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m+ अर्जुन के विषाद का मनोविश्लेषण -AIR
बलहीन हो
यह जो अर्जुन के साथ हुआ, वह उसके मन में पैदा हुए भंवर रहा है। यह थोड़ा विचारणीय है। का शरीर तक पहुंचा हुआ परिणाम है। और हमारी जिंदगी में शरीर __ जैसा मैंने कहा, आज भी मनुष्य जाति करीब-करीब अर्जुन की से बहुत कम भंवर मन तक पहुंचते हैं। मन से ही अधिकतम भंवर | | चेतना से ग्रस्त है। उसके शरीर पर भी वे परिणाम हो रहे हैं। लेकिन शरीर तक पहुंचते हैं। लेकिन हम जिंदगीभर शरीर की ही फिक्र किए | हम जो इलाज कर रहे हैं, वे शरीर से शुरू करने वाले हैं। इसलिए चले जाते हैं। .
सब इलाज हो जाते हैं, और बीमार बीमार ही बना रहता है। उसकी अगर कृष्ण को थोड़ी भी—जिसको तथाकथित वैज्ञानिक बुद्धि | चेतना से कोई इलाज शुरू नहीं हो पाता है। कहें-होती, तो वे अर्जुन को कहते कि मालूम होता है, तुझे फ्लू | | यह अर्जुन कहता है, मेरा मन साथ छोड़े दे रहा है। मैं बिलकुल हो गया है! अगर उन्होंने मार्क्स को पढ़ा होता, तो वे कहते, मालूम | निर्वीर्य हो। होता है, तेरे शरीर में किसी हार्मोन की कोई कमी हो गई है। वे | | बल क्या है? एक तो बल है जो शरीर की मांस-पेशियों, कहते. त चल और किसी जनरल अस्पताल में भर्ती हो जा। लेकिन मसल्स में होता है। उसमें तो कोई भी फर्क नहीं पड गया है। लेकिन उन्होंने यह बिलकुल नहीं कहा। वे शिथिल-गात होते अर्जुन को | | इस क्षण अर्जुन को एक छोटा-सा बच्चा भी धक्का दे दे, तो वह कुछ और समझाने लगे; वे उसके मन को कुछ और समझाने लगे। गिर जाएगा। इस क्षण अर्जुन की मसल्स कुछ भी काम नहीं करेंगी। वे उसके मन को बदलने की कोशिश करने लगे।
एक छोटा-सा बच्चा उसे हरा सकता है। यह मस्कुलर ताकत कुछ जगत में दो ही प्रक्रियाएं हैं, या तो आदमी के शरीर को बदलने | | अर्थ की नहीं मालूम होती है। एक और बल है, जो संकल्प से, की प्रक्रिया और या आदमी की चेतना को बदलने की प्रक्रिया। | विल से पैदा होता है। सच तो यह है कि वही बल है, जो संकल्प विज्ञान आदमी के शरीर को बदलने की प्रक्रिया पर ध्यान देता है, | से पैदा होता है। धर्म मनुष्य की चेतना को बदलने की प्रक्रिया पर ध्यान देता है। वहीं ___ वह जो संकल्प से पैदा होने वाला बल है, वह बिलकुल ही खो भेद है। और इसलिए मैं कहता हूं, धर्म विज्ञान से ज्यादा गहरा गया है। क्योंकि संकल्प कहां से आए? मन दुविधा में पड़ गया, तो विज्ञान है, धर्म विज्ञान से ज्यादा महान विज्ञान है। वह सुप्रीम साइंस संकल्प खंडित हो जाता है। मन एकाग्र हो, तो संकल्प संगठित हो है, वह परम विज्ञान है। क्योंकि वह केंद्र से शुरू करता है। और जाता है। मन दुविधा में द्वंद्वग्रस्त हो जाए, कांफ्लिक्ट में पड़ जाए, वैज्ञानिक बुद्धि निश्चित ही केंद्र से शुरू करेगी। परिधि पर की गई तो संकल्प खो जाता है। हम सब भी निर्बल हैं, संकल्प नहीं है। वही चोटें जरूरी नहीं कि केंद्र पर पहुंचे, लेकिन केंद्र पर की गई चोटें संकल्प खो गया है। क्या करूं, क्या न करूं? करना क्या उचित जरूरी रूप से परिधि पर पहुंचती हैं।
| होगा, क्या उचित नहीं होगा? सब आधार खो गए पैर के नीचे से। एक पत्ते को पहुंचाया गया नुकसान जरूरी नहीं है कि जड़ों तक | अर्जुन अधर में लटका रह गया है; वह त्रिशंकु हो गया है। पहुंचे। अक्सर तो नहीं पहुंचेगा। पहुंचने की कोई जरूरत नहीं है। यह प्रत्येक मनुष्य की स्थिति है। और इसलिए अदभुत सत्य हैं लेकिन जड़ों को पहुंचाया गया नुकसान पत्तों तक जरूर पहुंच | कुरान में, और अदभुत सत्य हैं बाइबिल में, और अदभुत सत्य हैं जाएगा; पहुंचना ही पड़ेगा; पहुंचने के अतिरिक्त और कोई मार्ग जेन्दअवेस्ता में, और अदभुत सत्य हैं ताओ-तेह-किंग में, और नहीं है।
दुनिया के अनेक-अनेक ग्रंथों में अदभुत सत्य हैं, लेकिन गीता फिर इसलिए अर्जुन की इस स्थिति को देखकर, कृष्ण उसे कहां से | भी विशिष्ट है, और उसका कुल कारण इतना है कि वह धर्मशास्त्र पकड़ते हैं? अगर वे शरीर से पकड़ते, तो गीता फिजियोलाजी की | | कम, मनस-शास्त्र, साइकोलाजी ज्यादा है। उसमें कोरे स्टेटमेंट्स एक किताब होती। वह भौतिक-शास्त्र होती। वे उसे चेतना से | | नहीं हैं कि ईश्वर है और आत्मा है। उसमें कोई दार्शनिक वक्तव्य पकड़ते हैं, इसलिए गीता एक मनस-शास्त्र बन गई। गीता के | | नहीं हैं; कोई दार्शनिक तर्क नहीं हैं। गीता मनुष्य जाति का पहला मनस-शास्त्र बनने का प्रारंभ-अर्जुन के शरीर की घटना पर कृष्ण | मनोविज्ञान है; वह पहली साइकोलाजी है। इसलिए उसके मूल्य की बिलकुल ध्यान ही नहीं देते। वे न उसकी नाड़ी देखते हैं, न | बात ही और है। थर्मामीटर लगाते हैं। वे उसकी फिक्र ही नहीं करते कि उसके शरीर | | अगर मेरा वश चले, तो कृष्ण को मनोविज्ञान का पिता मैं कहना को क्या हो रहा है। वे फिक्र करते हैं कि उसकी चेतना को क्या हो चाहूंगा। वे पहले व्यक्ति हैं, जो दुविधाग्रस्त चित्त, माइंड इन
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