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STA मरणधर्मा शरीर और अमृत, अरूप आत्मा
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खाकर। उसका पूरा का पूरा पैर जख्मी हो गया। अंगूठे में उसे कंपने शुरू हो जाते हैं। कंपन से ही वे खबर पहुंचाते हैं। जैसे भयंकर पीड़ा है। चीखता है, चिल्लाता है, बेहोश हो जाता है। होश टिक-टिक, टिक-टिक से टेलिग्राफ में खबर पहुंचाई जाती है, आता है, फिर चीखता और चिल्लाता है। रात उसे डाक्टरों ने बेहोश | ऐसा ही कंपित होकर वे स्नायु खबर पहुंचाते हैं। कई हेड आफिसेज करके घुटने से नीचे का पूरा पैर काट डाला। क्योंकि उसके पूरे | से गुजरती है वह खबर आपके मस्तिष्क तक आने में। फिर शरीर के विषाक्त हो जाने का डर था।
मस्तिष्क चेतना तक खबर पहुंचाता है। इसमें कई ट्रांसफार्मेशन चौबीस घंटे बाद वह होश में आया। होश में आते ही उसने चीख होते हैं। कई कोड लैंग्वेज बदलती हैं। कई बार कोड बदलता है, मारी। उसने कहा, मेरे अंगूठे में बहुत दर्द हो रहा है! अंगूठा अब क्योंकि इन सबकी भाषा अलग-अलग है। था ही नहीं। पास खड़ी नर्स हंसी और उसने कहा, जरा सोचकर | तो कुछ ऐसा हुआ कि अंगूठा तो कट गया, लेकिन जो कहिए। सच, अंगूठे में दर्द हो रहा है? उसने कहा, क्या मजाक संदेशवाहक नाड़ियां खबर ले जा रही थीं, वे कंपती ही रहीं। वे कर रहा हूं? अंगूठे में मुझे बहुत भयंकर दर्द हो रहा है। कंबल पड़ा | कंपती रहीं, तो संदेश पहुंचता रहा। संदेश पहुंचता रहा और है उसके पैर पर, उसे दिखाई तो पड़ता नहीं।
मस्तिष्क कहता रहा कि अंगूठे में दर्द हो रहा है। उस नर्स ने कहा, और जरा सोचिए, थोड़ा भीतर खोज-बीन ___ क्या ऐसा हो सकता है कि हम एक आदमी के पूरे शरीर को करिए। उसने कहा, खोज-बीन की बात क्या है, दर्द इतना साफ | अलग कर लें और सिर्फ मस्तिष्क को निकाल लें? अब तो हो जाता है। नर्स ने कंबल उठाया और कहा, देखिए अंगूठा कहां है? अंगूठा है। पूरे शरीर को अलग किया जा सकता है। मस्तिष्क को बचाया तो नहीं था। आधा पैर ही नहीं था। पर उस आदमी ने कहा कि देख जा सकता है, अकेले मस्तिष्क को। अगर एक आदमी को हम तो रहा हूं कि अंगूठा नहीं है, आधा पैर भी कट गया है, लेकिन दर्द | बेहोश करें और उसके पूरे शरीर को अलग करके उसके मस्तिष्क फिर भी मुझे अंगूठे में हो रहा है।
को प्रयोगशाला में रख लें और अगर मस्तिष्क से हम पूछ सकें कि .. तब तो एक मुश्किल की बात हो गई। चिकित्सक बुलाए गए। तुम्हारा शरीर के बाबतं क्या खयाल है? तो वह कहेगा कि सब चिकित्सकों के सामने भी पहली दफा ऐसा सवाल आया था। जो | | ठीक है। कहीं कोई दर्द नहीं हो रहा है। शरीर है ही नहीं। वह अंगूठा नहीं है, उसमें दर्द कैसे हो सकता है? लेकिन फिर कहेगा, सब ठीक है। जांच-पड़ताल की, तो पता चला कि हो सकता है। जो अंगूठा नहीं शरीर का जो बोध है, वह कृष्ण कहते हैं, वस्त्र की भांति है। है, उसमें भी दर्द हो सकता है। यह बड़ी मेटाफिजिकल बात हो | | लेकिन वस्त्र ऐसा, जिससे हम इतने चिपट गए हैं कि वह वस्त्र नहीं गई, यह तो बड़ा अध्यात्म हो गया। डाक्टरों ने परी जांच-पड़ताल रहा, हमारी चमड़ी हो गया। इतने जोर से चिपट गए हैं, इतना की, तो लिखा कि वह आदमी ठीक कह रहा है, दर्द उसे अंगूठे में | | तादात्म्य है जन्मों-जन्मों का, कि शरीर ही मैं हूं, ऐसी ही हमारी हो रहा है।
पकड़ हो गई है। जब तक यह शरीर और मेरे बीच डिस्टेंस, फासला तब तो उस आदमी ने भी कहा कि क्या मजाक कर रहे हैं! पहले | | पैदा नहीं होता, तब तक कृष्ण का यह सूत्र समझ में नहीं आएगा उन्होंने उससे कहा था, क्या मजाक कर रहे हो? फिर उस आदमी कि जीर्ण वस्त्रों की भांति...। . ने कहा कि कैसी मजाक कर रहे हैं। मैं जरूर किसी भ्रम में पड़ गया | | यह, थोड़े-से प्रयोग करें, तो खयाल में आने लगेगा। बहुत होऊंगा। लेकिन आप भी कहते हैं कि दर्द हो सकता है उस अंगूठे ज्यादा प्रयोग नहीं, बहुत थोड़े-से प्रयोग। सत्य तो यही है, जो कहा में, जो नहीं है! तो डाक्टरों ने कहा, हो सकता है। क्योंकि दर्द जा रहा है। असत्य वह है, जो हम माने हुए हैं। लेकिन माने हुए अंगूठे में होता है, पता कहीं और चलता है। अंगूठे और पता चलने असत्य वास्तविक सत्यों को छिपा देते हैं। माना हुआ है हमने, वह की जगह में बहुत फासला है। जहां पता चलता है, वह चेतना है। हमारी मान्यता है। और बचपन से हम सिखाते हैं और मान्यताएं घर जहां दर्द होता है, वह अंगूठा है। दर्द से चेतना तक संदेश लाने के | करती चली जाती हैं। लिए जिन स्नायुओं का काम रहता है, भूल से वे स्नायु अभी तक ___ हमने माना हुआ है कि मैं शरीर हूं। शरीर सुंदर होता है, तो हम खबर दे रहे हैं कि दर्द हो रहा है।
| मानते हैं, मैं सुंदर हूं। शरीर स्वस्थ होता है, तो हम मानते हैं, मैं जब अंगूठे में दर्द होता है, तो उससे जुड़े हुए स्नायुओं के तंतु स्वस्थ हूं। शरीर को कुछ होता है, तो हम मैं के साथ एक करके
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