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गीता दर्शन भाग-1
रास्ता पहले से अपेक्षा में न होने से, जो भी मार्ग मिल जाता है, नष्काम कर्म का अल्प आचरण भी बड़े-बड़े भयों से वही रास्ता है। बाधा का कोई प्रश्न ही नहीं है। अगर पहाड़ रास्ते में IUI बचाता है। बड़े-बड़े भय क्या हैं? बड़े-बड़े भय यही पड़ता है, तो किनारे से गंगा बह जाती है। पहाड़ से रास्ता बनाना
हैं-असफलता तो नहीं मिलेगी! विषाद तो हाथ नहीं किसको था, जिससे पहाड़ बाधा बने!
आएगा। दुख तो पल्ले नहीं पड़ेगा। कोई बाधा तो न आ जाएगी। जो लोग भी भविष्य की अपेक्षा को सुनिश्चित करके चलते हैं, | निराशा तो नहीं मिलेगी! बड़े-बड़े भय यही हैं। कृष्ण कह रहे हैं, अपने हाथ से बाधाएं खड़ी करते हैं। क्योंकि भविष्य आपका | | सूत्र के अंतिम हिस्से में, कि निष्काम कर्म का थोड़ा-सा भी अकेला नहीं है। किस पहाड़ ने बीच में खड़े होने की पहले से आचरण, अंशमात्र आचरण भी, रत्तीभर आचरण भी, पहाड जैसे योजना कर रखी होगी, आपको कुछ पता नहीं है।
भयों से मनुष्य को मुक्ति दिला देता है। जो भविष्य को निश्चित करके नहीं चलता, जो अभी कर्म करता __ असल में जब तक विपरीत दशा को न समझ लें, खयाल में नहीं है और कल कर्म का क्या फल होगा, इसकी कोई फिक्स्ड, इसकी आएगा। जरा-सी अपेक्षा पहाड़ों जैसे भय को निर्मित कर देती है। कोई सुनिश्चित धारणा नहीं बनाता, उसके मार्ग में बाधा आएगी| जरा-सी कामना, पहाड़ों जैसे दुखों का निर्माण कर देती है। कैसे? असल में उसके लिए तो जो भी मार्ग होगा, वही मार्ग है। जरा-सी इच्छा पर जोर, जरा-सा आग्रह कि ऐसा ही हो, सारे जीवन और जो भी मार्ग मिलेगा, उसी के लिए परमात्मा को धन्यवाद है। को अस्तव्यस्त कर जाता है। जिसने भी कहा, ऐसा ही हो, वह दुख उसको बाधा मिल ही नहीं सकती।
पाएगा ही। ऐसा होता ही नहीं। जिसने भी कहा. ऐसा ही होगा. तो इसलिए कृष्ण कहते हैं, अर्जुन, निष्काम कर्म की यात्रा पर | ही मैं सुखी हो सकता हूं, उसने अपने नर्क का इंतजाम स्वयं ही कर जरा-सा भी प्रत्यवाय नहीं है, जरा-सी भी बाधा नहीं है, जरा-सा लिया। वह आर्किटेक्ट है अपने नर्क का खुद ही; उसने सब भी हिंडरेंस है ही नहीं। पर बड़ी होशियारी की, बड़ी कलात्मक बात | व्यवस्था अपने लिए कर ली है। है, बहुत आर्टिस्टिक बात है। एकदम से खयाल में नहीं आएगी। | हम जितने दुख झेल रहे हैं, कभी आपने सोचा कि कितनी छोटी एकदम से खयाल में नहीं आएगी कि बाधा क्यों नहीं है? क्या | | अपेक्षाओं पर खड़े हैं! कितनी छोटी अपेक्षाओं पर! नहीं देखा कभी। निष्काम कर्म करने वाले आदमी को बाधा नहीं बची? हम जो दुख झेल रहे हैं, कितनी छोटी अपेक्षाओं पर खड़े हैं! .
बाधाएं सब अपनी जगह हैं, लेकिन निष्काम कर्म करने वाले ___ एक आदमी रास्ते से निकल रहा है। आपने सदा उसको आदमी ने बाधाओं को स्वीकार करना बंद कर दिया। स्वीकृति होती नमस्कार किया था, आज आप नमस्कार नहीं करते हैं, ये दो हाथ थी अपेक्षाओं से, उनके प्रतिकूल होने से। अब कुछ भी प्रतिकूल ऊपर नहीं उठे आज। उसकी नींद हराम है, वह परेशान है, उसे नहीं है। निष्काम कर्म की धारणा में बहने वाले आदमी को सभी बुखार चढ़ आया है। अब वह सोचने लगा कि क्या हो गया, कोई कुछ अनुकूल है। इसका यह मतलब नहीं है कि सभी कुछ अनुकूल बदनामी हो गई, इज्जत हाथ से चली गई, प्रतिष्ठ है। असल में जो भी है. वह अनकल ही है. क्योंकि प्रतिकल को गई। जिस आदमी ने सदा नमस्कार की. उसने नमस्कार नहीं किया। तय करने का उसके पास कोई भी तराजू नहीं है। न बाधा है, न क्या होगा? क्या नहीं होगा? अब उसको कैसे बदला चुकाना, और विफलता है। सब बाधाएं, सब विफलताएं सकाम मन की | क्या नहीं करना—वह हजार-हजार चक्करों में पड़ गया है। इस निर्मितियां हैं।
आदमी के ये दो हाथों का न उठना, हो सकता है उसकी जिंदगी के सारे भवन को उदासी से भर जाए।
पति घर आया है और उसने कहा, पानी लाओ। और पत्नी नहीं प्रश्नः भगवान श्री, श्लोक के उत्तरार्द्ध में- लाई दो क्षण। सब दुख हो गया! पति घर से बाहर निकला; राह स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात-इस धर्म चलती किसी स्त्री को उसने आंख उठाकर देख लिया: पत्नी के प्राण का अति अल्प आचरण भी बड़े भय से बचाता है, अंत हो गए। पत्नी मरने जैसी हालत में हो गई; जीने का कोई अर्थ इसे भी समझाएं।
नहीं रहा, जीना बिलकुल बेकार है! हम अगर अपने दुखों के पहाड़ को देखें, तो बड़ी क्षुद्र अपेक्षाएं