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HTRA निष्काम कर्म और अखंड मन की कीमिया -
जो है, वह सकाम कर्म की छाया है। निष्काम कर्म की कोई छाया हुई, अपेक्षाएं एकदम विस्तार लेने लगती हैं। शिक्षित आदमी को नहीं बनती, कोई विषाद नहीं बनता।
शांत करना मुश्किल है। मैं नहीं कहता कि शिक्षित नहीं करना ___ इसलिए एक बहुत मज़े की बात ध्यान में ले लेनी जरूरी है, चाहिए; यह मैं नहीं कह रहा हूं। शिक्षित आदमी को शांत करना गरीब आदमी ज्यादा विषाद को उपलब्ध नहीं होता, अमीर आदमी मुश्किल है। अभी तक तो कोई उपाय नहीं खोजा जा सका। ज्यादा विषाद को उपलब्ध होता है। होना नहीं चाहिए ऐसा। एक बहुत बड़े विचारक ने तो एक किताब लिखी है, कंपल्सरी बिलकुल नियम को तोड़कर चलती हुई बात मालूम पड़ती है। गरीब मिसएजुकेशन। जिसको हम अनिवार्य शिक्षा कहते हैं, वह उसको समाज ज्यादा परेशान नहीं होते, अमीर समाज बहुत परेशान हो अनिवार्य कुशिक्षा...। क्योंकि अगर अंततः आदमी सिर्फ दुखी जाते हैं। क्या कारण होगा?
और अशांत ही होता हो, तो अ, ब, स, द सीख लेने से भी क्या असल में गरीब आदमी अनंत अपेक्षा की हिम्मत नहीं जुटा | हो जाने वाला है! अगर समृद्धि सिर्फ विषाद ही लाती हो, तो ऐसी पाता। वह जानता है अपनी सीमा को। वह जानता है कि क्या हो समृद्धि से दरिद्रता बेहतर मालूम पड़ सकती है। सकता है, क्या नहीं हो सकता है। अपने वश के बाहर है बात, वह | लेकिन राज क्या है? सीक्रेट सिर्फ इतना-सा है, समृद्धि से कोई अनंत अपेक्षा की रेखा नहीं बनाता। इसलिए फ्रस्ट्रेशन को उपलब्ध | लेना-देना नहीं है, अगर अपेक्षा की धारा बहुत ज्यादा न हो, तो नहीं होता। इसलिए विषाद को उपलब्ध नहीं होता। अमीर आदमी, | समृद्ध आदमी भी शांत हो सकता है। और अगर अपेक्षा की धारा जिसके पास सुविधा है, संपन्नता है, अपेक्षा की रेखा को अनंत गुना बहुत बड़ी हो, तो दरिद्र भी अशांत हो जाएगा। अगर अपेक्षा शून्य बड़ा करने की हिम्मत जुटा लेता है। बस, उसी के साथ विषाद | हो, तो शिक्षित भी शांत हो सकता है। अगर अपेक्षा विराट हो, तो उत्पन्न हो जाता है।
अशिक्षित भी अशांत हो जाता है। प्रश्न शिक्षित-अशिक्षित, धन . पाल गुडमेन ने अमेरिका के संबंध में एक किताब लिखी है, और दरिद्रता का नहीं है। प्रश्न सदा ही गहरे में अपेक्षा का है, ग्रोइंग अप एब्सर्ड। उसमें उसने एक बहुत मजे की बात कही है। एक्सपेक्टेशन का है। उसने कहा है कि मनुष्य जाति ने जिन-जिन सुविधाओं की आकांक्षा | तो वह कृष्ण कह रहे हैं कि निष्काम कर्म की तुझसे मैं बात कहता की थी, वे सब पूरी हो गई हैं अमेरिका में। मनुष्य जाति ने जो-जो हूं और इसलिए कहता हूं, क्योंकि निष्काम कर्म को करने वाला सपने देखे थे, उनसे भी आगे अमेरिका में सफलता मिल गई। व्यक्ति कभी भी असफलता को उपलब्ध नहीं होता है। यह पहली लेकिन अमेरिका में जो आदमी है, आज उससे दुखी आदमी बस्तर बात। और दूसरी बात वे यह कह रहे हैं कि निष्काम कर्म में के जंगल में भी नहीं है। क्या, हो क्या गया? यह एब्सर्डिटी कहां | | छोटा-सा भी विघ्न, छोटी-सी भी बाधा नहीं आती। क्यों नहीं से आई? यह अजीब बात है कि जो-जो आदमी करोड़ों साल से | आती? निष्काम कर्म में ऐसी क्या कीमिया है, क्या केमिस्ट्री है कि अपेक्षा कर रहा था, वह सब फलित हो गई है। सब सपने पूरे हो | बाधा नहीं आती, कोई प्रत्यवाय पैदा नहीं होता! गए हैं। यह क्या हो गया लेकिन? हुआ क्या?
है। बाधा भी तो अपेक्षा के कारण ही दिखाई पड़ती है। जिसकी हुआ यह कि सब शक्ति हाथ में होने पर अपेक्षाएं एकदम अनंत | | अपेक्षा नहीं है, उसे बाधा भी कैसे दिखाई पड़ेगी? गंगा बहती है हो गईं। इसलिए जो भी पास में है, एकदम छोटा पड़ गया। बस्तर | | सागर की तरफ, अगर वह पहले से एक नक्शा बना ले और पक्का के आदिवासी की बहुत बड़ी अपेक्षा की सामर्थ्य नहीं है, जो भी | कर ले कि इस-इस रास्ते से जाना है, तो हजार बाधाएं आएंगी रास्ते हाथ में है, काफी बड़ा है।
में। क्योंकि कहीं किसी ने मकान बना लिया होगा गंगा से बिना इसलिए दुनिया में गरीब आदमी कभी बगावत नहीं करते। गरीब पूछे, कहीं कोई पहाड़ खड़ा हो गया होगा गंगा से बिना पूछे, कहीं आदमी अपेक्षा ही नहीं करते कि बगावत कर सकें। दुनिया में | चढ़ाई होगी गंगा से बिना पूछे। और नक्शा वह पहले बना ले, तो बगावत शुरू होती है, जब गरीब आदमी के पास अपेक्षाएं दिखाई फिर बाधाएं हजार आएंगी। और यह भी हो सकता है कि बाधाओं पड़ने लगती हैं निकट; तब उपद्रव शुरू होता है। दुनिया में से लड़-लड़कर गंगा इतनी मुश्किल में पड़ जाए कि सागर तक अशिक्षित आदमी बगावत नहीं करते, क्योंकि अपेक्षा बांध नहीं | - कभी पहुंच ही न पाए। पाते। शिक्षित आदमी उपद्रव शुरू करते हैं। क्योंकि जैसे ही शिक्षा | | लेकिन गंगा बिना ही नक्शे के, बिना प्लानिंग के चल पड़ती है।
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