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→ मृत्यु के पीछे अजन्मा, अमृत और सनातन का दर्शन 4
आकृति अस्तित्व का खेल है। इसलिए कृष्ण जगत को, जीवन को एक लीला से ज्यादा नहीं कहते हैं। और लीला का मतलब है कि मंच पर कोई आया है, राम बनकर आया है; बस वह एक आकृति है । कोई रावण बनकर आया है, वह एक आकृति है । वे धनुष-बाण लेकर लड़ने खड़े हुए हैं, वह एक आकृति है । परदे के पीछे अभी थोड़ी देर बाद वे गपशप करेंगे, सीता को भूल जाएंगे। झगड़ा बंद हो जाएगा, चाय पीएंगे ग्रीन रूम में बैठकर ।
वह जो कृष्ण कह रहे हैं, वह ग्रीन रूम की बात कह रहे हैं। अर्जुन जो बात कह रहा है, वह मंच की बात कह रहा है। पर जो मंच पर प्रकट हुआ है, वह सिर्फ रूप है, वह सिर्फ अभिनय है, वह एक आकृति है। और आकृति के बिना अस्तित्व हो सकता है, लेकिन अस्तित्व के बिना आकृति नहीं हो सकती है। जैसा मैंने कहा, लहर नहीं हो सकती सागर के बिना, सागर बिना लहर के हो सकता है।
जब राम और रावण पर्दे के पीछे जाकर गपशप करके चाय पीने लगेंगे, तब राम और रावण की जो आकृतियां बनी थीं, वे कहां हैं?
नहीं हैं। वे लहरें थीं, वे सिर्फ आकार थे, जो पीछे प्राण न हो, तो नहीं हो जाते हैं। रूप बदलता है, फार्म बदलता है, आकृतियां बदलती हैं, अभिनय बदलता है, अभिनेता नहीं; वह जो पीछे खड़ा है, वह नहीं। कृष्ण उसकी ही बात कर रहे हैं।
देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा । तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र मुह्यति ।। १३ ।। किंतु जैसे जीवात्मा की इस देह में कुमार, युवा और वृद्ध अवस्था होती है, वैसे ही अन्य शरीर की प्राप्ति होती है। उस विषय में धीर पुरुष मोहित नहीं होता है।
कृ
ष्ण कह रहे हैं कि जैसे इस एक शरीर में भी सब बदलाहट है— बचपन है, जवानी है, बुढ़ापा है, जन्म है, मृत्यु है - जैसे इस एक शरीर में भी कुछ थिर नहीं है, जैसे इस एक शरीर में भी सब अथिर, सब बदला जा रहा है, बच्चे जवान हुए जा रहे हैं, जवान बूढ़े हुए जा रहे हैं, बूढ़े मृत्यु में उतरे जा रहे हैं... ।
एक बड़े मजे की बात है, भाषा में पता नहीं चलता,
क्योंकि
शब्दों में गति नहीं होती । शब्द तो ठहरे हुए, थिर होते हैं, स्टैटिक होते हैं। चूंकि भाषा में शब्द ठहरे हुए होते हैं, जीवन के साथ भाषा बड़ा अनाचार करती है। जीवन में कुछ भी ठहरा हुआ नहीं होता । न ठहरे हुए जीवन पर जब हम ठहरे हुए शब्दों को जड़ देते हैं, तो बड़ी गलती हो जाती है।
हम बोलते हैं, यह बच्चा है। गलत बात बोलते हैं। बच्चा है की स्थिति में कभी नहीं होता, बच्चा पूरे वक्त होने की स्थिति में होता है— हो रहा है । कहना चाहिए, बच्चा हो रहा है। हम कहते हैं, बूढ़ा है । गलत बात कहते हैं । है की स्थिति में कोई बूढ़ा नहीं होता । बूढ़ा हो रहा है। प्रत्येक चीज हो रही है । है की स्थिति में कोई भी चीज नहीं है। इज़ की हालत में कोई चीज नहीं है, प्रत्येक चीज कमिंग में है। हम कहते हैं, नदी है। कैसी गलत बात कहते हैं ! नदी और है हो सकती है? नदी का मतलब ही है कि जो बह रही है, हो रही है।
सब शब्द थिर हैं और जीवन में कहीं भी कुछ थिर नहीं है। |इसलिए जीवन के साथ बड़ी भूल हो जाती है। और इन शब्दों को | दिन-रात बोलते-बोलते हम भूल जाते हैं। जब हम किसी आदमी को जवान कहते हैं, तो जवान का मतलब क्या होता है जीवन में? भाषाकोश में नहीं, शब्दकोश में नहीं। शब्दकोश में तो जवान का | मतलब जवान होता है। जिंदगी में क्या होता है? जिंदगी में जवान | का मतलब सिर्फ बूढ़े होने की तैयारी होता है और कुछ नहीं । शब्दकोश में नहीं कहीं लिखा है ऐसा | शब्दकोश में बूढ़े का मतलब बूढ़ा होता है। जिंदगी में बूढ़े का मतलब मरने की तैयारी होता है । और तैयारी भी ऐसी नहीं कि जो हो गई, हो रही है, होती जा रही है।
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कृष्ण कह रहे हैं, इस जीवन में भी अर्जुन, चीजें ठहरी हुई नहीं हैं। इस जीवन में भी जिन आकृतियों को तू देख रहा है, कल वे बच्चा थीं, जवान हुईं, बूढ़ी हो गईं।
बड़े मजे की बात है। अगर मां के पेट में जब पहली दफे बीजारोपण होता है, उस सेल, उस कोष्ठ का चित्र ले लिया जाए और आपको बताया जाए कि आप यही थे पचास साल पहले, तो आप मानने को राजी न होंगे कि क्या मजाक करते हैं, मैं और यह ! एक छोटा-सा सेल जो नंगी आंख से दिखाई भी नहीं पड़ता, जिसको खुर्दबीन से देखना पड़ता है; जिसमें न कोई आंख है, न कोई कान है, न कोई हड्डी है; जिसमें कुछ भी नहीं है; जिसका पता नहीं कि वह स्त्री होगी कि पुरुष होगा; जिसका पता नहीं, एक