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Om काम, द्वंद्व और शास्त्र से—निष्काम, निर्द्वद्व और स्वानुभव की ओर -
तक फैल जाता है। और एक व्यक्ति के भीतर भी जो स्वर बजता | जिनके पास थोड़ा संवेदन से भरा हुआ मन है, जो रिस्पांसिव हैं, है आत्मा का, तो उसकी स्वरलहरी दूसरों के प्राणों को भी झंकार | वे ही पकड़ पाते हैं। से भर जाती है। और एक व्यक्ति के जीवन में जब आनंद फलित उसमें जो पकड़ में आता है, उसको कृष्ण कह रहे हैं योगक्षेम। होता है, तो दूसरों के जीवन में भी आनंद के फूल थोड़े-से जरूर | वे जो पकड़ पाते हैं, उनको पता लगता है, सब बदल गया। हवा बरस जाते हैं।
| और हो गई, आकाश और हो गया, सब और हो गया। यह जो सब इसलिए अर्जुन को तो कहते हैं, तू आत्मवान हो जाएगा, | और हो जाने का अनुभव है, इस अनुभव को कृष्ण कह रहे हैं शक्ति-संपन्न हो जाएगा। लेकिन जब शक्ति-संपन्न होगा कोई, योगक्षेम। उसे स्मरण दिलाना उचित है। भीतर आत्मवान होगा कोई, तो इसे एक और दूसरी तरफ से देखने एक बात और खयाल में ले लेनी जरूरी है कि वे कह रहे हैं, तू की कोशिश करें।
शक्ति-संपन्न हो जाएगा। जब कोई व्यक्ति आत्महीन होता है, जब कोई व्यक्ति अपनी __ असल में मनुष्य तब तक शक्ति-संपन्न होता ही नहीं, जब तक आत्मा को खो देता है, तो कभी आपने खयाल किया है कि उसके | स्वयं होता है, तब तक वह शक्ति-विपन्न ही होता है। असल में आस-पास दुख, पीड़ा का जन्म होना शुरू हो जाता है! जब कोई | स्वयं होना, अहंकार-केंद्रित होना, दीन होने की रामबाण व्यवस्था एक व्यक्ति अपनी आत्मा को खोता है, तो अपने आस-पास दुख | है। जितना मैं अहंकार से भरा हूं, जितना मैं हूं, उतना ही मैं दीन हूं। का एक वर्तुल पैदा कर लेता है! निर्भर करेगा कि कितनी उसने | | जितना मेरा अहंकार छूटता और मैं आत्मवान होता हूं, जितना ही आत्मा खोई है।
मैं मिटता, उतना ही मैं सर्व से एक होता हूं। तब शक्ति मेरी नहीं, __ अगर एक हिटलर जैसा आदमी पृथ्वी पर पैदा हो, तो विराट | ब्रह्म की हो जाती है। तब मेरे हाथ मुझसे नहीं चलते, ब्रह्म से चलते दुख का वर्तुल चारों ओर फलित होता है। योगक्षेम का पता ही नहीं हैं। तब मेरी वाणी मुझसे नहीं बोलती, ब्रह्म से बोलती है। तब मेरा चलता, सब खो जाता है। उससे उलटा घटित होने लगता है। उठना-बैठना मेरा नहीं, उसका ही हो जाता है। अकल्याण और अमंगल चारों ओर फैल जाता है। फैलेगा। चंगेज स्वभावतः, उससे बड़ी और शक्ति-संपन्नता क्या होगी? जिस खां जैसा आदमी पैदा होता है, तो जहां से गुजर जाता है, वहां केशर दिन व्यक्ति अपने को समर्पित कर देता सर्व के लिए, उस दिन सर्व नहीं बरसती, सिर्फ खून! सिर्फ खून ही बहता है।
की सारी शक्ति उसकी अपनी हो जाती है। उस दिन होता है वह बरे आदमियों को हम भलीभांति पहचानते हैं। उनके आस-पास शक्ति-संपन्न। जो घटनाएं घटती हैं, उन्हें भी पहचानते हैं। स्वभावतः, बुरे आदमी शक्ति यहां पावर का प्रतीक नहीं है। शक्ति उन अर्थों में नहीं, के आस-पास जो घटना घटती है, वह बहुत मैटीरियल होती है, जैसे किसी पद पर पहुंचकर कोई आदमी शक्तिशाली हो जाता है; बहुत भौतिक होती है, दिखाई पड़ती है।
कि कोई आदमी कल तक सड़क पर था, फिर मिनिस्टर हो गया, चंगेज खां निकले आपके गांव से, तो मुश्किल है कि आप न तो शक्तिशाली हो गया। यह शक्ति व्यक्ति में नहीं होती, यह देख पाएं। क्योंकि घटनाएं बहुत भौतिक, मैटीरियल घटेंगी। चंगेज | शक्ति पद में होती है। इसको कुर्सी से नीचे उतारो, यह फिर विपन्न खां जिस गांव से निकलता, उस गांव के सारे बच्चों को कटवा | हो जाता है। यह शक्ति इसमें होती ही नहीं, यह इसके कुर्सी पर डालता। भालों पर बच्चों के सिर लगवा देता। और जब चंगेज खां | | बैठने से होती है। से किसी ने पूछा कि तुम क्या कर रहे हो? दस-दस हजार बच्चे ___ कभी सर्कस में, कार्निवाल में आपने इलेक्ट्रिक चेयर देखी हो, भालों पर लटके हैं! तो चंगेज खां ने हंसकर कहा कि लोगों को | कुर्सी जो इलेक्ट्रिफाइड होती है। उस पर एक लड़की या लड़के को पता होना चाहिए कि चंगेज खां निकल रहा है।
बिठा रखते हैं। वह लड़का भी इलेक्ट्रिफाइड हो जाता है। फिर उस बुद्ध भी निकलते हैं किसी गांव से, कृष्ण भी निकलते हैं किसी | लड़के को छुएं, तो शॉक लगता है। वह लड़के का शॉक नहीं है, गांव से, जीसस भी निकलते हैं किसी गांव से-घटनाएं | कुर्सी का शॉक है। लड़के को कुर्सी से बाहर उतारें, गया। मोरारजी इम्मैटीरियल घटती हैं, घटनाएं मैटीरियल नहीं होती। इसलिए | भाई कुर्सी पर और मोरारजी भाई कुर्सी के बाहर। इलेक्ट्रिफाइड जिनके पास थोड़ी संवेदनशील चेतना है, वे ही पकड़ पाते हैं। चेयर! सर्कस है! मगर वह जो कुर्सी पर बैठा हुआ लड़का या
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