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m- काम, द्वंद्व और शास्त्र से निष्काम, निर्द्वद्व और स्वानुभव की ओर HAM
दिनभर से भीतर, अब हमसे भी मिलो। वह जाता नहीं है, वह सिर्फ | कांफ्लिक्ट क्या है? दबा रहता है।
द्वंद्व एक ही है, चेतन और अचेतन का द्वंद्व है। आपने कसम ली और एक मजे की बात है कि जो भीतर दबा है, वह शक्ति-संपन्न | है, क्रोध नहीं करेंगे। कसम आपकी चेतन मन में, कांशस माइंड में होता जाता है। और जो बैठकखाने में है, वह धीरे-धीरे निर्बल होता | रहेगी। और क्रोध की ताकतें अचेतन मन में रहेंगी। कल कोई गाली जाता है। और जल्दी ही वह वक्त आ जाता है कि जिसे हमने दबाया | देगा, अचेतन मन कहेगा, करो क्रोध! और चेतन मन कहेगा, कसम है, वह अपनी उदघोषणा करता है; विस्फोट होता है। वह निकल | खाई है कि क्रोध नहीं करना है। और द्वंद्व खड़ा होगा। लड़ोगे भीतर। पड़ता है बाहर।
और ध्यान रहे, जब भी लड़ाई होगी, तो अचेतन जीतेगा। __ अच्छे से अच्छे आदमी को, जिसकी जिंदगी बिलकुल बढ़िया, | | इमरजेंसी में हमेशा अचेतन जीतेगा। बेकाम समय में चेतन जीतता सुंदर, स्मूथ, समतल भूमि पर चलती है, उसे भी शराब पिला दें, तो | हुआ दिखाई पड़ेगा, काम के समय में अचेतन जीतेगा। क्यों? पता चलेगा, उसके भीतर क्या-क्या छिपा है! सब निकलने लगेगा। क्योंकि मनोविज्ञान की अधिकतम खोजें इस नतीजे पर पहुंची हैं कि शराब किसी आदमी में कुछ पैदा नहीं करती। शराब सिर्फ बैठकखाने | चेतन मन हमारे मन का एक हिस्सा है। अगर हम मन के दस हिस्से और घर का फासला तोड़ देती है, दरवाजा खोल देती है। करें, तो एक हिस्सा चेतन और नौ हिस्सा अचेतन है। नौगुनी ताकत
अभी पश्चिम में एक फकीर था गरजिएफ। उसके पास जो भी है उसकी। साधक आता, तो पंद्रह दिन तो उसको शराब में डुबाता। कैसा | तो वह जो नौगुनी ताकत वाला मन है, वह प्रतीक्षा करता है कि पागल आदमी होगा? नहीं, समझदार था। क्योंकि वह यह कहता | कोई हर्जा नहीं। सुबह जब गीता का पाठ करते हो तब कोई फिक्र है कि जब तक मैं उसे न देख लूं, जिसे तुमने दबाया है, तब तक | नहीं, कसम खाओ कि क्रोध नहीं करेंगे। मंदिर जब जाते हो, तब मैं तुम्हारे साथ कुछ भी काम नहीं कर सकता। क्योंकि तुम क्या कह | कोई फिक्र नहीं, मंदिर कोई जिंदगी है! कहो कि क्रोध नहीं करेंगे। रहे हो, वह भरोसे का नहीं है। तुम्हारे भीतर क्या पड़ा है, वही जान | | देख लेंगे दुकान पर! देख लेंगे घर में! जब मौका आएगा असली, लेना जरूरी है।
तब एकदम चेतन हट जाता है और अचेतन हमला बोल देता है। तो एकदम शराब पिलाता पंद्रह दिन; इतना डुबा देता शराब में। ___ इसीलिए तो हम कहते हैं, क्रोध करने के बाद आदमी कहता है फिर उस आदमी का असली चेहरा खोजता कि भीतर कौन-कौन | कि पता नहीं कैसे मैंने क्रोध कर लिया! मेरे बावजूद-इंस्पाइट छिपा है, किस-किस को दबाया है! तुम्हारी च्वाइस ने क्या-क्या | आफ मी-मेरे बावजूद क्रोध हो गया। लेकिन आपके बावजूद किया है, इसे जानना जरूरी है, तभी रूपांतरण हो सकता है। | क्रोध कैसे हो सकता है ? निश्चित ही, आपने अपने ही किसी गहरे
कई लोग तो भाग जाते कि हम यह बरदाश्त नहीं कर सकते। हिस्से को इतना दबाया है कि उसको आप दूसरा समझने लगे हैं, लेकिन गुरजिएफ कहता कि पंद्रह दिन तो जब तक मैं तुम्हें शराब कि वह और है। वह हमला बोल देता है। जब वक्त आता है, वह में न डुबा लूं, जब तक मैं तुम्हारे भीतरी घर में न झांक लूं कि तुमने हमला बोल देता है। क्या-क्या दबा रखा है, तब तक मैं तुमसे बात भी नहीं करूंगा। यह जो द्वंद्व है, यह जो कांफ्लिक्ट है, यही मनुष्य का नरक है। क्योंकि तुम जो कहते हो, उसको सुनकर अगर मैं तुम्हारे साथ | द्वंद्व नरक है। कांफ्लिक्ट के अतिरिक्त और कोई नरक नहीं है। और मेहनत करूं, तो मेहनत व्यर्थ चली जाएगी। क्योंकि तुम जो कहते हम इसको बढ़ाए चले जाते हैं। जितना हम चुनते जाते हैं, बढ़ाए हो, पक्का नहीं है कि तुम वही हो, भीतर तुम कुछ और हो सकते | चले जाते हैं। हो। और अंतिम निष्कर्ष पर, तुम्हारे जो भीतर पड़ा है, वही तो कृष्ण इस सूत्र में कहते हैं, राग और द्वेष से-द्वंद्व से, निर्णायक है।
कांफ्लिक्ट से-जो बाहर हो जाता है, जो चुनाव के बाहर हो जाता इसलिए कृष्ण कहते हैं, चुनना मत। क्योंकि चुनाव किया कि | है, वही जीवन के परम सत्य को जान पाता है। और जो द्वंद्व के भीतर गया वह; जिसे तुमने छोड़ा, दबाया, वह अंदर गया। और | भीतर घिरा रहता है, वह सिर्फ जीवन के नरक को ही जान पाता है। जिसे तुमने उभारा और स्वीकारा, वह ऊपर आया। बस, इससे | इस द्वंद्व-अतीत वीतरागता में ही निष्काम कर्म का फूल खिल ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। द्वंद्व बना ही रहेगा। और द्वंद्व क्या है? | सकता है। या निष्काम कर्म की भूमिका हो, तो यह द्वंद्वरहित,
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