________________
Sim+ अर्जुन के विषाद का मनोविश्लेषण -
और उसका चेहरा उदास दिखाई पड़ेगा, और घर के लोग इसके दो परिणाम होंगे। जैसे ही कोई व्यक्ति अपने चित्त के द्वंद्व भागने-दौड़ने लगेंगे, और नाड़ी की गति गिरने लगेगी, तब में पूरी तरह उतरने को राजी हो जाता है, वैसे ही उस व्यक्ति के अचानक पता चलेगा कि पता नहीं, आत्मा अमर है या नहीं! भीतर एक तीसरा बिंदु भी पैदा हो जाता है, दो के अलावा तीसरी
क्योंकि लाख कहें गीताएं, उनके कहने से आत्मा अमर नहीं हो | | ताकत भी पैदा हो जाती है। जैसे ही कोई व्यक्ति अपने द्वंद्व को जीने सकती। आत्मा अमर है, इसलिए वे कहती हैं, यह दूसरी बात है। के लिए राजी होता है, वैसे ही उसके भीतर दो नहीं, तीन शुरू हो लेकिन उनके कहने से आत्मा अमर नहीं हो सकती। और आप | जाते हैं। दि थर्ड फोर्स, वह जो निर्णय करती है कि जीएंगे द्वंद्व को, किसी को मान लें, इससे कुछ होने वाला नहीं है। हां, द्वंद्व से गुजरें, वह द्वंद्व के बाहर है; वह द्वंद्व के भीतर नहीं है। पीड़ा को झेलें, वह अवसर है; उससे बचने की कोशिश मत करें। । मैंने सुना है, सेंट थेरेसा एक ईसाई फकीर औरत हुई है। उसके
अर्जुन भी बचने की कोशिश कर रहा है। लेकिन कृष्ण उसे | | पास तीन पैसे थे। और एक दिन सुबह उसने गांव में कहा कि मैं बचाने की कोशिश नहीं कर रहे; वे पूरे द्वंद्व को खींचते हैं। अन्यथा | एक बड़ा चर्च बनाना चाहती हूं। मेरे पास काफी पैसे आ गए हैं। कृष्ण कहते कि बेफिक्र रहो, मैं सब जानता हूं। बेकार की बातचीत लोग हैरान हुए, क्योंकि कल भी उसको लोगों ने भीख मांगते देखा मत कर। मुझ पर श्रद्धा रख और कूद जा, ऐसा भी कह सकते थे। | था। लोगों ने पूछा कि इतने पैसे अचानक कहां से आ गए, जिससे इतनी लंबी गीता कहने की जरूरत न थी।
बड़ा चर्च बनाने का खयाल है? उसने अपना भिक्षापात्र दिखाया, . इतनी लंबी गीता अर्जुन के द्वंद्व के प्रति बड़ा सम्मान है। और उसमें तीन पैसे थे। लोगों ने कहा, पागल तो नहीं हो गई थेरेसा! मजा है कि अर्जुन बार-बार वही पूछता है। और कृष्ण हैं कि यह | वैसे हम पहले ही सोचते थे कि तेरा दिमाग कुछ गड़बड़ है! नहीं कहते कि यह तो तू पूछ चुका! फिर वही पूछता है। फिर वही | | असल में भगवान की तरफ जो लोग जाते हैं, उनका दिमाग पूछता है। सारे के सारे, पूरे के पूरे प्रश्न अर्जुन के अलग-अलग | उनको थोड़ा गड़बड़ दिखाई पड़ता ही है, जो नहीं जाते हैं। नहीं हैं। सिर्फ शब्दावली अलग है। बात वह वही पूछ रहा है। | हम पहले ही सोचते थे कि तेरा दिमाग कुछ न कुछ ढीला है। उसका द्वंद्व बार-बार लौट आ रहा है। कृष्ण उससे यह नहीं कहते तीन पैसे से चर्च बनाएगी? थेरेसा ने कहा, मैं हूं, तीन पैसे हैं और कि चुप, अश्रद्धा करता है! चुप, अविश्वास करता है! अर्जुन परमात्मा भी है। थेरेसा + तीन पैसे + परमात्मा। उन सबने कहा, पूछता है वही-वही दोहरा-दोहराकर। उसका द्वंद्व ही बार-बार वह परमात्मा कहां है? तो थेरेसा ने कहा कि वह थर्ड फोर्स है, वह नए-नए रूप-लेकर खड़ा हो जाता है।
तीसरी शक्ति है; वह तुम्हें दिखाई नहीं पड़ेगी; क्योंकि अभी तुम कृष्ण उसे विश्वास दिलाने को उत्सुक नहीं हैं। कृष्ण उसे श्रद्धा अपने भीतर तीसरी शक्ति को नहीं खोज सके हो। तक पहुंचाने को जरूर उत्सुक हैं। और विश्वास और श्रद्धा में बड़ा जो व्यक्ति अपने भीतर तीसरी शक्ति को खोज लेता है, वह इस फर्क है। विश्वास वह है, जो हम संदेह को हल किए बिना ऊपर सारे जगत में भी तीसरी शक्ति को तत्काल देखने में समर्थ हो जाता से आरोपित कर लेते हैं। श्रद्धा वह है, जो संदेह के गिर जाने से | है। आप द्वंद्व को ही देख रहे हैं, लेकिन यह खयाल नहीं है कि जो फलित होती है। श्रद्धा, संदेह की ही यात्रा से मिली मंजिल है। द्वंद्व को देख रहा है और समझ रहा है, वह द्वंद्व में नहीं हो सकता; विश्वास, संदेह के भय से पकड़ लिए गए अंधे आधार हैं। | वह द्वंद्व के बाहर ही होगा। अगर दो लड़ रहे हैं आपके भीतर, तो
तो मैं कहूंगा, जीएं द्वंद्व को, तीव्रता से जीएं, इंटेंसिटी से जीएं। निश्चित ही आप उन दोनों के बाहर हैं, अन्यथा देखेंगे कैसे? अगर धीरे-धीरे जीएंगे, तो बहुत समय लगेगा। कुनकुनी आंच में डाल | | उन दोनों में से एक से जुड़े होते, तब तो एक से आपका तादात्म्य देंगे सोने को, तो निखरने में जन्म लग सकते हैं। तीव्रता से जीएं। | हो गया होता और दूसरे से आप अलग हो गए होते।
द्वंद्व मनुष्य का अनिवार्य परीक्षण है, जिससे वह परमात्मा तक | लेकिन आप कहते हैं, द्वंद्व हो रहा है, मेरे बाएं और दाएं हाथ पहुंचने की योग्यता का निर्णय दे पाता है। जीएं, भागें मत। एस्केप | | लड़ रहे हैं। मेरे बाएं और दाएं हाथ लड़ पाते हैं, क्योंकि इन बाएं न करें, कंसोलेशंस मत खोजें, सांत्वनाएं मत बनाएं। जानें कि यही और दाएं हाथ के पीछे मैं एक तीसरी ताकत हूं। अगर मैं बायां हाथ है नियति; द्वंद्व है। लड़ें, तीव्रता से उतरें इस द्वंद्व में। क्या होगा | | हूं, तो दाएं हाथ से मेरा क्या आंतरिक द्वंद्व है? वह पराया हो गया। इसका परिणाम?
अगर मैं दायां हाथ नहीं बायां हाथ हूं, तो दायां हाथ पराया हो गया,
25