आ जाएगा? ये सामने दस वृक्ष हैं, दस तरह के हरे हैं। आपको नहीं दिखाई ___ असल में जो कामी नहीं है, वह क्रोधी नहीं हो सकता। क्रोध पड़ेगा। इन वृक्षों के नीचे से आप रोज निकलते हैं। इनका दस तरह काम का ही एक और ऊपर गया चरण है। क्रोध क्यों आता है? का हरा होना प्राकृतिक तथ्य है। लेकिन आपके भीतर चित्रकार | क्रोध का क्या गहरा रूप है? क्रोध आता ही तब है, जब काम में चाहिए, तब वह दिखाई पड़ेगा। उसकी खोज भी आपके भीतर कोई बाधा पड़ती है, अन्यथा क्रोध नहीं आता। जब भी आपकी चाह में चीज खोजती हो, तो ही दिखाई पड़ेगी, अन्यथा दिखाई नहीं पड़ेगी। | कोई बाधा डालता है-जो आप चाहते हैं, उसमें बाधा डालता चित्रकार को दिखाई पड़ेगा कि रंग ही रंग हैं, हरे रंग भी कई रंग हैं। है-तभी क्रोध आता है। जो आप चाहते हैं, अगर वह होता चला
स्त्री और पुरुष जैविक तथ्य है। लेकिन आपको इतना प्रगाढ़ जाए, तो क्रोध कभी नहीं आएगा। होकर दिखाई पड़ता है, यह जैविक तथ्य नहीं है, यह मानसिक तथ्य समझें आप कल्पवृक्ष के नीचे बैठे हैं, तो कल्पवृक्ष के नीचे क्रोध है, यह साइकोलाजिकल तथ्य है। इसमें कुछ न कुछ आपने जोड़ना | नहीं आ सकता, अगर कल्पवृक्ष नकली न हो। कल्पवृक्ष असली शुरू कर दिया। इसमें आपने कुछ डालना शुरू कर दिया। है, तो क्रोध नहीं आ सकता। क्योंकि क्रोध का उपाय नहीं है। आपने थोड़ा-सा आप भी इसमें प्रवेश कर गए; फिर चिंतन शुरू होगा। | चाहा कि यह सुंदर स्त्री मिले; मिल गई। आपने चाहा, यह मकान
यह तो हैपनिंग हुई, रास्ते पर स्त्री दिखी, पुरुष दिखा। फिर | मिले; मिल गया। आपने चाहा, यह धन मिले; मिल गया। आपने आपने कहा, सुंदर है, फिर आपकी यात्रा शुरू हुई चित्त की; अब | चाहा, सिंहासन मिले; मिल गया। आपने चाहा नहीं कि मिला नहीं, चिंतन होगा। सुंदर है, तो पीछे से चाह, पीछे से चाह चली आएगी। तो क्रोध के लिए जगह कहां है! चाह आएगी, तो भोग-कामना में ही, मन में ही, स्वप्न में ही | | क्रोध आता है, चाहा और नहीं मिले के बीच में जो गैप है, उस प्रतिमाएं निर्मित होनी शुरू हो जाएंगी।
| गैप का नाम, उस अंतराल का नाम क्रोध है। चाहा और नहीं मिला, अगर किसी दिन हम आदमी की खोपड़ी में विंडो बना | अटक गई चाह, रुक गई चाह, हिन्डर्ड डिजायर, चाह के बीच में सके–बना सकेंगे, अब तो सर्जन्स कहते हैं, बहुत कठिनाई नहीं | अड़ गया पत्थर, चाह के बीच में पड़ गई बाधा, क्रोध के वर्तुल को है; मनोवैज्ञानिक भी कहते हैं, बहुत कठिनाई नहीं है-अगर हम | पैदा कर जाती है। आदमी की खोपड़ी में एक कांच की खिड़की बना सके, जो कि हम | नदी भाग रही है सागर की तरफ, आ गया एक पत्थर बीच में, बना ही लेंगे, तब आपको मुसीबत पता चलेगी। अगर बाहर से भी | तो सब खड़बड़ हो जाता है। आवाज हो जाती है। पत्थर न हो तो आपकी खोपड़ी में झांका जा सके कि भीतर क्या-क्या हो रहा है! | नदी में आवाज नहीं होती। नदी आवाज नहीं करती, पत्थर के साथ
एक स्त्री जा रही है, तत्काल आपके मन के भीतर बहुत कुछ टकराकर आवाज हो जाती है। होना शुरू हो गया है। यह होना किसी को पता नहीं चलता, | अगर काम की नदी बहती रहे और कोई बाधा न हो. तो क्रोध