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SN निष्काम कर्म और अखंड मन की कीमिया -
उनके पीछे खड़ी मिलती हैं। यहीं से समझना उचित होगा। क्योंकि प्रश्नः भगवान श्री, क्या निष्काम भावना से हमारी निष्काम कर्म का तो अंश भी हमें पता नहीं, लेकिन सकाम कर्म के | प्रगति नहीं रुक जाती है? काफी अंश हमें पता हैं। यहीं से समझना उचित होगा। उसके विपरीत निष्काम कर्म की स्थिति है। कितनी क्षुद्र अपेक्षाएं कितने विराट दुख को पैदा करती चली जाती हैं!
17 छ रहे हैं कि निष्काम भावना से हमारी प्रगति नहीं रुक यह जो इतना बड़ा महाभारत हुआ, जानते हैं कितनी क्षुद्र-सी प जाती है? घटना से शुरू हुआ? इतना बड़ा यह युद्ध, यह इतनी-सी क्षुद्र
on प्रगति का क्या मतलब होता है? अगर प्रगति से घटना से शुरू हुआ! बहुत ही क्षुद्र घटना से, मजाक से, एक जोक। मतलब हो कि बहुत धन हो, बड़ा मकान हो, जायदाद हो, जमीन दुनिया के सभी युद्ध मजाक से शुरू होते हैं।
हो, तो शायद–तो शायद-थोड़ी रुकावट पड़ सकती है। लेकिन दुर्योधन आया है। और पांडवों ने एक मकान बनाया है। और अगर प्रगति से अर्थ है, शांति हो, आनंद हो, प्रेम हो, जीवन में अंधे के बेटे की वे मजाक कर रहे हैं। उसमें उन्होंने आईने लगाए प्रकाश हो, ज्ञान हो, तो रुकावट नहीं पड़ती, बड़ी गति मिलती है। हुए हैं। और इस तरह से लगाए हुए हैं कि दुर्योधन को, जहां इसलिए आपकी प्रगति का क्या मतलब है, इस पर निर्भर करेगा। दरवाजा नहीं है, वहां दरवाजा दिखाई पड़ जाता है; जहां पानी है, प्रगति से आपका क्या मतलब है? अगर प्रगति से यही मतलब वहां पानी दिखाई नहीं पड़ता। उसका दीवार से सिर टकरा जाता है, है जो बाहर इकट्ठा होता है, तब तो शायद थोड़ी बाधा पड़ सकती पानी में गिर पड़ता है। द्रौपदी हंसती है। वह हंसी सारे महाभारत के है। लेकिन बाहर सब कुछ भी मिल जाए–सारा जगत, सारी युद्ध का मूल है। उस हंसी का बदला फिर द्रौपदी को नंगा करके संपदा-और भीतर एक भी किरण शांति की न फूटे, तो मैं तुमसे चुकाया जाता है। फिर यह बदला चलता है। बड़ी ही क्षुद्र-सी कहता हूं कि अगर कोई तुम्हें शांति की एक किरण देने को राजी हो घटना, जस्ट ए जोक, एक मजाक, लेकिन बहुत महंगा पड़ा है। जाए और कहे कि छोड़ दो यह सब राज्य और यह सब धन और मजाक बढ़ता ही चला गया। फिर उसके कोई आर-पार न रहे और | यह सब दौलत, तो तुम छोड़ पाओगे। छोड़ सकोगे। एक छोटी-सी उसने इस पूरे मुल्क को मथ डाला।
शांति की लहर भी इस जगत के पूरे साम्राज्य के समतुल नहीं है। एक स्त्री का हंसना! एक घर में चचेरे भाइयों की आपसी लेकिन हम प्रगति से एक ही मतलब लेते हैं। लेकिन इसका यह मजाक! कभी सोचा भी न होगा कि हंसी इतनी महंगी पड़ सकती | | भी मतलब नहीं है कि मैं ऐसा कह रहा हूं कि जो निष्काम कर्म में है। लेकिन उन्हें पता नहीं कि दुर्योधन की भी अपेक्षाएं हैं। चोट | गति करेगा, अनिवार्य रूप से दीन और दरिद्र हो जाएगा। यह मैं अपेक्षाओं को लग गई। चोट अपेक्षाओं को लग गई। दुर्योधन ने | नहीं कह रहा हूं। क्योंकि मन शांत हो, तो दरिद्र होने की कोई सोचा भी नहीं था कि उस पर हंसा जाएगा निमंत्रण देकर। उसने अनिवार्यता नहीं है। क्योंकि शांत मन जिस दिशा में भी काम सोचा भी नहीं था कि उसका इस तरह मखौल और मजाक उड़ाया करेगा, ज्यादा कुशल होगा। धन भी कमाएगा, तो भी ज्यादा कुशल जाएगा। वह आया होगा सम्मान लेने; मिला मजाक। उपद्रव शुरू होगा। हां, एक फर्क पड़ेगा कि धन कमाने का अर्थ चोरी नहीं हो हो गया।
सकेगा। शांत मन के लिए धन कमाने का अर्थ धन कमाना ही फिर उस उपद्रव के भयंकर परिणाम हुए। जिन परिणामों से मैं होगा, चोरी नहीं। धन निर्मित करना होगा। नहीं सोचता हूं कि आज तक भी भारत पूरी तरह मुक्त हो पाया है। - शांत मन हो, तो आदमी जो भी करेगा, कुशल हो जाता है। वह महाभारत में जो घटित हुआ था, उसके परिणाम की प्रतिध्वनि उसके मित्र ज्यादा होंगे, उसकी कुशलता ज्यादा होगी, उसके पास आज भी भारत के प्राणों में चलती है।
शक्ति ज्यादा होगी, समझ ज्यादा होगी। इसलिए ऐसा नहीं कह रहा जगत में बड़े छोटे-से, छोटे-से कारण सब कुछ करते हैं। हूं कि वैसा आदमी अनिवार्य रूप से दरिद्र होगा। भीतरी तो समृद्धि
सकाम का हमें पता है, निष्काम का हमें कुछ पता नहीं है। होगी ही, लेकिन भीतरी समृद्धि बाहरी समृद्धि को लाने का भी निष्काम कृत्य को भी ठीक ऐसे ही समझें, इसकी उलटी दिशा में। | आधार बनती है, लेकिन गौण होगी। भीतरी समृद्धि के बचते, जरा-सा निष्काम भाव, और बड़े-बड़े भय जीवन के दूर हो जाते हैं। भीतरी समृद्धि के रहते हुए मिलती होगी–नाट एट दि कास्ट,
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