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गीता दर्शन भाग-1 AM
चीज को ज्यादा जान लेंगे; और यह भी संभावना है कि दोबारा यह कहेगा। कसम खाएगा कि अब क्रोध कभी नहीं करूंगा। गुजरते वक्त आप उतना भी न जान पाएंगे, जितना आपने पहली हालांकि ये कसमें इसने पहले भी खाई हैं, इसका कोई मतलब नहीं बार जाना था। दोनों ही बातें हैं।
| है। यह जड़ व्यवस्था हो गई है। आपके घर के सामने जो वृक्ष लगा है, आप उसको शायद ही | | लेकिन अगर कोई आदमी होशपूर्वक क्रोध किया है, तो हर बार देखते हों, क्योंकि इतनी बार देखा है कि देखने की कोई जरूरत | क्रोध का अनुभव उसे क्रोध से मुक्त कराने में सहयोगी होगा। और नहीं रह गई है। पति-पत्नी शायद ही एक-दूसरे को देखते हों। | अगर बेहोशी से क्रोध किया है, तो हर क्रोध का अनुभव उसे और तीस-तीस साल साथ रहते हो गए। देख लिया था बहुत पहले, जब भी क्रोध की जड़ मूर्छा में ले जाने में सहयोगी होता है। शादी हुई थी। फिर देखने का कोई मौका नहीं आया। असल में ___जीवन का पुनरावर्तन दोनों संभावनाएं खोलता है। हम कैसा देखने की कोई जरूरत नहीं आई। अपरिचित स्त्री सड़क से | उपयोग करेंगे, हम पर निर्भर है। जीवन सिर्फ संभावनाएं देता है। निकलती है, तो दिखाई पड़ती है।
हम उन संभावनाओं को क्या रूपांतरण देंगे, यह हम पर निर्भर है। असल में अपरिचित दिखाई पड़ता है, परिचित के प्रति हम अंधे एक आदमी चाहे तो क्रोध करके और गहरे क्रोध का अभ्यासी बन हो जाते हैं; ब्लाइंड स्पाट हो जाता है। उसे देखने की कोई जरूरत सकता है। और एक आदमी चाहे तो क्रोध करके, क्रोध की मूर्खता नहीं होती। कभी आंख बंद करके सोचें कि आपकी मां का चेहरा | को देखकर, व्यर्थता को देखकर, क्रोध की अग्नि और विक्षिप्तता कैसा है, तो आप बड़ी मुश्किल में पड़ जाएंगे। फिल्म एक्ट्रेस का | | को देखकर, क्रोध से मुक्त हो सकता है। जो आदमी जड़ होता चला चेहरा याद आ सकता है; मां का चेहरा आंख बंद करके देखेंगे, तो जाता है, वह अधार्मिक होता चला जाता है; वह और संसारी होता एकदम खोने लगेगा। थोड़ी देर में रूप-रेखा गड्ड-मड्ड हो जाएगी। चला जाता है। जो आदमी चेतन होता चला जाता है, वह धार्मिक मां का चेहरा पकड़ में नहीं आता! इतना देखा है, इतने पास से देखा | होता चला जाता है, उसके जीवन में एक क्रांति होती चली जाती है। है, कि कभी गौर से नहीं देखा। निकटता अपरिचय बन जाती है। प्रत्येक पर निर्भर है कि जीवन का आप क्या करेंगे। निकटता अपरिचय बन जाती है।
जीवन निर्भर नहीं है, जीवन अवसर है। उसमें क्या करेंगे, यह तो अनंत जीवन में एक से ही अनुभव से बार-बार गुजरने पर आप पर निर्भर है। यह निर्भरता ही आपके आत्मवान होने का प्रमाण . दो संभावनाएं हैं। और चुनाव आप पर है कि आप क्या करेंगे; | | है। यह निर्भरता ही आपके आत्मा होने का गौरव है। आपके पास स्वतंत्रता आपकी है।
| आत्मा है, अर्थात चुनाव की शक्ति है कि आप चुनें कि क्या करेंगे। आप यह भी कर सकते हैं कि आप बिलकुल जड़, मेकेनिकल और मजे की बात यह है कि आपने हजारों चक्कर लगाए हों, हो जाएं, जैसा कि हम अधिक लोग हो गए हैं। एक यंत्रवत घूमते | अगर आज भी आप निर्णय कर लें, तो सारे चक्कर इसी क्षण छोड़ रहें, बस वही रोज-रोज करते रहें। कल भी क्रोध किया था. परसों सकते हैं, तोड़ सकते हैं। लेकिन मन लीस्ट रेसिस्टेंस की तरफ भी क्रोध किया था, उसके पहले भी, पिछले वर्ष भी, उसके पहले बहता है। घर में एक लोटा पानी गिरा दें। फर्श से बह जाए, सूख वर्ष भी। इस जन्म का ही हिसाब रखें, तो भी काफी है। अगर पचास | जाए, पानी उड़ जाए; लेकिन एक सूखी रेखा फर्श पर छूट जाती साल जीए हैं, तो कितनी बार क्रोध किया है! और हर बार क्रोध | | है। पानी नहीं है जरा भी। कुछ भी नहीं है, सिर्फ एक सूखी रेखा। करके कितनी बार पश्चात्ताप किया है। और हर बार पश्चात्ताप और सूखी रेखा का मतलब क्या है? कुछ भी मतलब नहीं है। वहां करके फिर दुबारा क्रोध किया है, फिर दुबारा पश्चात्ताप किया है! | | पानी बहा था। बस, इतनी एक रेखा छूट जाती है। फिर दुबारा पानी फिर धीरे-धीरे एक रूटीन, एक व्यवस्था बन गई है।
उस कमरे में डोल दें, सौ में से निन्यानबे मौके यह हैं कि वह उसी और आदमी को देखकर आप कह सकते हैं कि यह अभी क्रोध | | सूखी रेखा को पकड़कर फिर बहेगा। क्योंकि लीस्ट रेसिस्टेंस है। कर रहा है, थोड़ी देर बाद पश्चात्ताप करेगा। क्रोध में क्या कह रहा | | उस सूखी रेखा पर धूल कम है। कमरे के दूसरे हिस्सों में धूल ज्यादा है, यह भी बता सकते हैं, क्या कहेगा, यह भी बता सकते है। वहां जगह जरा आसानी से बहने की है। पानी वहीं से बहेगा। हैं-अगर दो-चार दफे उसको क्रोध करते देखा है। और बाद में । हम बहुत बार जो किए हैं, वहां-वहां सूखी रेखाएं बन गई हैं। भी प्रिडिक्ट कर सकते हैं कि क्रोध के बाद पश्चात्ताप में ये-ये बातें उन सखी रेखाओं को ही मनस-शास्त्र संस्कार कहता है। वह
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