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- मरणधर्मा शरीर और अमृत, अरूप आत्मा
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हैं मरने से। वे भी कहते हैं कि ठीक है, मौका आ जाए, जिंदगी दांव | हां, कृष्ण की बात सुनकर सिर्फ समझना इतना, एक शिखर है पर लगा दें। लेकिन हम एक हजार साल तक गुलाम रह सके। | चेतना का, जहां अंधेरा है ही नहीं, जहां दीया जलाना पागलपन है। क्योंकि जिंदगी दांव पर लगाने की हमारी हिम्मत ही नहीं रही। हां, | | पर उस शिखर की यात्रा करनी होती है। उस शिखर की यात्रा पर घर में बैठकर हम बात करते हैं कि आत्मा अमर है। अगर आत्मा हम धीरे-धीरे बढ़ेंगे। कि वह शिखर कैसे, कैसे हम उस जगह अमर है, तो इस मुल्क को एक सेकेंड के लिए गुलाम नहीं किया पहुंच जाएं, जहां जीवन अमृत है, और जहां अहिंसा और हिंसा जा सकता था।
बचकानी बातें हैं, चाइल्डिश बातें हैं। लेकिन वहां नहीं जहां हम हैं, लेकिन आत्मा जरूर अमर है; लेकिन हम बेईमान हैं। आत्मा | | वहां बड़ी सार्थक हैं, वहां बड़ी महत्वपूर्ण हैं। अमर है, वह हम कृष्ण से सुन लेते हैं; और हम मरने वाले हैं, यह हम भलीभांति जानते हैं। अपने को बचाए चले जाते हैं। बल्कि आत्मा अमर है, इसका पाठ रोज इसीलिए करते हैं, कि भरोसा आ
न जायते प्रियते वा कदाचिन् जाए कि मरेंगे नहीं। कम से कम मैं तो नहीं मरूंगा, इसका भरोसा
नायं भूत्वा भविता वा न भूयः। दिला रहे हैं, इससे अपने को समझा रहे हैं। इस दो तल पर-जहां
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो कृष्ण खड़े हैं वहां, और जहां हम खड़े हैं वहां-वहां के फासले
न हन्यते हन्यमाने शरीरे ।। २०।। को ठीक से समझ लेना।
यह आत्मा किसी काल में भी न जन्मता है और न मरता है, और कृष्ण की बात तभी पूरी सार्थक होगी, जब आप कृष्ण के अथवा न यह आत्मा, हो करके फिर होने वाला है, क्योंकि तल पर उठे। और कृपा करके कृष्ण को अपने तल पर मत लाना। यह अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है। शरीर के नाश हालांकि वह आसान है. क्योंकि कष्ण कछ भी नहीं कर सकते। आप
होने पर भी यह नष्ट नहीं होता है। गीता को जिस तल पर ले जाना चाहें, वहीं ले जाएं। जहां कटघरे में रहते हों, गोडाउन में रहते हों, नर्क में रहते हों, वहीं ले जाएं गीता को, तो वहीं चली जाएगी। कृष्ण कुछ भी नहीं कर सकते।
न हां हम हैं, जो हम हैं, वहां सभी कुछ जात है, जन्मता कृपा करके जीवन के जो परम सत्य हैं, उन्हें जीवन की अंधेरी | UI है। जिससे भी हम परिचित हैं, वहां अजात, अजन्मा, गुहाओं में मत ले जाना। वे जीवन के परम सत्य शिखरों पर जाने
कुछ भी नहीं है। जो भी हमने देखा है, जो भी हमने गए हैं। आप भी शिखरों पर चढ़ना, तभी उन परम सत्यों को समझ | पहचाना है, वह सब जन्मा है, सब मरता है। लेकिन जन्म और पाएंगे। वे परम सत्य सिर्फ पुकार हैं, आपके लिए चुनौतियां हैं कि | मरण की इस प्रक्रिया को भी संभव होने के लिए इसके पीछे कोई, आओ इस ऊंचाई पर, जहां प्रकाश ही प्रकाश है, जहां आत्मा ही | इस सब मरने और जन्मने की श्रृंखला के पीछे-जैसे माला के आत्मा है, जहां अमृत ही अमृत है।
गुरियों को कोई धागा पिरोता है; दिखाई नहीं पड़ता, गुरिए दिखाई लेकिन जिन अंधेरी गलियों में हम जीते हैं, जहां अंधेरा ही अंधेरा | पड़ते हैं—इस जन्म और मरण के गुरियों की लंबी माला को पिरोने है, जहां प्रकाश की कोई किरण नहीं पहुंचती मालूम पड़ती। वहां वाला कोई अजात धागा भी चाहिए। अन्यथा गुरिए बिखर जाते हैं। यह सुनकर कि प्रकाश ही प्रकाश है, अंधकार है ही नहीं, अपने टिक भी नहीं सकते, साथ खड़े भी नहीं हो सकते, उनमें कोई जोड़ हाथ के दीए को मत बुझा देना–कि जब प्रकाश ही प्रकाश है, तब भी नहीं हो सकता। दिखती है माला ऊपर से गुरियों की, होती नहीं इस दीए की क्या जरूरत है, फूंक दो। उस दीए को बुझाने से गली | | हैं गुरियों की। गुरिए टिके होते हैं एक धागे पर, जो सब गुरियों के
और अंधेरी हो जाएगी। जहां आदमी जी रहा है, वहां हिंसा और | बीच से दौड़ता है। अहिंसा का भेद है। अंधेरा है वहां। जहां आदमी जी रहा है, वहां जन्म है, मृत्यु है, आना है, जाना है, परिवर्तन है, इस सबके पीछे चोरी और अचोरी में भेद है। अंधेरा है वहां। वहां कृष्ण की बात अजात सूत्र-अनबॉर्न, अनडाइंग; अजात, अमृत; न जो जन्मता, सुनकर अपने इस भेद के छोटे-से दीए को मत फूंक देना। नहीं तो न जो मरता-ऐसा एक सूत्र चाहिए ही। वही अस्तित्व है, वही सिर्फ अंधेरा घना हो जाएगा, और कुछ भी नहीं होगा। आत्मा है, वही परमात्मा है। सारे रूपांतरण के पीछे, सारे रूपों के
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