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9- विषाद और संताप से आत्म-क्रांति की ओर AM
ऐसा ही होता रहा है।
गीता को सिर्फ मानस-शास्त्र कहकर आप रुक जाएंगे भौतिक सुख की चाह आध्यात्मिक खोज का अनिवार्य हिस्सा | कि अध्यात्म-शास्त्र भी कहेंगे? स्पष्ट करें। है। क्योंकि उसकी विफलता, उसकी पूर्ण विफलता आध्यात्मिक
आनंद की खोज का पहला चरण है। इसलिए जो भौतिक सुख खोज रहा है, उसको मैं अधार्मिक नहीं कहता। वह भी धर्म को ही गलत | गीता को मनोविज्ञान ही कहूंगा। और मन से मेरा अर्थ दिशा से खोज रहा है। वह भी आनंद को ही वहां खोज रहा है, जहां 1 आत्मा नहीं है। मन से मेरा मतलब मन ही, माइंड ही आनंद नहीं मिल सकता है। लेकिन इतना तो पता चले पहले कि
है। कई को दिक्कत और कठिनाई होगी। वे कहेंगे, नहीं मिल सकता है, तो किसी और दिशा में खोजे। | यह तो मैं गीता को नीचे गिरा रहा हूं। अध्यात्म-शास्त्र कहना
लाओत्से से किसी ने पूछा कि तुम कहते हो, शास्त्रों से कुछ भी | चाहिए। लेकिन आपसे कहना चाहूंगा कि अध्यात्म का कोई शास्त्र नहीं मिला, लेकिन हमने सुना है कि तुमने शास्त्र पढ़े! तो लाओत्से | होता नहीं। ज्यादा से ज्यादा शास्त्र मन का हो सकता है। हां, मन ने कहा कि नहीं, शास्त्रों से बहुत कुछ मिला। सबसे बड़ी बात तो का शास्त्र वहां तक पहुंचा दे, जहां से अध्यात्म शुरू होता है, इतना यह मिली शास्त्र पढ़कर कि शास्त्रों से कुछ भी नहीं मिल सकता | ही हो सकता है। अध्यात्म-शास्त्र होता ही नहीं; हो नहीं सकता। है। यह कोई कम मिलना है! नहीं कुछ मिल सकता है, लेकिन बिना अध्यात्म-जीवन होता है, शास्त्र नहीं। अधिक से अधिक जो शब्द पढ़े यह पता नहीं चल सकता था। पढ़ा बहुत, खोजा बहुत, नहीं | कर सकता है, वह यह है कि वह मन की आखिरी ऊंचाइयों और मिल सकता है, यह जाना। यह कोई कम दाम नहीं है। निगेटिव है, | गहराइयों को छूने में समर्थ बना दे। इसलिए हमें खयाल में नहीं आता।
___ इसलिए मैं गीता को अध्यात्म-शास्त्र कहकर व्यर्थ न करूंगा। .लेकिन एक बार यह खयाल में आ जाए कि शब्द से, शास्त्र से | | वैसा कोई शास्त्र होता नहीं। और जो-जो शास्त्र आध्यात्मिक होने नहीं मिल सकता है, तो शायद हम अस्तित्व में, जीवन में खोजने | का दावा करते हैं-शास्त्र तो क्या करते हैं, शास्त्र को मानने वाले निकलें। सुख में नहीं मिल सकता है सुख, तो फिर शायद हम शांति | दावा कर देते हैं। वे-वे अपने शास्त्रों को व्यर्थ ही, व्यर्थ ही मनुष्य में खोजने निकलें। बाहर नहीं मिल सकता है सुख, तो शायद हम | की सारी उपयोगिता के बाहर कर देते हैं। भीतर खोजने निकलें। पदार्थ में नहीं मिल सकता है सुख, तो शायद ___ अध्यात्म है अनुभव और जो अनिर्वचनीय है, और जो हम परमात्मा में खोजने निकलें। लेकिन वह जो दूसरी खोज है, इस अवर्णनीय है, और जो व्याख्या के पार है, और जो शब्दों के अतीत पहली खोज की विफलता से ही शुरू होती है।
है, और शास्त्र ही जिसे चिल्ला-चिल्लाकर कहते हैं कि मन से नहीं तो अर्जुन अभी जो बात कर रहा है, वह तो भौतिक सुख की ही मिलेगा, मन के आगे मिलेगा जो मन के आगे मिलेगा, वह कर रहा है कि राज्य से क्या मिलेगा? प्रियजन नहीं रहेंगे, तो क्या | | शब्दों में नहीं लिखा जा सकता है। इसलिए शास्त्र की आखिरी से मिलेगा? सुख से क्या मिलेगा? लेकिन आध्यात्मिक खोज का | | आखिरी पहुंच मनस है, मन है। उतना पहुंचा दे तो परम शास्त्र है। पहला चरण उठाया जा रहा है। इसलिए मैं उसे धार्मिक व्यक्ति ही | | और उसके पार जो छलांग लगेगी, वहां अध्यात्म शुरू होगा। कहूंगा। धर्म को उपलब्ध हो गया है, ऐसा नहीं; धर्म को उपलब्ध ___ गीता को मैं मनस-शास्त्र कहता हूं, क्योंकि गीता में वहां तक होने के लिए जो आतुर है, ऐसा।
पहुंचाने के सूत्र हैं उसमें, जहां से छलांग, दि जंप, जहां से छलांग लग सकती है। लेकिन अध्यात्म-शास्त्र कोई शास्त्र होता नहीं। हां,
आध्यात्मिक वक्तव्य हो सकते हैं; जैसे उपनिषद हैं। उपनिषद प्रश्नः भगवान श्री, आपने कल बताया कि | आध्यात्मिक वक्तव्य हैं। लेकिन उनमें कोई विज्ञान नहीं है। इसलिए भगवद्गीता मानस-शास्त्र है और आधुनिक | | मनुष्य के बहुत काम के नहीं हैं। गीता बहुत काम की है। मानस-शास्त्र के करीब आ जाता है। तो क्या आप | वक्तव्य है कि ब्रह्म है; ठीक है। एक वक्तव्य है कि ब्रह्म है। साइक का अर्थ माइंड करके उसको सीमित करते हैं? ठीक है। हमें पता नहीं है। जो जानता है, वह कहता है, है। जो नहीं क्योंकि साइक का जो मूल अर्थ है, वह है सोल। तो | | जानता है, वह कहता है, होगा। बेयर स्टेटमेंट है। तो उपनिषद काम
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