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m गीता दर्शन भाग-1 -
लेकिन वह किसी के शरीर पर सवार होकर इंद्रिय के सुखों को | | के उस क्षण में उन्हें अनुभव हुआ है, जब सारा संकल्प सारे ब्रह्मांड चखने की चेष्टा करती है। तो अगर कहीं भी कमजोर संकल्प का को घेर लेता है। तब चांद-तारे बाहर नहीं, भीतर चलते हुए मालूम आदमी हो...।
| पड़ते हैं। तब सारा अस्तित्व अपने ही भीतर समाया हुआ मालूम इसीलिए पुरुषों की बजाय स्त्रियों में प्रेतात्माओं का प्रवेश मात्रा | पड़ता है। संकल्प इतना भी सिकुड़ जाता है कि आदमी को यह भी में ज्यादा होता है। क्योंकि स्त्रियों को हम अब तक संकल्पवान नहीं | पक्का पता नहीं चलता कि मैं जिंदा हूं कि मर गया। इतना भी बना पाए हैं। जिम्मा पुरुष का है, क्योंकि पुरुष ने स्त्रियों का संकल्प | सिकुड़ जाता है। तोड़ने की निरंतर कोशिश की है। क्योंकि जिसे भी गुलाम बनाना | इस संकल्प के अति सिकुड़े होने की हालत में ही नास्तिकता का हो, उसे संकल्पवान नहीं बनाया जा सकता। जिसे गुलाम बनाना | | गहरा हमला होता है। संकल्प के फैलाव की स्थिति में ही हो, उसके संकल्प को हीन करना पड़ता है, इसलिए स्त्री के संकल्प आस्तिकता का गहरा हमला होता है। संकल्प जितना फैलता है, को हीन करने की निरंतर चेष्टा की गई है हजारों साल में। जो उतना ही आदमी आस्तिक अनुभव करता है अपने को। क्योंकि आध्यात्मिक संस्कृतियां हैं, उन्होंने भी भयंकर चेष्टा की है कि स्त्री | | अस्तित्व इतना बड़ा हो जाता है कि नास्तिक होने का कोई कारण के संकल्प को हीन करें, उसे डराएं, उसे भयभीत करें। क्योंकि | नहीं रह जाता। संकल्प जब बहुत सिकड़ जाता है, तो नास्तिक पुरुष की प्रतिष्ठा उसके भय पर ही निर्भर करेगी।
अनुभव करता है। अपने ही पैर डांवाडोल हों, अपना ही अस्तित्व तो स्त्री में जल्दी प्रवेश...। और मात्रा बहुत ज्यादा है। दस | न होने जैसा हो, उस क्षण आस्तिकता नहीं उभर सकती; उस वक्त प्रतिशत पुरुष ही प्रेतात्माओं से पीड़ित होते हैं, नब्बे प्रतिशत स्त्रियां | जीवन के प्रति नहीं का भाव, न का भाव पैदा होता है। नास्तिकता पीड़ित होती हैं। संकल्प नहीं है; जगह खाली है; प्रवेश आसान है। और आस्तिकता मनोवैज्ञानिक सत्य हैं—मनोवैज्ञानिक।
संकल्प जितना मजबूत हो, स्वयं पर श्रद्धा जितनी गहरी हो, तो | सिमन वेल ने लिखा है कि तीस साल की उम्र तक मेरे सिर में हमारी आत्मा हमारे शरीर को पूरी तरह घेरे रहती है। अगर संकल्प भारी दर्द था। चौबीस घंटे होता था। तो मैं कभी सोच ही नहीं पाई
और बड़ा हो जाए, तो हमारा सूक्ष्म शरीर हमारे इस शरीर के बाहर । | कि परमात्मा हो सकता है। जिसके सिर में चौबीस घंटे दर्द है, भी घेराव बनाता है—बाहर भी। इसलिए कभी किन्हीं व्यक्तियों के | | उसको बहुत मुश्किल है मानना कि परमात्मा हो सकता है। पास जाकर, जिनका संकल्प बहुत बड़ा है, आप तत्काल अपने | अब यह बड़े मजे की बात है कि सिरदर्द जैसी छोटी चीज भी संकल्प में परिवर्तन पाएंगे। क्योंकि उनका संकल्प उनके शरीर के परमात्मा को दरवाजे के बाहर कर सकती है। वह ईश्वर के न होने बाहर भी वर्तुल बनाता है। उस वर्तुल के भीतर अगर आप गए, तो | की बात करती रही। उसे कभी खयाल भी न आया कि ईश्वर के न आपका संकल्प परिवर्तित होता हुआ मालूम पड़ेगा। बहुत बुरे | | होने का बहुत गहरा कारण मेडिकल है। उसे खयाल भी नहीं आया आदमी के पास भी।
| कि ईश्वर के न होने का कारण सिरदर्द है। तर्क और दलीलें और अगर एक वेश्या के पास जाते हैं, तो भी फर्क पड़ेगा। एक संत | नहीं। जिसके सिर में दर्द है, उसके मन से नहीं का भाव उठता है। के पास जाते हैं, तो भी फर्क पड़ेगा। क्योंकि उसके संकल्प का | उसके मन से हां का भाव नहीं उठता। हां के भाव के लिए भीतर वर्तुल, उसके सूक्ष्म शरीर का वर्तुल, उसके स्थूल शरीर के भी बड़ी प्रफुल्लता चाहिए, तब हां का भाव उठता है। बाहर फैला होता है। यह फैलाव बहुत बड़ा भी हो सकता है। इस | | फिर सिरदर्द ठीक हो गया। तब उसे एहसास हुआ कि उसके फैलाव के भीतर आप अचानक पाएंगे कि आपके भीतर कुछ होने भीतर से इनकार का भाव कम हो गया है। तब उसे एहसास हुआ लगा, जो आपका नहीं मालूम पड़ता। आप कुछ और तरह के | कि वह न मालूम किस अनजाने क्षण में नास्तिक से आस्तिक होने आदमी थे, लेकिन कुछ और हो रहा है भीतर।
लगी। तो हमारा संकल्प इतना छोटा भी हो सकता है कि इस शरीर के संकल्प अगर क्षीण है, तो प्रेतात्माएं प्रवेश कर सकती हैं; बुरी भीतर भी सिकुड़ जाए, इतना बड़ा भी हो सकता है कि इस शरीर | | प्रेतात्माएं, जिन्हें हम भूत कहें, प्रवेश कर सकती हैं, क्योंकि वे के बाहर भी फैल जाए। वह इतना बड़ा भी हो सकता है कि पूरे | | आतुर हैं। पूरे समय आतुर हैं कि अपना शरीर नहीं है, तो आपके गांड को घेर ले। जिन लोगों ने कहा अहं ब्रह्मास्मि वह संकल्प शरीर से ही थोडा-सा रस ले लें। और शरीर के रस शरीर के बिना
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