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mm+ मृत्यु के पीछे अजन्मा, अमृत और सनातन का दर्शन - AM
पाते कि मित्र बनने में और शत्रु तक पहुंचने में इतना वक्त लगा। | दो छोर हैं। इसलिए पीड़ित नहीं होता, डांवाडोल नहीं होता, अस्थिर नहीं, मित्र बनने की घटना अलग है और शत्रु बनने की घटना नहीं होता। संतुलन नहीं खोता।। अलग है। तब तय नहीं कर पाते; तब व्यक्ति पर ही थोप देते हैं कि लेकिन इससे बड़ी भ्रांति हुई है। और वह भ्रांति यह हुई है कि गलती व्यक्ति के साथ हो गई है।
| जिस आदमी को ठंडी-गरमी का पता न चले, वह ज्ञानी हो गया! कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं कि तू आर-पार देख, पूरा देख। और | | यह बहुत आसान है। वह काम बहुत कठिन है, जो मैं कह रहा हूं। जो इस पूरे को देख लेता है, वह ज्ञानी हो जाता है। और ज्ञानी को | | ठंडी-गरमी का पता न चले, इसके लिए तो थोड़ा-सा ठंडी-गरमी फिर ठंडा और गरम, सुख और दुख पीड़ा नहीं देते। लेकिन इसका | का अभ्यास करने की जरूरत है। ठंडी-गरमी का पता नहीं चलेगा, यह मतलब मत समझ लेना कि ज्ञानी को ठंडे और गरम का पता | चमड़ी जड़ हो जाएगी, उसका बोध कम हो जाएगा। जरा नाक में, नहीं चलता है
नासापुटों में जो थोड़े से गंध के तंतु हैं, अगर दुर्गंध के पास बैठे रहें, ऐसी भ्रांति हुई है, इसलिए मैं कहता हूं। ऐसी भ्रांति हुई है। तब | | वे अभ्यासी हो जाएंगे। तो वह ज्ञानी न हुआ, जड़ हो गया। अगर सेंसिटिविटी मर जाए, तो तो परमहंस भी हो जाते हैं लोग, दुर्गंध के पास बैठकर। नासमझ उसको पता ही न चले। तो कई जड़-बुद्धि ज्ञानी होने के भ्रम में पड़ | उनके चरण भी छूते हैं कि बड़ा परमहंस है, दुर्गंध का पता नहीं जाते हैं, क्योंकि उनको ठंडी और गरमी का पता नहीं चलता। थोड़े | चल रहा है! किस भंगी को पता चलता है? नासापुट नष्ट हो जाते अभ्यास से पता नहीं चलेगा। इसमें कोई कठिनाई तो नहीं है। | हैं। लेकिन इससे भंगी परमहंस नहीं हो जाता।
ध्यान रहे, ज्ञानी को ठंडे और गरम से, सुख और दुख से पीड़ा | | खलील जिब्रान ने एक छोटी-सी कहानी लिखी है, वह मैं कहूं, नहीं होती। सुख और दुख में चुनाव नहीं रह जाता, च्वाइस नहीं | फिर आज की बात पूरी करूं। फिर हम सुबह बात करेंगे। रह जाती, च्वाइसलेसनेस हो जाती है। इसका यह मतलब नहीं है। | जिब्रान ने लिखा है कि गांव से, देहात से, एक औरत शहर आई कि दिखाई नहीं पड़ता। इसका यह मतलब नहीं है कि ज्ञानी को | | मछलियां बेचने। मछलियां बेच दीं। लौटती थी सांझ, तो उसकी सुई चुभाएं तो पता नहीं चलेगा। इसका यह मतलब नहीं है कि | सहेली थी शहर में। गांव की ही लड़की थी। उसने उसे ठहरा लिया ज्ञानी के गले में फूल डालें तो सुगंध न आएगी और दुर्गंध फेंकें कि आज रात रुक जा। वह एक माली की पत्नी थी, मालिन थी; तो दुर्गंध न आएगी।
बगिया थी सुंदर उसके पास, फूल ही फूल थे। मेहमान घर में आया नहीं, सुगंध और दुर्गंध दोनों आएंगी, शायद आपसे ज्यादा | | है, गरीब मालिन, उसके पास कुछ और तो न था। उसने बड़े आएंगी। उसकी संवेदनशीलता आपसे ज्यादा होगी। उसकी | फूल-मोगरे के, गुलाब के, जुही के, चमेली के-उसके चारों सेंसिटिविटी ज्यादा होगी। क्योंकि वह अस्तित्व के प्रति ज्यादा | | तरफ लाकर रख दिए। सजग होगा; क्षण के प्रति ज्यादा जागा होगा। उसकी अनुभूति | रात उसे नींद न आए। वह करवट बदले, और बदले, और नींद आपसे तीव्र होगी। लेकिन वह यह जानता है कि सुगंध और दुर्गंध, | न आए। मालिन ने उससे पूछा कि नींद नहीं आती? कोई तकलीफ गंध के ही दो छोर हैं।
है? उसने कहा, तकलीफ है। ये फूल हटाओ-एक। और मेरी कभी, जहां सुगंध बनती है, उस फैक्टरी के पास से गुजरें तो | | टोकरी, जिसमें मैं मछलियां लाई थी, वह टोकरी मुझे दे दो, उसमें पता चल जाएगा। असल में दुर्गंध को ही सुगंध बनाया जाता है। थोड़ा पानी छिड़क दो। खाद डाल देते हैं और फूल में सुगंध आ जाती है। सुगंध और | अपरिचित मकान हो तो मुश्किल हो जाती है। अपरिचित गंध! दुर्गंध, गंध के ही दो छोर हैं। गंध अगर प्रीतिकर लगती है, तो | | मछलियां आदत का हिस्सा थीं, लेकिन इससे कुछ कोई परमहंस सुगंध मालूम होती है; गंध अप्रीतिकर लगती है, तो दुर्गंध मालूम | नहीं हो जाता। पड़ती है।
__ठंडी और गरमी का पता न चले तो कोई ज्ञानी नहीं हो जाता। ऐसा नहीं है कि ज्ञानी को पता नहीं चलता कि क्या सौंदर्य है और सुख-दुख का पता न चले तो कोई ज्ञानी नहीं हो जाता। क्या कुरूप है। बहुत पता चलता है। लेकिन यह भी पता चलता है | सुख-दुख का पूरी तरह पता चले और फिर भी सुख-दुख कि सौंदर्य और कुरूप आकृतियों के दो छोर हैं, एक ही लहर के संतुलन न तोड़ें सुख-दुख का पूरी तरह पता चले, लेकिन सुख में
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