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गीता दर्शन भाग-14
कि जैसे और चीजें ले जाई जा सकती हैं, वैसे ही संन्यासी को ले जाने में क्या तकलीफ है। उसने कहा कि जाओ, पकड़ लाओ, कहीं कोई संन्यासी हो ।
गांव में लोग गए, गांव में पूछा कि कोई संन्यासी है? लोगों ने कहा, संन्यासी तो है, लेकिन प्रयोजन क्या है ? तुम्हारे ढंग संन्यासी के पास पहुंचने जैसे नहीं मालूम पड़ते ! नंगी तलवारें हाथ में लिए हो, पागल मालूम पड़ते हो; क्या बात है ? तो उन्होंने कहा कि पागल नहीं, हम सिकंदर के सिपाही हैं। और किसी संन्यासी को पकड़कर हम यूनान ले जाना चाहते हैं।
तो उन लोगों ने कहा कि जो संन्यासी तुम्हारी पकड़ में आ जाए, समझना कि संन्यासी नहीं है। जाओ, हालांकि गांव में एक संन्यासी है, हम तुम्हें उसका पता दिए देते हैं। नदी के किनारे तीस वर्षों से एक आदमी नग्न रहता है। जैसा हमने सुना है, जैसा हमने उसे देखा है, जैसा इन तीस वर्षों में हमने उसे जाना है, हम कह सकते हैं कि वह संन्यासी है। लेकिन तुम उसे पकड़ न पाओगे। पर, उन्होंने कहा, दिक्कत क्या है? तलवारें हमारे पास, जंजीरें हमारे पास ! उन्होंने कहा, तुम जाओ, उसी से निपटो ।
वे गए। उस संन्यासी से उन्होंने कहा कि महान सिकंदर की आज्ञा है कि हमारे साथ चलो। हम तुम्हें सम्मान देंगे, सत्कार देंगे, शाही व्यवस्था देंगे। यूनान तुम्हें ले जाना है। कोई पीड़ा नहीं, कोई दुख नहीं, कोई रास्ते में तकलीफ नहीं होने देंगे। वह संन्यासी हंसने लगा। उसने कहा कि अगर सत्कार ही मुझे चाहिए होता, अगर स्वागत ही मुझे चाहिए होता, अगर सुख ही मुझे चाहिए होता, तो मैं संन्यासी कैसे होता ? छोड़ो ! सपने की बातें मत करो। मतलब की बात कहो । तो उन्होंने कहा कि मतलब की बात यह अगर नहीं जाओगे, तो हम जबरदस्ती पकड़कर ले जाएंगे। तो उस संन्यासी ने कहा कि जिसे तुम पकड़कर ले जाओगे, वह संन्यासी नहीं है। संन्यासी परम स्वतंत्र है; उसे कोई पकड़कर नहीं ले जा सकता। उन्होंने कहा, हम मार डालेंगे। तो उस संन्यासी ने कहा, वह तुम कर सकते हो। लेकिन मैं तुमसे कहता हूं कि तुम मारोगे, लेकिन भ्रम में रहोगे, क्योंकि तुम जिसे मारोगे, वह मैं नहीं हूं। तुम अपने सिकंदर को ही लिवा लाओ। शायद उसकी कुछ समझ में आ जाए।
वे सिपाही सिकंदर को बुलाने आए। सिकंदर से उन्होंने कहा कि अजीब आदमी है। वह कहता है, मार डालो, तो भी जिसे तुम मारोगे, वह मैं नहीं हूं। कौन है फिर वह, सिकंदर ने कहा, हमने तो
ऐसा कोई आदमी नहीं देखा, जो मारने के बाद बचता हो । बचेगा | कैसे ? अब सिकंदर अनुभव से कहता था, हजारों लोग मारे थे | उसने । उसने कहा, मैंने कभी किसी आदमी को मरने के बाद बचते नहीं देखा !
गया, नंगी तलवार उसके हाथ में है। संन्यासी से उसने कहा कि चलना पड़ेगा। अन्यथा यह तलवार गरदन और शरीर को अलग कर देगी। वह संन्यासी खिलखिलाकर हंसने लगा । और उसने कहा कि जिस गरदन और शरीर के अलग करने की तुम बात कर रहे हो, उसे मैं बहुत पहले अलग है, ऐसा जान चुका हूं। इसलिए अब तुम और ज्यादा अलग न कर सकोगे। इतनी अलग जान चुका हूं कि तुम्हारी तलवार के लिए बीच में से गुजर जाने के लिए काफी फासला है, जगह है। काफी अलग जान चुका हूं, अब तुम और अलग न कर सकोगे।
सिकंदर को क्या समझ में आतीं ये बातें ! उसने तलवार उठा ली। उसने कहा, मैं अभी काट दूंगा। देखो, सिद्धांतों की बातों में मत पड़ो । फिलासफी से मुझे बहुत लेना-देना नहीं है। मैं आदमी व्यावहारिक हूं, प्रैक्टिकल हूं। ये ऊंची बातें छोड़ो। एक झटका और गरदन अलग हो जाएगी। सिकंदर से उस संन्यासी ने कहा, तुम मारो तलवार। जिस तरह तुम देखोगे कि गरदन नीचे गिर गई, उसी तरह हम भी देखेंगे कि गरदन नीचे गिर गई।
अब यह जो आदमी है, यह कह रहा है वही, जो कृष्ण कह रहे | हैं― छेदने से छिदता नहीं, काटने से कटता नहीं। इसलिए जब तक आप छेदने से छिद जाते हों और काटने से कट जाते हों, तब तक जानना, अभी अपने होने का पता नहीं चला। जब छेदने से शरीर छिद जाता हो और भीतर अनछिदा कुछ रह जाता हो; जब काटने से शरीर कट जाता हो और भीतर अनकटा कुछ शेष रह जाता हो; जब बीमार होने से शरीर बीमार हो जाता हो और भीतर बीमारी के बाहर कोई रह जाता हो; जब दुख आता हो तो शरीर दुख से भर जाता हो और भीतर दुख के पार कोई खड़ा देखता रह जाता हो – तब जानना कि कृष्ण जिस आप की बात कर रहे हैं, उस आप का अब तक आपको भी पता नहीं था।
अर्जुन वही बात कर रहा है, जो सिकंदर कर रहा है। टाइप भी | उनका एक ही है। उनके टाइप में भी बहुत फर्क नहीं है— शरीर ही । लेकिन हम सबका भी टाइप वही है।
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निरंतर खोजते रहना! कांटा तो चुभता है रोज पैर में, तब जरा | देखना कि अनचुभा भी भीतर कोई रह गया ? बीमारी तो आती