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HITRA विषाद और संताप से आत्म-क्रांति की ओर AM
चुभेगा। लेकिन जो आदमी समझौते कर लिया है, वह पीड़ा को एक जगह कहते हैं कि डिस्पेअर इन इटसेल्फ इज़ अनंतकाल तक झेल सकता है।
रिलीजस। तो गीता की दृष्टि से तो आप जो कहते हैं, इसलिए युधिष्ठिर को पीड़ा नहीं आती। युधिष्ठिर बिलकुल राजी उससे यह मालूम होता है कि अर्जुन का विषाद है। अब यह बड़े मजे की बात है, अधार्मिक आदमी बिलकुल राजी अधार्मिक था! कुछ वार्तिक दें। है उस युद्ध में; धार्मिक आदमी बिलकुल राजी है उस युद्ध में; और यह अर्जुन, जो न तो अधार्मिक होने से राजी है, न अभी तथाकथित धर्म से राजी है, यह चिंतित है।
27 र्जुन का विषाद यदि विषाद में ही तृप्त हो जाए और __अर्जुन बहुत आथेंटिक, प्रामाणिक मनुष्य है। उसकी प्रामाणिकता I बंद हो जाए, तो अधार्मिक है; क्लोज्ड हो जाए, तो इसमें है कि चिंता है उसे। उसकी प्रामाणिकता इसमें है कि प्रश्न हैं
अधार्मिक है। और अगर विषाद यात्रा बन जाए. उसके पास। उसकी प्रामाणिकता इसमें है कि जो स्थिति है, उसमें | गंगोत्री बने और विषाद से गंगा निकले और आनंद के सागर तक वह राजी नहीं हो पा रहा है। यही उसकी बेचैनी, यही उसकी पीड़ा | पहुंच जाए, तो धार्मिक है। विषाद अपने में न तो अधार्मिक है, न उसका विकास बनती है।
धार्मिक है। अगर विषाद बंद करता है व्यक्तित्व को, तो आत्मघाती विषादयोग इसलिए ही कहा है कि अर्जन विषाद को उपलब्ध हो जाएगा। और अगर विषाद व्यक्तित्व को बहाव देता है, तो हुआ। धन्य हैं वे, जो विषाद को उपलब्ध हो जाएं। क्योंकि जो आत्म-परिवर्तनकारी हो जाएगा। विषाद को उपलब्ध होंगे, उन्हें मार्ग खोजना पड़ता है। अभागे हैं वे, ___पाल टिलिक जो कहते हैं कि डिस्पेअर इन इटसेल्फ इज़ जिनको विषाद भी नहीं मिला, उनको आनंद तो कभी मिलेगा ही रिलीजस-वह जो विषाद है, दुख है, वह अपने आप में धार्मिक नहीं। धन्य हैं वे, जो विरह को उपलब्ध हो जाएं, क्योंकि विरह | है-यह अधूरा सत्य है। पाल टिलिक पूरा सत्य नहीं बोल रहे हैं। मिलन की आकांक्षा है। इसलिए विरह भी योग है; मिलन की | यह अधूरा सत्य है, आधा सत्य है। विषाद धार्मिक बन सकता है।
आकांक्षा है। वह मिलन के लिए खोजता हुआ मार्ग है। योग तो | | उसकी पासिबिलिटी है, उसकी संभावना है धार्मिक बनने की, मिलन ही है; लेकिन विरह भी योग है; क्योंकि विरह भी मिलन की अगर विषाद बहाव बन जाए। पुकार और प्यास है। विषाद भी योग है। योग तो आनंद ही है। __लेकिन अगर विषाद वर्तुल बन जाए, सर्कुलर हो जाए, अपने लेकिन विषाद भी योग है, क्योंकि विषाद आनंद के लिए जन्मने की | | में ही घूमने लगे, तो सिर्फ आत्मघाती हो सकता है, धार्मिक नहीं प्रक्रिया है। इसलिए विषादयोग कहा है।
हो सकता। यह बड़े मजे की बात है कि आत्मघाती व्यक्तित्व उस जगह पहुंच जाता है, जहां से या तो उसे आत्मा परिवर्तन करनी
पड़ेगी या आत्मघात करना पड़ेगा। एक बात तय है कि पुरानी प्रश्नः भगवान श्री, आपने अभी बट्रेंड रसेल का नाम आत्मा से नहीं चलेगा। तो हम ऐसा भी कह सकते हैं कि स्युसाइड लिया। वेद मेहता ने टिलिक से बदँड रसेल की इन इटसेल्फ इज़ रिलीजस, आत्महत्या अपने आप में धार्मिक है।
आत्मतुष्ट अनास्तिकता के पहलू प्रकट करके पूछा कि | लेकिन यह अधूरा सत्य होगा, वैसा ही जैसा पाल टिलिक ने कहा। रसेल को नास्तिक होते हुए भी जीवन में एंपटीनेस, ___ हां, आत्महत्या की स्थिति में आए व्यक्ति के सामने दो विकल्प खालीपन का अनुभव नहीं हुआ! तब पाल टिलिक हैं, दो आल्टरनेटिव हैं, या तो वह अपने को मार डाले, जो कि ने बताया कि ऐसे लोग आत्मवंचक हो सकते हैं। | बिलकुल अधार्मिक होगा; और या वह अपने को बदल डाले, जो कितने लोग बस यूं ही हरे रंग को, ग्रीन रंग को नहीं | कि मारने की और भी गहरी कीमिया है, तब वह धार्मिक होगा। देख पाते। क्या रसेल उनमें से एक होगा? अर्जुन इस बुद्ध उस जगह आ जाते हैं, जहां या तो आत्महत्या करें या चर्मचक्षु से विराट-रूप का भव्य-दर्शन नहीं कर आत्म-रूपांतरण करें। महावीर उस जगह आ जाते हैं, या तो सकता था। और दूसरी बात यह कि पाल टिलिक | आत्महत्या करें या आत्म-रूपांतरण करें। अर्जुन भी उस जगह खड़ा अल्बर्ट काम की नैराश्य, डिस्पेअर पर वार्तिक देते हए है, जहां या तो वह मिट जाए, मर जाए, अपने को समाप्त कर ले,
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