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- गीता दर्शन भाग-1 AM
अब गिरा, अब गिरा-भीतर आप डरते ही रहेंगे। जितना भीतर | | है जिसके ज्ञान की ज्योति थिर हो गई? वह कौन है जिसकी चेतना डरेंगे, उतनी बाहर दृढ़ता दिखलाएंगे-अपने को धोखा देने के | का दीया अकंप है? वह कौन है जिसे समाधिस्थ कहते हैं ? उसकी लिए, दूसरों को धोखा देने के लिए।
| भाषा क्या है? वह उठता कैसे है? वह चलता कैसे है? वह बोलता लेकिन कृष्ण जिस दृढ़ता की बात कर रहे हैं, वह प्रवंचना नहीं कैसे है? उसका होना क्या है? उसका व्यवहार क्या है? उसे हम है, वह रूपांतरण है। लेकिन वह कब फलित होता है? वह तभी कैसे पहचानें? फलित होता है, वह तभी फलित होता है, जब चित्त राग और विराग | दो बातें वह पूछ रहा है। एक तो वह यह पूछ रहा है, प्रज्ञा का से, जब बुद्धि चुनाव से, और जब मन विषयों के बीच कंपन को | स्थिर हो जाना, स्थित हो जाना, ठहर जाना क्या है? लेकिन वह छोड़कर अकंप हो जाता है, जब मन इच्छाओं के बीच कंपन को | घटना तो बहुत आंतरिक है। वह घटना तो शायद स्वयं पर ही छोड़कर अनिच्छा को उपलब्ध हो जाता है। अनिच्छा का मतलब | घटेगी, तभी पता चलेगा। वह शायद कृष्ण भी नहीं बता पाएंगे कि विपरीत इच्छा नहीं, इच्छा के अभाव को उपलब्ध हो जाता है। तब क्या है। इसलिए अर्जुन तत्काल-और इसमें अर्जुन बहुत ही वे कहते हैं कि अर्जुन, ऐसी अकंप चित्त की दशा में जीवन की बुद्धिमानी का सबूत देता है। एक बहुत इंटेलिजेंट, बहुत ही विचार संपदा की उपलब्धि है। तब चित्त दृढ़ है। तब चित्त पानी पर नहीं, | का, विवेक का सबूत देता है। प्रश्न के पहले हिस्से में पूछता है कि चट्टानों पर है। और तब आकाश में शिखर उठ सकता है। और तब प्रज्ञा का थिर हो जाना क्या है कृष्ण ? लेकिन जैसे किसी अनजान पताका, जीवन की, अस्तित्व की ऊंचाइयों में फहरा सकती है। | मार्ग से उसको भी एहसास होता है कि प्रश्न शायद अति-प्रश्न है,
शायद प्रश्न का उत्तर नहीं हो सकता है। क्योंकि घटना इतनी
आंतरिक है कि शायद बाहर से न बताई जा सके। अर्जुन उवाच
— इसलिए ठीक प्रश्न के दूसरे हिस्से में वह यह पूछता है कि बताएं स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव। यह भी कि बोलता कैसे है वह, जिसकी प्रज्ञा थिर हो गई ? जो स्थितीः किं प्रभाषेत किमासीत ब्रजेत किम् ।। ५४ ।। | समाधि को उपलब्ध हुआ, समाधिस्थ है, वह बोलता कैसे? इस प्रकार भगवान के वचनों को सुनकर अर्जुन ने पूछाः | डोलता कैसे? चलता कैसे? उठता कैसे? उसका व्यवहार क्या है?' हे केशव, समाधि में स्थित स्थिर प्रज्ञा वाले पुरुष का क्या | इस दूसरे प्रश्न में वह यह पूछता है कि बाहर से भी अगर हम लक्षण है और स्थिरबुद्धि पुरुष कैसे बोलता है, जानना चाहें, तो वह कैसा है? भीतर से जानना चाहें, तो क्या है? कैसे बैठता है, कैसे चलता है? | वह घटना क्या है? वह हैपनिंग क्या है? जिसको समाधिस्थ कहते
हैं, वह घटना क्या है? यह भीतर से। लेकिन अगर यह न भी हो
सके, तो जब किसी व्यक्ति में वैसी घटना घट जाती है, तो उसके 27 र्जुन पहली बार, अब तक अर्जुन का जो वर्तुल- बाहर क्या-क्या फलित होता है? उस घटना के चारों तरफ जो ा व्यक्तित्व था, उससे उठकर प्रश्न पूछ रहा है। पहली परिणाम होते हैं, वे क्या हैं?
बार। अब तक जो भी उसने पूछा था, वह पुराना | यह प्रश्न पहला प्रश्न है, जिसने कृष्ण को आनंदित किया होगा। आदमी पूछ रहा था, वह पुराना अर्जुन पूछ रहा था। पहली बार | यह पहला प्रश्न है, जिसने कृष्ण के हृदय को पुलकित कर दिया उसके प्रश्न ने कृष्ण को छूने की कोशिश की है—पहली बार। इस होगा। अब तक के जो भी प्रश्न थे, अत्यंत रोगग्रस्त चित्त से उठे वचन से पहली बार वह कृष्ण के निकट आ रहा है। पहली बार प्रश्न थे। अब तक जो प्रश्न थे, वे अर्जुन के जस्टीफिकेशन के लिए अर्जुन अर्जुन की तरह नहीं पूछ रहा है, पहली बार अर्जुन कृष्ण के | थे। वह जो चाहता था, उसके ही समर्थन के लिए थे। अब तक जो निकट होकर पूछ रहा है। पहली बार कृष्ण अर्जुन के भीतर प्रविष्ट | प्रश्न थे, उनमें अर्जुन ने चाहा था कि कृष्ण, वह जैसा है, वैसे ही हुए प्रतीत होते हैं।
अर्जुन के लिए कोई कंसोलेशन, कोई सांत्वना बन जाएं। यह सवाल गहरा है। वह पछता है. स्थितप्रज्ञ किसे कहते हैं? अब यह पहला प्रश्न है, जिससे अर्जन उस मोह को छोड़ता है किसे कहते हैं, जिसकी प्रज्ञा स्थिर हो गई? वह कौन है? वह कौन | कि मैं जैसा हूं, वैसे के लिए सांत्वना हो। यह पहला प्रश्न है जिससे
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