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IY फलाकांक्षारहित कर्म, जीवंत समता और परम पद -
बच जाओगे, आधा राज्य भी तुम्हें भेंट कर दूंगा।
| जितना फलाकांक्षा से मुक्त चित्त, उतना ही पूर्णकर्मी होता है। . वजीर घोड़े पर बैठकर घर आ गया। पत्नी-बच्चे रो रहे थे, | क्योंकि उसके पास कर्म ही बचता है, फल तो होता नहीं, जिसमें बिलख रहे थे। आखिरी सत थी। घर आए वजीर को देखकर सब बंटवारा कर सके। सारी चेतना, सारा मन, सारी शक्ति, सब कुछ चकित हुए। कहा, कैसे आ गए? वजीर ने कहानी बताई। पत्नी और इसी क्षण, अभी कर्म पर लग जाती है। जोर से रोने लगी। उसने कहा, तुम पागल तो नहीं हो? क्योंकि मैं | स्वभावतः, जिसका सब कुछ कर्म पर लग जाता है, उसके फल भलीभांति जानती हूं, तुम कोई कला नहीं जानते, जिससे घोड़ा उड़ना | के आने की संभावना बढ़ जाती है। स्वभावतः, जिसका सब कुछ सीख सके। व्यर्थ ही झूठ बोले। अब यह साल तो हमें मौत से भी | कर्म पर नहीं लगता, उसके फल के आने की संभावना कम हो बदतर हो जाएगा। और अगर मांगा ही था समय. तो इतनी कंजसी | जाती है। क्या की? बीस, पच्चीस, तीस वर्ष मांग सकते थे। एक वर्ष तो ऐसे ___ इसलिए तीसरा सूत्र आपसे कहता हूं कि जो जितनी फलाकांक्षा चुक जाएगा कि अभी आया अभी गया, रोते-रोते चुक जाएगा।। | से भरा है, उतनी ही फल के आने की उम्मीद कम है। और जिसने
उस वजीर ने कहा, फिक्र मत कर; एक वर्ष बहुत लंबी बात है। जितनी फल की आकांक्षा छोड़ दी है, उतनी ही फल के आने की शायद, शायद बुद्धिमानी के बुनियादी सूत्र का उसे पता था। और उम्मीद ज्यादा है। यह जगत बहुत उलटा है। और परमात्मा का ऐसा ही हुआ। वर्ष बड़ा लंबा शुरू हुआ। पत्नी ने कहा, कैसा गणित साधारण गणित नहीं है, बहुत असाधारण गणित है। लंबा! अभी चुक जाएगा। वजीर ने कहा, क्या भरोसा है कि मैं बचूं ___ जीसस का एक वचन है कि जो बचाएगा, उससे छीन लिया वर्ष में? क्या भरोसा है, घोड़ा बचे? क्या भरोसा है, राजा बचे? | जाएगा। जो दे देगा, उसे सब कुछ दे दिया जाएगा। जीसस ने कहा बहुत-सी कंडीशंस पूरी हों, तब वर्ष पूरा होगा। और ऐसा हुआ कि | है, जो अपने को बचाता है, व्यर्थ ही अपने को खोता है। क्योंकि नवजार बचा, न घोड़ा बचा, न राजा बचा। वह वर्ष के पहले तीनों उसे परमात्मा के गणित का पता नहीं है। जो अपने को खोता है, ही मर गए।
वह पूरे परमात्मा को ही पा लेता है। कल की कोई भी अपेक्षा नहीं की जा सकती। फल सदा कल है, | तो जब कर्म का अधिकार है और फल की आकांक्षा व्यर्थ है, फल सदा भविष्य में है। कर्म सदा अभी है, यहीं। कर्म किया जा | ऐसा कृष्ण कहते हैं, तो यह मत समझ लेना कि फल मिलता नहीं; सकता है। कर्म वर्तमान है, फल भविष्य है। इसलिए भविष्य के | ऐसा भी मत समझ लेना कि फल का कोई मार्ग नहीं है। कर्म ही लिए आशा बांधनी, निराशा बांधनी है। कर्म अभी किया जा सकता | फल का मार्ग है; आकांक्षा, फल की आकांक्षा, फल का मार्ग नहीं है, अधिकार है। वर्तमान में हम हैं। भविष्य में हम होंगे, यह भी | है। इसलिए कृष्ण जो कहते हैं, उससे फल की अधिकतम, तय नहीं। भविष्य में क्या होगा, कुछ भी तय नहीं। हम अपनी ओर आप्टिमम संभावना है मिलने की। और हम जो करते हैं, उससे से कर लें, इतना काफी है। हम मांगें न, हम अपेक्षा न रखें, हम फल के खोने की मैक्सिमम, अधिकतम संभावना है और लघुतम, फल की प्रतीक्षा न करें, हम कर्म करें और फल प्रभु पर छोड़ मिनिमम मिलने की संभावना है। दें-यही बुद्धिमानी का गहरे से गहरा सूत्र है।
जो फल की सारी ही चिंता छोड़ देता है, अगर धर्म की भाषा में इस संबंध में यह बहुत मजेदार बात है कि जो लोग जितनी ज्यादा | कहें, तो कहना होगा, परमात्मा उसके फल की चिंता कर लेता है। फल की आकांक्षा करते हैं, उतना ही कम कर्म करते हैं। असल में असल में छोड़ने का भरोसा इतना बड़ा है, छोड़ने का संकल्प इतना फल की आकांक्षा में इतनी शक्ति लग जाती है कि कर्म करने योग्य बड़ा है, छोड़ने की श्रद्धा इतनी बड़ी है कि अगर इतनी बड़ी श्रद्धा बचती नहीं। असल में फल की आकांक्षा में मन इतना उलझ जाता के लिए भी परमात्मा से कोई प्रत्युत्तर नहीं है, तो फिर परमात्मा नहीं है, भविष्य की यात्रा पर इतना निकल जाता है कि वर्तमान में होता | हो सकता है। इतनी बड़ी श्रद्धा के लिए कि कोई कर्म करता है ही नहीं। असल में फल की आकांक्षा में चित्त ऐसा रस से भर जाता और फल की बात ही नहीं करता, कर्म करता है और सो जाता है है कि कर्म विरस हो जाता है, रसहीन हो जाता है।
| और फल का स्वप्न भी नहीं देखता-इतनी बड़ी श्रद्धा से भरे हुए इसलिए यह बहुत मजे का दूसरा सूत्र आपसे कहता हूं कि चित्त को भी अगर फल न मिलता हो, तो फिर परमात्मा के होने का जितना फलाकांक्षा से भरा चित्त, उतना ही कर्महीन होता है। और कोई कारण नहीं है। इतनी श्रद्धा से भरे चित्त के चारों ओर से समस्त
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