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मृत्यु के पीछे अजन्मा, अमृत और सनातन का दर्शन AM
देते हैं। असत्य जैसी कोई चीज है भी नहीं, क्योंकि असत्य का | | अनुभव कर लेता है, ऐसा व्यक्ति ही ज्ञानी है। जिसे जन्म में मृत्यु मतलब ही होता है जो नहीं है। सिर्फ आधे सत्य ही असत्य हैं। वे | की यात्रा दिखाई पड़ जाती है, जिसे सुख में दुख की छाया दिखाई भी हैं इसीलिए कि वे भी सत्य के आधे हिस्से हैं। पूरा सत्य आनंद | | पड़ जाती है, मिलन में विरह आ जाता है जिसके पास, जो प्रतिपल में ले जाता, आधा सत्य सुख-दुख में डांवाडोल करवाता है। विपरीत को मौजूद देखने में समर्थ हो जाता है, वैसा व्यक्ति ही ज्ञानी
इस जगत में असत्य से मुक्त नहीं होना है, सिर्फ आधे सत्यों से | | है। देखने में समर्थ हो जाता है-खयाल रखना जरूरी है। ऐसा मुक्त होना है। ऐसा समझिए कि आधा सत्य, हाफ ट्रथ ही असत्य | | मानने में समर्थ हो जाता है, वह ज्ञानी नहीं हो जाता है। मान लिया है। और कोई असत्य है नहीं। असत्य को भी खड़ा होना पड़े तो | | ऐसा, तो काम नहीं चलता है। सत्य के ही आधार पर खड़ा होना पड़ता है, वह अकेला खड़ा नहीं __माने हुए सत्य अस्तित्व के जरा-से धक्के में गिर जाते हैं और हो सकता; उसके पास अपने कोई पैर नहीं हैं।
बिखर जाते हैं। जाने हुए सत्य ही जीवन में नहीं बिखरते हैं। जो कृष्ण कह रहे हैं अर्जुन से, तू पूरे सत्य को देख। तू आधे सत्य ऐसा जान लेता है, ऐसा देख लेता है, या कहें कि ऐसा अनुभव कर को देखकर विचलित, पीड़ित, परेशान हो रहा है।
| लेता है और बड़े मजे की बात है कि अनुभव करने कहीं दूर जाने जो भी विचलित, पीड़ित, परेशान हो रहा है, वह किसी न किसी की जरूरत नहीं है। जिंदगी रोज मौका देती है, प्रतिपल मौका देती आधे सत्य से परेशान होगा। जहां भी दुख है, जहां भी सुख है, है। ऐसा कोई सुख जाना है आपने, जो दुख न बन गया हो? ऐसा वहां आधा सत्य होगा। और आधा सत्य पूरे समय पूरा सत्य बनने कोई सुख जाना है जीवन में, जो दुख न बन गया हो? ऐसी कोई की कोशिश कर रहा है।
| सफलता जानी है, जो विफलता न बन गई हो? ऐसा कोई यश जाना तो जब आप सुखी हो रहे हैं, तभी आपके पैर के नीचे से जमीन | है, जो अपयश न बन गया हो? खिसक गई है और दुख आ गया है। जब आप दुखी हो रहे हैं, तभी | | लाओत्से कहा करता था कि मुझे जीवन में कभी कोई हरा नहीं जरा गौर से देखें, आस-पास कहीं दुख के पीछे सुख छाया की तरह | | पाया। वह मर रहा है, आखिरी क्षण है। तो शिष्यों ने पूछा, वह राज
आ रहा है। इधर सुबह होती है, उधर सांझ होती है। इधर दिन हमें भी बता दो, क्योंकि चाहते तो हम भी हैं कि जीतें और कोई हमें निकलता है, उधर रात होती है। इधर रात है, उधर दिन तैयार हो | | हरा न पाए। जरूर बता दें जाने के पहले वह राज, वह सीक्रेट। रहा है। जीवन पूरे समय, अपने से विपरीत में यात्रा है। जीवन पूरे | लाओत्से हंसने लगा। उसने कहा, तुम गलत आदमी हो। तुम्हें समय, अपने.से विपरीत में यात्रा है। एक छोर से दूसरे छोर पर | बताना बेकार है। तुमने मेरी पूरी बात भी न सुनी और बीच में ही पूछ लहरें जा रही हैं। कृष्ण कहते हैं, भारत! पूरा सत्य देख। पूरा तुझे | लिया। मैं इतना ही कह पाया था कि मुझे जिंदगी में कोई हरा नहीं दिखाई पड़े, तो तू अनुद्विग्न हो सकता है।
पाया। तुम इतनी जल्दी ही पूछ लिए। पूरी बात तो सुन लो! आगे मैं कहने वाला था कि मुझे जिंदगी में कोई हरा नहीं पाया, क्योंकि मैंने
जिंदगी में किसी को जीतना नहीं चाहा। क्योंकि मुझे दिखाई पड़ गया यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ ।
कि जीता कि हारने की तैयारी की। इसलिए मुझे कोई हरा नहीं पाया, समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते ।। १५ ।। क्योंकि मैं कभी जीता ही नहीं। उपाय ही न रहा मुझे हराने का। मुझे क्योंकि, हे पुरुषश्रेष्ठ, दुख-सुख को समान समझने वाले | हराने वाला आदमी ही नहीं था पृथ्वी पर। कोई हरा ही नहीं सकता जिस धोर पुरुष को ये इंद्रियों के विषय व्याकुल नहीं कर था, क्योंकि मैं पहले से ही हारा हुआ था। मैंने जीतने की कोई चेष्टा सकते, वह मोक्ष के लिए योग्य होता है। ही नहीं की। लेकिन तुम कहते हो कि हम भी जीतना चाहते हैं और.
हम भी चाहते हैं कि कोई हमें हरा न पाए, तब तो तुम हारोगे। क्योंकि
जीत और हार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। रोधी ध्रुवों में बंटा हुआ जो हमारा अस्तित्व है, इन | | कृष्ण कह रहे हैं, वह यह कह रहे हैं कि ऐसा जो देख लेता दोनों के बीच, इन दोनों की आकृतियों के भेद को | | है....! और देखने का ध्यान रखें; यह देखना एक्झिस्टेंशियल देखकर, इनके भीतर की अस्तित्व की एकता को जो | अनुभव है; यह अस्तित्वगत अनुभव है। हम रोज जानते हैं, लेकिन
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