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im गीता दर्शन भाग-1 AM
सकता हूं, वह मैं नहीं पा रहा हूं। जो संभव है, वह संभव नहीं हो पीड़ा से गुजर रहा है, जिससे धर्म पैदा हो सकता है। युधिष्ठिर तृप्त पा रहा है, इसलिए विषाद हो रहा है।
| है; अतीत से जो धर्म मिला है, उससे राजी है। इसलिए धार्मिक भी इसलिए जितना ही प्रतिभाशाली व्यक्तित्व होगा, उतने ही गहरे हो सकते हैं, जुआ भी खेल सकते हैं, तब भी कोई संदेह मन में विषाद में उतरेगा। सिर्फ जड़-बुद्धि विषाद को उपलब्ध नहीं होते हैं। | पैदा नहीं होता। धार्मिक भी हो सकते हैं, राज्य के लिए युद्ध पर भी क्योंकि जड़-बुद्धि को तुलना का उपाय भी नहीं होता; उसे यह भी | | जा सकते हैं, तब भी कोई संदेह मन में पैदा नहीं होता। धार्मिक भी खयाल नहीं होता कि मैं क्या हो सकता हूं। जिसे यह खयाल है कि हैं और तथाकथित धर्म के आस-पास सब अधर्म पूरी तरह चलता मैं क्या हो सकता है, जिसे यह खयाल है कि आनंद संभव है, उसके है; कोई पीड़ा उससे नहीं होती। विषाद की कालिमा बढ जाएगी: उसे विषाद ज्यादा गहरा दिखाई आमतौर से मंदिर में. मस्जिद में, गरुद्रारा में, चर्च में जाने वाला पड़ेगा। जिसे सुबह का पता है, उसे रात के अंधकार में बहुत | आदमी युधिष्ठिर से तालमेल रखता है। तृप्त है। गीता रोज पढ़ता है; अंधकार दिखाई पड़ेगा। जिसे सुबह का कोई पता नहीं है, उसे रात | धार्मिक आदमी है-बात समाप्त हो गई। गीता कंठस्थ है, पक्का भी सुबह हो सकती है; और रात भी उसे लग सकती है कि ठीक है। धार्मिक आदमी है—बात समाप्त हो गई। सब उसे मालूम है, जो
अर्जुन की इस विषाद की स्थिति को भी योग ही कहा जा रहा है, मालूम करने योग्य है-बात समाप्त हो गई। ऐसा आदमी चली हुई क्योंकि यह विषाद का बोध भी स्वरूप के विपरीत, कंट्रास्ट में | | कारतूस जैसा होता है, उसमें कुछ चलने को नहीं होता। खाली दिखाई पड़ता है, अन्यथा नहीं दिखाई पड़ेगा। ऐसा विषादयोग और | | कारतूस होता है, उसमें बारूद नहीं होती। खाली कारतूस अच्छी भी किसी को भी उस युद्ध के स्थल पर नहीं हो रहा है। ऐसा दुर्योधन | | मालूम पड़ती है, क्योंकि उससे बहुत खतरा भी नहीं होता। को नहीं हो रहा है।
युधिष्ठिर इन अथों में धर्मराज हैं। अतीत से जो धर्म मिला है, ___ कल रास्ते में जाता था तो एक मित्र ने पूछा कि आपने दुर्योधन उसकी धरोहर है। अतीत से, परंपरा से, रूढ़ि से जो धर्म मिला है, की तो बात की, युधिष्ठिर के संबंध में क्या खयाल है? क्योंकि | | वे उसके प्रतीक, प्रतिमा-पुरुष हैं। उन्हें कोई अड़चन नहीं होती! दुर्योधन को नहीं हो रहा है, माना, आदमी भला नहीं है। पर तथाकथित धार्मिक आदमी कंप्रोमाइजिंग होता है, समझौतावादी युधिष्ठिर तो भला आदमी है, धर्मराज है, उसे क्यों नहीं हो रहा है? होता है। वह हर स्थिति में धर्म और अधर्म के बीच समझौते खोज .
तो यह भी थोड़ा विचारणीय है। आशा तो करनी चाहिए कि लेता है। युधिष्ठिर को हो; लेकिन युधिष्ठिर को नहीं हो रहा है। युधिष्ठिर तथाकथित धार्मिक आदमी हिपोक्रेट होता है, पाखंडी होता है। तथाकथित धार्मिक आदमी है, सोकाल्ड रिलीजस है। और बुरा | | उसके दो चेहरे होते हैं। एक उसका धार्मिक चेहरा होता है, जो वह आदमी भी तथाकथित धार्मिक आदमी से बेहतर होता है। क्योंकि | | दिखाने के लिए रखता है। एक उसका असली चेहरा होता है, जो बुरे आदमी को आज नहीं कल, बुरे की पीड़ा और बुरे का कांटा | वह काम चलाने के लिए रखता है। और इन दोनों के बीच कभी चुभने लगेगा। लेकिन तथाकथित धार्मिक आदमी को वह पीड़ा भी | | कांफ्लिक्ट पैदा नहीं होती। यही हिपोक्रेसी का सूत्र है, राज है। नहीं चुभती, क्योंकि वह मानकर ही चलता है कि धार्मिक है। इनके बीच कभी द्वंद्व पैदा नहीं होता, कभी उसे ऐसा नहीं लगता कि विषाद कैसे हो? युधिष्ठिर अपने धार्मिक होने में आश्वस्त है। | मैं दो हूं। वह बड़ा लिक्विड होता है, बड़ा तरल होता है। वह इधर आश्वासन बड़ा झूठा है। लेकिन आश्वस्त है। असल में युधिष्ठिर से उधर बड़ी आसानी से हो जाता है। उसे कोई अड़चन नहीं आती। रूढिग्रस्त धार्मिक आदमी की प्रतिमा है।
वह अभिनेता की तरह है। पात्र अभिनय बदल लेता है, उसे दो तरह के धार्मिक आदमी होते हैं। एक तो उधार धार्मिक अड़चन नहीं होती। कल वह राम बना था, आज उसे रावण बना आदमी होते हैं, बारोड, जिनका धर्म अतीत की उधारी से आता है। | दें, उसे कोई अड़चन नहीं आती। वह रावण की वेशभूषा पहनकर
और एक वे धार्मिक आदमी होते हैं, जिनका धर्म उनकी आंतरिक खड़ा हो जाता है; रावण की भाषा बोलने लगता है। क्रांति से आता है।
यह जो तथाकथित धार्मिक आदमी है, यह अधार्मिक से भी तो अर्जुन आंतरिक क्रांति के द्वार पर खड़ा हुआ धार्मिक आदमी | | बदतर है, ऐसा मैं कहता हूं। ऐसा इसलिए कहता हूं कि अधार्मिक है। धार्मिक है नहीं, लेकिन क्रांति के द्वार पर खड़ा हुआ है। उस अपनी पीड़ा को ज्यादा दिन नहीं झेल सकेगा; आज नहीं कल कांटा