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mm गीता दर्शन भाग-1 AM
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कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । | भी होगी, सूरज भी उगेगा, हम भी होंगे, लेकिन वचन को पूरा करने मा कर्मफलहेतुर्भूमा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ।। ४७ ।। | की आकांक्षा होगी? जरूरी नहीं है। एक छोटी-सी कहानी कहूं। इससे तेरा कर्म करने मात्र में ही अधिकार होवे, फल में सुना है मैंने कि चीन में एक सम्राट ने अपने मुख्य वजीर को, कभी नहीं, और तू कमों के फल की वासना वाला भी मत | बड़े वजीर को फांसी की सजा दे दी। कुछ नाराजगी थी। लेकिन हो तथा तेरी कर्म न करने में भी प्रीति न होवे। | नियम था उस राज्य का कि फांसी के एक दिन पहले स्वयं सम्राट
फांसी पर लटकने वाले कैदी से मिले, और उसकी कोई आखिरी
आकांक्षा हो तो पूरी कर दे। निश्चित ही, आखिरी आकांक्षा जीवन क र्मयोग का आधार-सूत्रः अधिकार है कर्म में, फल में को बचाने की नहीं हो सकती थी। वह बंदिश थी। उतनी भर पर नहीं; करने की स्वतंत्रता है, पाने की नहीं। क्योंकि आकांक्षा नहीं हो सकती थी।
करना एक व्यक्ति से निकलता है, और फल समष्टि सम्राट पहुंचा कल सुबह फांसी होगी—आज संध्या, और से निकलता है। मैं जो करता हूं, वह मुझसे बहता है; लेकिन जो अपने वजीर से पूछा कि क्या तुम्हारी इच्छा है? पूरी करूं! क्योंकि होता है, उसमें समस्त का हाथ है। करने की धारा तो व्यक्ति की | कल तुम्हारा अंतिम दिन है। वजीर एकदम दरवाजे के बाहर की तरफ है, लेकिन फल का सार समष्टि का है। इसलिए कृष्ण कहते हैं, | | देखकर रोने लगा। सम्राट ने कहा, तुम और रोते हो? कभी मैं करने का अधिकार है तुम्हारा, फल की आकांक्षा अनधिकृत है। | | कल्पना भी नहीं कर सकता, तुम्हारी आंखें और आंसुओं से भरी!
लेकिन हम उलटे चलते हैं, फल की आकांक्षा पहले और कर्म | बहुत बहादुर आदमी था। नाराज सम्राट कितना ही हो, उसकी पीछे। हम बैलगाड़ी को आगे और बैलों को पीछे बांधते हैं। कृष्ण बहादुरी पर कभी शक न था। तुम और रोते हो! क्या मौत से डरते कह रहे हैं, कर्म पहले, फल पीछे आता है-लाया नहीं जाता। | हो? उस वजीर ने कहा, मौत! मौत से नहीं रोता, रोता किसी और लाने की कोई सामर्थ्य मनुष्य की नहीं है; करने की सामर्थ्य मनुष्य | | बात से हूं। सम्राट ने कहा, बोलो, मैं पूरा कर दूं। वजीर ने कहा, की है। क्यों? ऐसा क्यों है? क्योंकि मैं अकेला नहीं हूं, विराट है। नहीं, वह पूरा नहीं हो सकेगा, इसलिए जाने दें। सम्राट जिद्द पर
मैं सोचता हूं, कल सुबह उलूंगा, आपसे मिलूंगा। लेकिन कल अड़ गया कि क्यों नहीं हो सकेगा? आखिरी इच्छा मुझे पूरी ही . सुबह सूरज भी उगेगा? कल सुबह भी होगी? जरूरी नहीं है कि | करनी है। कल सुबह हो ही। मेरे हाथ में नहीं है कि कल सूरज उगे ही। एक तो उस वजीर ने कहा, नहीं मानते हैं तो सुन लें, कि आप जिस दिन तो ऐसा जरूर आएगा कि सूरज डूबेगा और उगेगा नहीं। वह घोड़े पर बैठकर आए हैं, उसे देखकर रोता हूं। सम्राट ने कहा, पागल दिन कल भी हो सकता है।
| हो गए ? उस घोड़े को देखकर रोने जैसा क्या है? वजीर ने कहा, मैंने वैज्ञानिक कहते हैं कि अब यह सूरज चार हजार साल से ज्यादा | | एक कला सीखी थी; तीस वर्ष लगाए उस कला को सीखने में। वह नहीं चलेगा। इसकी उम्र चुकती है। यह भी बूढ़ा हो गया है। इसकी | कला थी कि घोड़ों को आकाश में उड़ना सिखाया जा सकता है, किरणें भी बिखर चुकी हैं। रोज बिखरती जा रही हैं न मालूम | | लेकिन एक विशेष जाति के घोड़े को। उसे खोजता रहा, वह नहीं कितने अरबों वर्षों से! अब उसके भीतर की भट्ठी चुक रही है, अब मिला। और कल सुबह मैं मर रहा हूं, जो सामने घोड़ा खड़ा है, वह उसका ईंधन चुक रहा है। चार हजार साल हमारे लिए बहुत बड़े हैं, उसी जाति का है, जिस पर आप सवार होकर आए हैं। सूरज के लिए ना-कुछ। चार हजार साल में सूरज ठंडा पड़ | सम्राट के मन को लोभ पकड़ा। आकाश में घोड़ा उड़ सके, तो जाएगा-किसी भी दिन। जिस दिन ठंडा पड़ जाएगा, उस दिन | | उस सम्राट की कीर्ति का कोई अंत न रहे पृथ्वी पर। उसने कहा, उगेगा नहीं; उस दिन सुबह नहीं होगी। उसकी पहली रात भी लोगों | | फिक्र छोड़ो मौत की! कितने दिन लगेंगे, घोड़ा आकाश में उड़ना ने वचन दिए होंगे कि कल सुबह आते हैं—निश्चित। | सीख सके? कितना समय लगेगा? उस वजीर ने कहा, एक वर्ष।
लेकिन छोड़ें! सूरज चार हजार साल बाद डूबेगा और नहीं सम्राट ने कहा, बहुत ज्यादा समय नहीं है। अगर घोड़ा उड़ सका उगेगा। हमारा क्या पक्का भरोसा है कि कल सुबह हम ही उगेंगे! | तो ठीक, अन्यथा मौत एक साल बाद। फांसी एक साल बाद भी कल सुबह होगी, पर हम होंगे? जरूरी नहीं है। और कल सुबह लग सकती है, अगर घोड़ा नहीं उड़ा। अगर उड़ा तो फांसी से भी
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