________________
अर्जुन के विषाद का मनोविश्लेषण -
| संकल्प, वापस व्यक्तित्व और आत्मवान बनाने की पूरी चेष्टा है।
और इसलिए मैं जो सारी चर्चा करूंगा, वह इसी दृष्टि से चर्चा | करूंगा कि वह आपके मनस के भी काम की है। और अगर आपके | भीतर अर्जुन न हो, तो आप मत आएं. वह आपके काम की बात | नहीं है। वह बेमानी है। आपके भीतर दुविधा न हो, आपके भीतर | संघर्ष न हो, आपके भीतर बेचैनी न हो, तो आप मत सुनें। उससे | कोई संबंध नहीं है। आपके भीतर दुविधा हो, बेचैनी हो, तनाव हो,
आपके भीतर निर्णय में कठिनाई हो, आपके भीतर खंड-खंड | आदमी हो और आप भी भीतर से टूट गए हों, डिसइंटिग्रेटेड हों, | तो ही आने वाली बात आपके अर्थ की हो सकती है।
शेष कल सुबह!
जीवन तैयारी है, जीवन कदम-कदम तैयारी है, उस विराट सत्य के साक्षात्कार की, एनकाउंटर की। और अर्जुन तो जीवन के एक छोटे से तथ्य से ही भागा चला जा रहा है। लेकिन भागने की तैयारी उसकी पूरी हो गई है।
अब यह बड़े मजे की बात है कि वह रथ पर नहीं चढ़ पाता। वह कहता है, रथ पर चढ़ने की भी शक्ति नहीं है। लेकिन अगर उससे कहो कि भाग जाओ जंगल की तरफ, तो वह बड़ी शक्ति पाएगा; अभी भाग जाएगा। एकदम इतनी तेजी से दौड़ेगा, जितनी तेजी से कभी नहीं दौड़ा है। जो आदमी जिंदगी से लड़ने की सामर्थ्य नहीं जुटा पा रहा है, वह भागने की जुटा लेता है। सामर्थ्य की तो कमी नहीं मालूम पड़ती, शक्ति की तो कमी नहीं मालूम पड़ती, शक्ति तो है। अगर कृष्ण उसे कहें, छोड़ सब, तो वह बड़ा प्रफुल्ल हो जाएगा। लेकिन यह प्रफुल्लता ज्यादा देर टिकेगी नहीं। और अगर अर्जुन जंगल चला जाए, तो थोड़ी देर में ही उदास हो जाएगा। बैठ भी जाए वह संन्यासी के वेश में एक वृक्ष के नीचे, तो थोड़ी देर में जंगल से ही लकड़ी वगैरह बटोरकर वह तीर-कमान बना लेगा। वह आदमी वही है।
क्योंकि हम अपने से भागकर कहीं भी नहीं जा सकते हैं। हम सबसे भाग सकते हैं, अपने से नहीं भाग सकते हैं। मैं तो अपने साथ ही पहुंच जाऊंगा। तो थोड़ी देर में जब वह देखेगा कि कोई देखने वाला नहीं है, तो पशु-पक्षियों का शिकार शुरू कर देगा। अजुन ही तो भागेगा न! और पशु-पक्षी तो अपने नहीं हैं: वे तो स्वजन-प्रियजन नहीं हैं। उन्हें तो मारने में कोई कठिनाई आएगी नहीं। वह मजे से मारेगा। __ अर्जुन संन्यासी हो नहीं सकता। क्योंकि जो संसारी होने की भी हिम्मत नहीं दिखा पा रहा है, उसके संन्यासी होने का कोई उपाय नहीं है। असल में संन्यास संसार से भागने का नाम नहीं है, संसार को पार कर जाने का नाम है।
संन्यास, संसार की जलन और आग का अतिक्रमण है। और जो उसे पूरा पार कर लेता है, वही अधिकारी हो पाता है। संन्यास संसार से विरोध नहीं, संन्यास संसार की संपूर्ण समझ और संघर्ष का फल है।
संन्यास की स्थिति में आ गया है वह। पलायनवादी हो, तब तो अभी रास्ता है उसके सामने। अगर संघर्ष में जाए, तो कठिनाई है। अब पूरी गीता उसके गात की शिथिलता को मिटाने के लिए है। उसे वापस संकल्पवान होने के लिए है; उसे वापस शक्ति,