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भागना नहीं – जागना है 4
भी चीज थिर नहीं हो सकती, क्योंकि पानी अथिर है। इसलिए कितना ही थिर प्रतिबिंब हो, फिर भी कंपता रहेगा। पानी कंपन है।
ये जो कंपते हुए प्रतिबिंब हैं समय के दर्पण पर बने हुए, कल थे, अभी हैं, कल नहीं होंगे। कल भी बड़ी बात है; बीते क्षण में थे, नहीं थे, अगले क्षण में नहीं हो जाएंगे। ऐसा जो क्षण-क्षण बदल रहा है, जो क्षणिक है, वह असत है। जो क्षण के पार है, जो सदा है, वही सत है। इसकी भेद-रेखा को जो पहचान लेता, कृष्ण कहते हैं, वह ज्ञान को उपलब्ध हो जाता है।
अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम् । विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ।। १७ ।। इस न्याय के अनुसार नाशरहित तो उसको जानो कि जिससे यह संपूर्ण जगत व्याप्त है, क्योंकि इस अविनाशी का विनाश करने को कोई भी समर्थ नहीं है।
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सने इस सारे जगत को व्याप्त किया है, वह सूक्ष्मतम अविनाशी है। लेकिन जिससे यह सारा जगत व्याप्त हुआ है, वह वस्तु स्थूल है और विनाशवान है। इसे | ऐसा समझें, एक कमरा है, खाली है, कुछ भी सामान नहीं है। वह जो कमरे का खालीपन है, वह पूरा का पूरा व्याप्त किए है कमरे को । उचित तो यही होगा कि जब कमरा नहीं था, तब भी वह खालीपन था । पीछे हमने दीवारें उठाकर उस खालीपन को चारों तरफ से बंद किया है। कमरा नहीं था, तब भी वह खालीपन था । कमरा नहीं होगा, तब भी वह खालीपन होगा। कमरा है, तब भी वह खालीपन है। कमरा बना है, मिटेगा; कभी नहीं था, कभी नहीं हो जाएगा; पर वह जो खालीपन है, वह जो स्पेस है, वह जो अवकाश है, वह जो आकाश है - वह था, है, रहेगा ।
उसके लिए था, है, इस तरह के शब्द उचित नहीं हैं। क्योंकि जो कभी भी नहीं नहीं हुआ, उसके लिए है कहना ठीक नहीं है। है सिर्फ उसी चीज के लिए कहना ठीक है, जो नहीं है भी हो सकती है। वृक्ष है, कहना ठीक है; आदमी है, कहना ठीक है; परमात्मा है, कहना ठीक नहीं है। परमात्मा के साथ यह कहना कि परमात्मा है, पुनरुक्ति है, रिपिटीशन है। परमात्मा का अर्थ ही है कि जो है । उसको दोहराने की कोई जरूरत नहीं है कि परमात्मा है। इसका
मतलब यह हुआ कि जो है, वह है । कोई और मतलब नहीं हुआ । जो नहीं नहीं हो सकता, उसके लिए है कहना बिलकुल बेमानी है।
इसीलिए बुद्ध जैसे परम आस्तिक ने, परमात्मा है, ऐसा शब्द कभी प्रयोग नहीं किया । नासमझ समझे कि नास्तिक है यह आदमी। लेकिन बुद्ध को लगा कि यह तो बड़ी ही भूल भरी बात कहनी है कि परमात्मा है। क्योंकि है सिर्फ उसी के लिए कहना चाहिए, जो नहीं है भी हो जाता है। आदमी है, ठीक है बात। उस पर है हम लगा सकते हैं। है उस पर आई हुई घटना है, कल खो जाएगी। लेकिन परमात्मा है, यह कहना ठीक नहीं है। गॉड इज़ कहना ठीक नहीं है। क्योंकि गॉड का तो मतलब ही इज़नेस है। जो है ही, उसके लिए है कहना, बड़ा कमजोर शब्द उपयोग करना है; गलत शब्द उपयोग करना है; पुनरुक्ति है।
खाली जगह है ही । कमरा नहीं था, तब भी थी। फिर कमरे में हम फर्नीचर ले फिर कमरे में हमने तस्वीरें लगा दीं, फिर आए, कमरे में हम आकर बैठ गए। कमरा पूरा सज गया, भर गया। अब इस कमरे में दो चीजें हैं। एक तो वह खालीपन, जो सदा से था; और एक यह भरापन, जो सदा से नहीं था। लेकिन बड़े मजे की बात है कि कमरे का खालीपन हमें कभी दिखाई नहीं पड़ता; कमरे का भरापन दिखाई पड़ता है। कमरे में वही दिखाई पड़ता है, जो भरा हुआ है। वह नहीं दिखाई पड़ता, जो खाली है। किसी भी कमरे में आप प्रवेश करेंगे, तो वही दिखाई पड़ता है, जो वहां है । वह नहीं | दिखाई पड़ता, जो वहां सदा था। वह नहीं दिखाई पड़ता । वह अदृश्य भी है। अगर खालीपन का भी पता चलता है, तो कहना चाहिए कि भरेपन के रिफरेंस में पता चलता है।
यह कुर्सी रखी है, तो इसके आस-पास खाली जगह मालूम पड़ती है। इस कुर्सी के आस-पास खाली जगह मालूम पड़ती है। खाली जगह के बीच में यह कुर्सी मालूम नहीं पड़ती। असलियत यही है कि खालीपन के बीच में यह कुर्सी रखी है। कुर्सी हटाई जा सकती है, खालीपन हटाया नहीं जा सकता; भरा जा सकता है, | हटाया नहीं जा सकता ।
आप एक कमरे से कुर्सी बाहर निकाल ले सकते हैं, क्योंकि कुर्सी कमरे के अस्तित्व का हिस्सा नहीं है। लेकिन कमरे से खालीपन नहीं निकाल सकते। ज्यादा से ज्यादा कमरे में सामान भरकर खालीपन को दबा सकते हैं। अगर कमरे में से सब चीजें निकाल ली जाएं, तो आप कहेंगे, यहां तो कुछ भी नहीं है । और अगर कमरे से सब चीजें निकाल ली गई हों, तो आपको सिर्फ कमरे
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