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Sam गीता दर्शन भाग-1 AM
अहो बत महत्पापं कर्तुव्यवसिता वयम् ।
योग्य नहीं है। हे परंतप, तुच्छ हृदय की दुर्बलता को यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः।। ४५ ।।
त्यागकर युद्ध के लिए खड़ा हो। अहो! शोक है कि हम लोग (बुद्धिमान होकर भी) महान पाप करने को तैयार हुए हैं, जो कि राज्य और सुख के लोभ से अपने कुल को मारने के लिए उद्यत हुए हैं।
जय ने अर्जुन के लिए, दया से भरा हुआ, दया के यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः।
1 आंसू आंख में लिए, ऐसा कहा है। दया को थोड़ा धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत् । । ४६ ।।।
समझ लेना जरूरी है। संजय ने नहीं कहा, करुणा से यदि मुझ शस्त्ररहित, न सामना करने वाले को, शस्त्रधारी भरा हुआ; कहा है, दया से भरा हुआ। धृतराष्ट्र के पुत्र रण में मारें, तो वह मरना भी मेरे लिए साधारणतः शब्दकोश में दया और करुणा पर्यायवाची दिखाई अति कल्याणकारक होगा।
| पड़ते हैं। साधारणतः हम भी उन दोनों शब्दों का एक-सा प्रयोग संजय उवाच
करते हुए दिखाई पड़ते हैं। उससे बड़ी भ्रांति पैदा होती है। दया का एवमुक्त्वार्जुनः संख्ये रथोपस्थ उपाविशत् । | अर्थ है, परिस्थितिजन्य; और करुणा का अर्थ है, मनःस्थितिजन्य। विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः ।। ४७।। उनमें बुनियादी फर्क है। संजय बोले कि रणभूमि में शोक से उद्विग्न मन वाला अर्जुन | |
| करुणा का अर्थ है, जिसके हृदय में करुणा है। बाहर की इस प्रकार कहकर बाण सहित धनुष को त्यागकर | परिस्थिति से उसका कोई संबंध नहीं है। करुणावान व्यक्ति अकेले स्थ के पिछले भाग में बैठ गया। | में बैठा हो, तो भी उसके हृदय से करुणा बहती रहेगी। जैसे निर्जन
| में फूल खिला हो, तो भी सुगंध उड़ती रहेगी। राह पर निकलने
| वालों से कोई संबंध नहीं है। राह से कोई निकलता है या नहीं अथ द्वितीयोऽध्यायः
| निकलता है, फूल की सुगंध को इससे कुछ लेना-देना नहीं है। नहीं | कोई निकलता, तो निर्जन पर भी फूल की सुगंध उड़ती है। कोई
निकलता है तो उसे सुगंध मिल जाती है, यह दूसरी बाते है; फूल तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् । उसके लिए सुगंधित नहीं होता है। विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः।।१।। । करुणा व्यक्ति की अंतस चेतना का स्रोत है। वहां सुगंध की संजय ने कहाः पूर्वोक्त प्रकार से दया से भरकर और | भांति करुणा उठती है। इसलिए बुद्ध को या महावीर को दयावान आंसुओं से पूर्ण तथा व्याकुल नेत्रों वाले शोकयुक्त उस | कहना गलत है, वे करुणावान हैं, महाकारुणिक हैं। अर्जुन के प्रति भगवान मधुसूदन ने यह वचन कहा। __अर्जुन को संजय कहता है, दया से भरा हुआ। दया सिर्फ उनमें श्रीभगवानुवाच
| पैदा होती है, जिनमें करुणा नहीं होती। दया सिर्फ उनमें पैदा होती कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् । | है, जिनके भीतर हृदय में करुणा नहीं होती। दया परिस्थिति के
अनार्यजुष्टमस्वयंमकीर्तिकरमर्जुन । । २।। दबाव से पैदा होती है। करुणा हृदय के विकास से पैदा होती है। हे अर्जुन, तुमको इस विषम स्थल में यह अज्ञान किस हेतु राह पर एक भिखारी को देखकर जो आपके भीतर पैदा होता है, वह से प्राप्त हुआ, क्योंकि यह न तो श्रेष्ठ पुरुषों से आचरण दया है; वह करुणा नहीं है। किया गया है, न स्वर्ग को देने वाला है,
और तब एक बात और समझ लेनी चाहिए कि दया अहंकार को न कीर्ति को करने वाला है।
| भरती है और करुणा अहंकार को विगलित करती है। करुणा सिर्फ क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते । उसमें ही पैदा होती है, जिसमें अहंकार न हो। दया भी अहंकार को
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परंतप ।।३।। | ही परिपुष्ट करने का माध्यम है। अच्छा माध्यम है, सज्जनों का इसलिए हे अर्जुन, नपुंसकता को मत प्राप्त हो । यह तेरे लिए माध्यम है, लेकिन माध्यम अहंकार को ही पुष्ट करने का है।
संजय उवाच
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