________________
mआत्म-विद्या के गूढ़ आयामों का उदघाटन -
आदमी अच्छा काम करने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन बुरा काम नहीं | | लेकिन वह आनंद कहां है? साधन पूरे हो गए, लेकिन वह साध्य कर सकता। तो उस गांव में अच्छा काम करने की स्वतंत्रता भी नहीं | कहां है? भवन बन गया, लेकिन अतिथि कहां है? उसी दिन रह जाएगी। अच्छा काम करने की स्वतंत्रता में इम्प्लाइड है, छिपी | | आदमी अमीर होता है। वही उसका सौभाग्य है। लेकिन बहुत कम । है, बुरा काम करने की स्वतंत्रता। और जो आदमी बुरा काम कर अमीर आदमी अमीर होते हैं। ही नहीं सकता, उसने अच्छा काम किया है, ऐसा कहने का कोई | वह अमीर आदमी अमीर था; चिंता पकड़ गई उसे। उसने अपने अर्थ नहीं रह जाता।
घर के लोगों को कहा कि बहुत दिन प्रतीक्षा कर ली, अब मैं खोज स्वतंत्रता दोहरी है, समस्त तलों पर। आत्मा स्वतंत्र है, अस्तित्व में जाता हूं। अब तक सोचता था कि इंतजाम कर लूंगा, तो आनंद स्वतंत्र है। उस पर कोई परतंत्रता नहीं है। उसके अतिरिक्त कोई है का अतिथि आ जाएगा। इंतजाम पूरा है, अतिथि का कोई पता ही नहीं, जो उसे परतंत्र कर सके। अस्तित्व फ्रीडम है, अस्तित्व चलता नहीं। अब मैं उसकी खोज पर निकलता हूं। बहुत-से स्वातंत्र्य है। और स्वातंत्र्य में हमेशा दोहरे विकल्प हैं। आत्मा चाहे | | हीरे-जवाहरात अपने साथ लेकर वह गया। गांव-गांव पूछता था . तो दोनों यात्राएं कर सकती है-संसार में, शरीर में, बंधन में लोगों से कि आनंद कहां मिलेगा? लोगों ने कहा, हम खुद ही बंधन के बाहर. संसार के बाहर. शरीर के बाहर। ये दोनों तलाश में हैं। इस गांव तक हम उसी की तलाश में पहुंचे हैं। रास्तों संभावनाएं हैं। और संसार का अनुभव, संसार के बाहर उठने के | | पर लोगों से पूछता था, आनंद कहां मिलेगा? वे यात्री कहते कि अनुभव की अनिवार्य आधारशिला है। विश्रांति का अनुभव, तनाव | हम भी सहयात्री हैं, फेलो ट्रेवलर्स हैं; हम भी खोज में निकले हैं। के अनुभव के बिना असंभव है। मुक्ति का अनुभव, अमुक्त हुए तुम्हें पता चल जाए, तो हमें भी खबर कर देना। बिना असंभव है।
जिससे पूछा उसी ने कहा कि तुम्हें खबर मिल जाए, तो हमें भी _.मैं एक छोटी-सी कहानी निरंतर कहता रहता हूं। मैं कहता रहता | बता देना। हमें कुछ पता नहीं, हम भी खोज में हैं। थक गया, हूं कि एक अमीर आदमी, एक करोड़पति, जीवन के अंत में सारा परेशान हो गया, मौत करीब दिखाई पड़ने लगी। आनंद की कोई धन पाकर चिंतित हो उठा। चिंतित हो उठा कि आनंद अब तक खबर नहीं। मिला नहीं! सोचा था जीवनभर धन, धन, धन। सोचा था, धन फिर एक गांव से गुजर रहा था, तो किसी से उसने पूछा। झाड़ के साधन बनेगा, आनंद साध्य होगा। साधन पूरा हो गया, आनंद की | | नीचे एक आदमी बैठा हुआ था। देखकर ऐसा लगा कि शायद यह कोई खबर नहीं। साधन इकट्ठे हो गए, आनंद की वीणा पर कोई | आदमी कोई जवाब दे सके। क्योंकि अंधकार घिर रहा था सांझ का, स्वर नहीं बजता। साधन इकट्ठा हो गया, भवन तैयार है, लेकिन | लेकिन उस आदमी के आस-पास कुछ अलौकिक प्रकाश मालूम आनंद का मेहमान आता हुआ दिखाई नहीं पड़ता, उसकी कोई | | पड़ता था। रात उतरने को थी, लेकिन उसके चेहरे पर चमक थी पदचाप सुनाई नहीं पड़ती है। चिंतित हो जाना स्वाभाविक है। । | सुबह की। पकड़ लिए उसके पैर, धन की थैली पटक दी। और कहा
गरीब आदमी कभी चिंतित नहीं हो पाता, यही उसका दुर्भाग्य | | कि ये हैं अरबों-खरबों रुपए के हीरे-जवाहरात-आनंद चाहिए! है। अगर वह चिंतित भी होता है, तो साधन के लिए होता है कि __उस फकीर ने आंखें ऊपर उठाईं और उसने कहा कि सच में कैसे धन मिले, कैसे मकान मिले! अमीर आदमी की जिंदगी में | | चाहिए? बिलकुल तुम्हें आज तक कभी आनंद नहीं मिला? उसने पहली दफा साध्य की चिंता शुरू होती है। क्योंकि साधन पूरा होता कहा, कभी नहीं मिला। उसने कहा, कभी कोई थोड़ी-बहत धन है। अब वह देखता है, साधन सब इकट्ठे हो गए, जिसके लिए | बजी हो! कोई धुन नहीं बजी। उसने कहा, कभी थोड़ा-बहुत स्वाद इकट्ठे किए थे, वह कहां है!
आया हो! उस आदमी ने कहा, बातों में समय खराब मत करो; तुम इसलिए जब तक किसी आदमी की जिंदगी में साध्य का खयाल | | पहले आदमी हो, जिसने एकदम से यह नहीं कहा कि मैं भी खोज न उठे, तब तक वह गरीब है। चाहे उसके पास कितना ही धन | | रहा हूं। मुझे बताओ! उस फकीर ने पूछा, कोई परिचय ही नहीं है? इकट्ठा हो गया हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उसके अमीर होने | | उसने कहा, कोई परिचय नहीं है। की खबर उसी दिन मिलती है, जिस दिन वह यह सोचने को तैयार | इतना कहना था कि वह फकीर उस झोले को, जिसमें हो जाता है-सब है जिससे आनंद मिलना चाहिए ऐसा सोचा था, | | हीरे-जवाहरात थे, लेकर भाग खड़ा हुआ। उस अमीर ने तो सोचा
1390