________________
m- गीता दर्शन भाग-1-4m
कोई मरा और न कभी कोई मर सकता है। मृत्यु अकेला भ्रम है। | फिर चलने लगी, हृदय फिर धड़कने लगा, खून फिर बहने लगा, शायद इस मृत्यु के आस-पास ही हमारे जीवन के सारे कोण निर्मित | नाड़ी फिर वापस लौट आई। और उन्होंने कहा, फिर सर्टिफिकेट होते हैं। जो देखता है कि मृत्यु सत्य है, उसके जीवन में शरीर से | लिखें कि इस आदमी के बाबत क्या खयाल है! उन डाक्टरों ने ज्यादा का अनुभव नहीं है।
कहा, हम बड़ी मुश्किल में पड़ गए। आप हम पर कोई अदालत में __यह बड़े मजे की बात है कि आपको मृत्यु का कोई भी अनुभव मुकदमा तो न चलाएंगे? क्योंकि मेडिकल साइंस जो कह सकती नहीं है। आपने दूसरों को मरते देखा है, अपने को मरते कभी नहीं | थी, हमने कह दिया। तो ब्रह्मयोगी ने कहा, मुझे यह भी लिखकर देखा है।
दें कि अब तक जितने लोगों को आपने मरने के सर्टिफिकेट दिए समझें कि एक व्यक्ति को हम विकसित करें, जिसने मृत्यु न | हैं, वे संदिग्ध हो गए हैं। देखी हो, किसी को मरते न देखा हो। कल्पना कर लें, एक व्यक्ति असल में जिसे हम मृत्यु कह रहे हैं, वह जीवन का शरीर से को हम इस तरह बड़ा करते हैं, जिसने मृत्यु नहीं देखी। क्या यह | सरक जाना है। जैसे कोई दीया अपनी किरणों को सिकोड़ ले आदमी कभी भी सोच पाएगा कि मैं मर जाऊंगा? क्या इसके मन वापस, ऐसे जीवन का फैलाव वापस सिकुड़ जाता है, बीज में में कभी भी यह कल्पना भी उठ सकती है कि मैं मर जाऊंगा? । वापस लौट जाता है। फिर नई यात्रा पर निकल जाता है। लेकिन
असंभव है। मृत्यु इनफरेंस है, अनुमान है; दूसरे को मरते | बाहर से इस सिकुड़ने को हम मृत्यु समझ लेते हैं। देखकर। और मजा यह है कि जब दूसरा मरता है तो आप मृत्यु नहीं बटन दबा दी हमने, बिजली का बल्ब जलता था, किरणें समाप्त देख रहे, क्योंकि मृत्यु की घटना आपके लिए सिर्फ इतनी है कि वह | हो गईं। बल्ब से अंधकार झरने लगा। क्या बिजली मर गई? सिर्फ कल तक बोलता था. अब नहीं बोलता: कल तक चलता था. अब अभिव्यक्ति खो गई। सिर्फ मैनिफेस्टेशन बंद हो गया। फिर बटन नहीं चलता। आप चलते हुए को, न चलते की अवस्था में गया दबाते हैं, फिर किरणें बिजली की वापस बहने लगीं। क्या बिजली हुआ देख रहे हैं। बोलते हुए को, न बोलते की अवस्था में देख रहे पुनरुज्जीवित हो गई? क्योंकि जो मरी नहीं थी, उसको पुनरुज्जीवित हैं। धड़कते हृदय को, न धड़कते हृदय की अवस्था में देख रहे हैं। | कहने का कोई अर्थ नहीं है। बिजली पूरे समय वहीं थी, सिर्फ लेकिन क्या इतने से काफी है कि आप कहें, जो भीतर था, वह मर अभिव्यक्ति खो गई थी। गया? क्या इतना पर्याप्त है ? क्या इतना काफी है ? मृत्यु की निष्पत्ति जिसे हम मृत्यु कहते हैं, वह प्रकट का फिर पुनः अप्रकट हो लेने को क्या यह काफी हो गया? यह काफी नहीं है। | जाना है। जिसे हम जन्म कहते हैं, वह अप्रकट का पुनः प्रकट हो
दक्षिण में एक योगी थे कुछ वर्षों पहले, ब्रह्मयोगी। उन्होंने | | जाना है। आक्सफोर्ड युनिवर्सिटी में, और कलकत्ता और रंगून युनिवर्सिटी | कृष्ण कहते हैं, न ही शरीर को मारने से आत्मा मरती है, न ही में तीन जगह मरने का प्रयोग करके दिखाया। वह बहुत कीमती | | शरीर को बचाने से आत्मा बचती है। आत्मा न मरती है, न बचती प्रयोग था। वह दस मिनट के लिए मर जाते थे।
है। असल में जो मरने और बचने के पार है, वही आत्मा है, वही जब आक्सफोर्ड युनिवर्सिटी में उनका प्रयोग हुआ तो डाक्टर्स अस्तित्व है। .. मौजूद थे। और उन्होंने कहा कि इस दस मिनट में आप मेरी शेष सांझ हम बात करेंगे। जांच-पड़ताल करके लिख दें सर्टिफिकेट कि यह आदमी मर गया कि जिंदा है। फिर उनकी श्वास खो गई। फिर उनकी नाड़ी बंद हो गई। फिर हृदय ने धड़कना बंद कर दिया। फिर खून की चाल सब शांत हो गई। और दस डाक्टरों ने-आक्सफोर्ड युनिवर्सिटी के मेडिकल कालेज के सर्टिफिकेट लिखा कि यह आदमी मर गया है। और मरने के सारे सिम्प्टम्स इस आदमी ने पूरे कर दिए हैं। और दस आदमियों ने दस्तखत किए।
और वे ब्रह्मयोगी दस मिनट के बाद वापस जिंदा हो गए। श्वास