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m गीता दर्शन भाग-1 -
वह सूक्ष्म शरीर जिन चीजों से बना है, उन्हें समझ लेना जरूरी | सागर में ही जाना पड़े। है। वह हमारी इच्छाओं से, वासनाओं से, कामनाओं से, ___ माता-पिता से मिलता है बूंद का आकार, बाह्य। स्वयं के पिछले आकांक्षाओं से, अपेक्षाओं से, हमारे किए कर्मों से, हमारे न किए | | जन्मों से मिलती है बंद की भीतरी व्यवस्था। और परमात्मा से कर्मों से लेकिन चाहे गए कर्मों से, हमारे विचारों से, हमारे कामों से, | मिलती है जीवन-ऊर्जा, वह है हमारी आत्मा। लेकिन जब तक इस हम जो भी रहे हैं—सोचा है, विचारा है, किया है, अनुभव किया | बूंद की दोहरी परत को हम ठीक से न पहचान लें, तब तक उसको है, भावना की है—उस सबका, उस सबके इलेक्ट्रानिक प्रभावों से, हम नहीं पहचान सकते, जो दोनों के बाहर है। उस सबके वैद्युतिक प्रभावों से निर्मित हमारा सूक्ष्म शरीर है। आज इतना ही। फिर कल सुबह बात करेंगे।
उस सूक्ष्म शरीर का विसर्जन ही दो परिणाम लाता है। इधर गर्भ की यात्रा बंद हो जाती है। जब ज्ञान हुआ तब बुद्ध ने कहा कि घोषणा करता हूं कि मेरे मन, तू, जिसने अब तक मेरे लिए बहुत शरीरों के घर बनाए, अब तू विश्राम को उपलब्ध हो सकता है। अब तुझे मेरे लिए कोई और घर बनाने की जरूरत नहीं। धन्यवाद देता हूं और तुझे छुट्टी देता हूं। अब तेरे लिए कोई काम नहीं बचा, क्योंकि मेरी कोई कामना नहीं बची। अब तक मेरे लिए अनेक-अनेक घर बनाने वाले मन, अब तुझे आगे घर बनाने की कोई जरूरत नहीं है।
मरते वक्त जब बुद्ध से लोगों ने पूछा कि अब, जब कि आपकी | आत्मा परम में लीन हो जाएगी, तो आप कहां होंगे? तो बुद्ध ने | " कहा कि अगर मैं कहीं होऊंगा तो परम में लीन कैसे हो सकूँगा! क्योंकि जो समव्हेयर है, जो कहीं है, वह एवरीव्हेयर नहीं हो सकता, वह सब कहीं नहीं हो सकता। जो कहीं है, वह सब कहीं नहीं हो सकता। तो बुद्ध ने कहा, यह पूछो ही मत। अब मैं कहीं नहीं होऊंगा, क्योंकि सब कहीं होऊंगा। मगर फिर-फिर पूछते हैं भक्त, कि कुछ तो बताएं, अब आप कहां होंगे?
बूंद से पूछ रहे हैं कि सागर में गिरकर तू कहां होगी? बूंद कहती है, सागर ही हो जाऊंगी। लेकिन और बूंदें पूछना चाहेंगी कि वह तो ठीक है, लेकिन फिर भी कहां होगी? कभी मिलने आएं। तो बूंद, जो सागर हो रही है, वह कहती है, तुम सागर में ही आ जाना, तो मिलन हो जाएगा। लेकिन बूंद से मिलन नहीं होगा, सागर से ही मिलन होगा।
जिसे बुद्ध से मिलना हो, कृष्ण से मिलना हो, महावीर से मिलना हो, जीसस से, मोहम्मद से मिलना हो, तो अब बूंद से मिलना नहीं हो सकता। कितना ही मूर्ति बनाकर रखे रहें; अब बूंद से मिलना नहीं हो सकता। बूंद गई सागर में, इसीलिए तो मूर्ति बनाई। यही तो मजा है, पैराडाक्स है। मूर्ति इसीलिए बनाई कि बूंद सागर में गई। बनाने योग्य हो गई मूर्ति अब इसकी।
लेकिन अब मूर्ति में कुछ मतलब नहीं है। अब तो मिलना हो तो
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