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Im गीता दर्शन भाग-1 AIR
और या अपने को बदले और नए तलों पर चेतना को ले जाए। हो। नास्तिकता भी हां पर खड़ी हो सकती है।
पाल टिलिक का वक्तव्य अधूरा है। और पाल टिलिक के और बड रसेल की नास्तिकता हां पर खड़ी है। ईश्वर को वक्तव्य के अधूरे होने का कारण है। क्रिश्चियनिटी का बुनियादी | | इनकार करता है, लेकिन प्रेम को इनकार नहीं करता। और जो सत्य अधूरा है। ईसाइयत का बुनियादी सत्य अधूरा है। और आदमी प्रेम को इनकार नहीं करता, उसको नास्तिक केवल नासमझ इसलिए ईसाइयत ने डिस्पेअर को...और पाल टिलिक जो है, | | आस्तिक ही कह सकते हैं। क्योंकि जो आदमी प्रेम को इनकार नहीं आधुनिक युग में ईसाइयत का बड़ा व्याख्याकार है। उसके पास करता, वह बहुत गहरे में परमात्मा को स्वीकार कर रहा है। फार्मल पैनी दृष्टि है, लेकिन पैनी दृष्टि जरूरी नहीं है कि पूरी हो। नहीं है उसकी स्वीकृति। वह भगवान की मूर्ति रखकर मंदिर में घंटी
ईसाइयत ने जीसस की जो शकल पकड़ी है, वह डिस्पेअर की नहीं बजाता। लेकिन जो बजाते हैं, वे कोई आस्तिक हैं, ऐसा मानने है। ईसाइयत ने जीसस की और कोई शकल नहीं पकड़ी। ईसाइयत का कोई भी कारण नहीं है। क्योंकि घंटी बजाने से आस्तिकता का के पास जीसस की हंसती हुई कोई तस्वीर नहीं है। ईसाइयत के पास | क्या लेना-देना है? प्रेम का स्वर जिसके जीवन में हो, उसके जीवन जीसस का नाचता हुआ, प्रसन्न कोई व्यक्तित्व नहीं है। ईसाइयत के | | में प्रार्थना ज्यादा दूर नहीं है। प्रेम का स्वर जिसके जीवन में हो, पास सत-चित-आनंद की घोषणा करने वाले जीसस की कोई उसके जीवन में परमात्मा ज्यादा दूर नहीं है। और प्रेम इनकार करने धारणा नहीं है, कोई प्रतिमा नहीं है। उनके पास प्रतिमा है जीसस वाला सूत्र नहीं है, प्रेम स्वीकार करने वाला सूत्र है। प्रेम बड़ी गहरी की-सूली पर लटके हुए, कंधे पर टिका हुआ सिर, आंखें उदास, हां है पूरे अस्तित्व के प्रति। मरने की घड़ी! और क्रास इसलिए ईसाइयत का प्रतीक बन | तो मैं बड रसेल को नास्तिक सिर्फ औपचारिक अर्थों में कहता गया-सूली। यह जो डिस्पेअर और सूली है, यह अपने आप में | हूं। औपचारिक अर्थों में बर्दैड रसेल नास्तिक है। जिस तरह धार्मिक नहीं है। हो सकती है धार्मिक, नहीं भी हो सकती है। | औपचारिक अर्थों में बहुत से लोग आस्तिक हैं। लेकिन बड रसेल
और पाल टिलिक बढ़ेंड रसेल के संबंध में गलत बात कहते हैं, की नास्तिकता आस्तिकता की तरफ बहती हुई है; बहती हुई है, उसमें पूरी ही तरह गलत कहते हैं, अगर वे यह कहते हैं कि बदँड रसेल बहाव है; वह खुल रही है। वह फूलों में भी आनंद ले पाता है। . जैसे लोग आत्मवंचक हैं। क्योंकि बड रसेल नास्तिक है, ईश्वर हमारा आस्तिक मंदिर में जाकर फूल तो चढ़ा देता है, लेकिन फूल पर उसकी कोई आस्था नहीं है। इसलिए अगर कोई पूछता है पाल में कोई आनंद नहीं ले पाता। फूल तोड़ते वक्त उसे ऐसा नहीं लगता टिलिक से कि बऍड रसेल को ईश्वर पर कोई आस्था नहीं है, फिर | | कि परमात्मा को तोड़ रहा है। पत्थर की एक मूर्ति के लिए एक जिंदा भी बर्दैड रसेल को अर्थहीनता, एंपटीनेस, खालीपन का कोई बोध | | फूल को तोड़कर चढ़ा देता है। यह आदमी गहरे में नास्तिक है। नहीं होता है, जैसा सार्च को होता है या कामू को या किसी और को इसका अस्तित्व के प्रति कोई स्वीकार-भाव नहीं है। और न अस्तित्व होता है। बड रसेल को क्यों नहीं होता? अगर वे नास्तिक हैं, तो | | में इसे परमात्मा की कोई प्रतीति है। इसे कोई प्रतीति नहीं है। इसकी उन्हें खालीपन का अनुभव होना चाहिए।
पत्थर की मूर्ति को कोई तोड़ दे, तो यह हत्या पर उतारू हो जाता है, जरूरी नहीं है। क्योंकि नास्तिकता भी मेरी दृष्टि में दो तरह की जिंदा मूर्तियों को तोड़ देता है। इसके मन में आस्तिकता का कोई होती है, अपने में बंद, और बाहर बहती हुई। जो नास्तिक अपने में | | संबंध नहीं है। इसकी आस्तिकता आत्मवंचना है। बंद हो जाएगा—जैसा विषाद अपने में बंद हो जाएगा तो वह और बट्रेंड रसेल की नास्तिकता भी आत्मवंचना नहीं है। क्योंकि खाली हो जाएगा। क्योंकि जो आदमी नहीं के ऊपर जिंदगी खड़ी | मझे ऐसा दिखाई पड़ता है कि रसेल सिंसियर, ईमानदार आदमी है। करेगा, वह एंप्टी हो जाएगा। जो आदमी कहेगा कि नहीं मेरे जीवन | और ईमानदार आदमी जल्दी आस्तिक नहीं हो सकता। सिर्फ का आधार है, वह खाली नहीं होगा तो और क्या होगा! बेईमान आदमी ही जल्दी आस्तिक हो सकते हैं। क्योंकि जिस
क्योंकि नहीं के बीज से कोई अंकुर नहीं निकलता। नहीं के बीज | | आदमी ने ईश्वर को भी बिना खोजे ही भर दी, उससे बड़ा बेईमान से कोई फूल नहीं खिलते। नहीं के बीज से कोई जीवन विकसित आदमी मिल सकता है। जिस आदमी ने ईश्वर जैसे महत तत्व को नहीं होता। जीवन में कहीं न कहीं हां अगर न हो. तो जीवन खाली किताब में पढकर स्वीकार कर लिया. उस आदमी से ज्यादा हो जाएगा। लेकिन जरूरी नहीं है कि नास्तिकता नहीं पर ही खड़ी आत्मवंचक आदमी, सेल्फ डिसेप्टिव आदमी मिल सकता है!
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