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m+ गीता दर्शभाग-1 AM
भवन एक फसाड, एक दिखावा था। उस भवन के माध्यम से | | कहता हूं मेरा, तो पजेशन शुरू हो गया, मालकियत शुरू हो गई। अपनों को, परायों को मैं प्रभावित कर रहा था। वह भवन तो सिर्फ | | मालकियत हिंसा का एक रूप है। पति पत्नी से कहता है, मेरी। प्रभावित करने की एक व्यवस्था थी। अब मैं किसे प्रभावित करूं! | | मालकियत शुरू हो गई। पत्नी पति से कहती है, मेरे। मालकियत
आप जो कपड़े पहनते हैं, वह अपने शरीर को ढंकने को कम, | शुरू हो गई। और जब भी हम किसी व्यक्ति के मालिक हो जाते हैं, दूसरे की आंखों को झपने को ज्यादा है। अकेले में सब बेमानी हो तभी हम उस व्यक्ति की आत्मा का हनन कर देते हैं। हमने मार डाला जाता है। आप जो सिंहासनों पर चढ़ते हैं, वह सिंहासनों पर बैठने | | उसे। हमने तोड़ डाला उसे। असल में हम उस व्यक्ति के साथ के आनंद के लिए कम–क्योंकि कोई सिंहासन पर बैठकर कभी | व्यक्ति की तरह नहीं, वस्तु की तरह व्यवहार कर रहे हैं। अब कुर्सी किसी आनंद को उपलब्ध नहीं हुआ है—पर अपनों और परायों में मेरी जिस अर्थ में होती है, उसी अर्थ में पत्नी मेरी हो जाती है। मकान जो हम सिंहासन पर चढ़कर, जो करिश्मा, जो चमत्कार पैदा कर पाते | | मेरा जिस अर्थ में होता है, उसी अर्थ में पति मेरा हो जाता है। हैं, उसके लिए ज्यादा है। सिंहासन पर बैठे आप रह जाएं और नीचे | स्वभावतः, इसलिए जहां-जहां मेरे का संबंध है, वहां-वहां प्रेम से लोग खो जाएं, अचानक आप पाएंगे, सिंहासन पर बैठे होना फलित नहीं होता, सिर्फ कलह ही फलित होती है। इसलिए दुनिया हास्यास्पद हो गया। उतर आएंगे; फिर शायद दुबारा नहीं चढ़ेंगे। | में जब तक पति-पत्नी मेरे का दावा करेंगे, बाप-बेटे मेरे का दावा
अर्जुन को लगा उस क्षण में कि अपने ही इकट्ठे हैं दोनों तरफ। करेंगे, तब तक दुनिया में बाप-बेटे, पति-पत्नी के बीच कलह ही मरेंगे अपने ही। अगर जीत भी गया, तो जीत का प्रयोजन क्या है? चल सकती है, मैत्री नहीं हो सकती। मेरे का दावा, मैत्री का विनाश जीत के लिए जीत नहीं चाही जाती। जीत रस है, अपनों और परायों है। मेरे का दावा, चीजों को उलटा ही कर देता है। सब हिंसा हो के बीच जो अहंकार भरेगा, उसका! साम्राज्य मिलेगा, क्या होगा | जाती है। अर्थ? कोई अर्थ न होगा।
___ मैंने सुना है, एक आदमी ने शादी की है, लेकिन पत्नी बहुत __यह जो अर्जुन के मन में विषाद घिर गया, इसे ठीक से समझ पढ़ी-लिखी नहीं है। मन में बड़ी इच्छा है कि पत्नी कभी पत्र लिखे।
लेना चाहिए। यह विषाद ममत्व का है। यह विषाद हिंसक चित्त का घर से बाहर पति गया है, तो उसे समझाकर गया है। थोड़ा लिख है। और इस विषाद के कारण ही कृष्ण को इतने धक्के देने पड़े। | लेती है। समझाकर गया है, क्या-क्या लिखना। सभी पति-पत्नी . अर्जुन को। अर्जुन की जगह अगर महावीर जैसा व्यक्ति होता, तो | एक-दूसरे को समझा रहे हैं, क्या-क्या लिखना! बात उसी वक्त खत्म हो गई होती। यह बात आगे नहीं चल सकती | ___ उसने बताया था, ऊपर लिखना, प्राणों से प्यारे-कभी ऐसा थी। अगर महावीर जैसा व्यक्ति होता, तो शायद यह बात उठ भी होता नहीं है-नीचे लिखना, चरणों की दासी। पत्नी का पत्र तो नहीं सकती थी। शायद महावीर जैसा व्यक्ति होता, तो कृष्ण एक मिला, लेकिन कुछ भूल हो गई। उसने ऊपर लिखा, चरणों के शब्द भी उस व्यक्ति से न बोले होते। बोलने का कोई अर्थ न था। | दास। और नीचे लिखा, प्राणों की प्यासी। बात समाप्त ही हो गई होती।
जो नहीं लिखते हैं, उनकी स्थिति भी ऐसी ही है। जो बिलकुल यह गीता कृष्ण ने कही कम, अर्जुन ने कहलवाई ज्यादा है। | ठीक-ठीक लिखते हैं, उनकी स्थिति भी ऐसी ही है। जहां आग्रह है इसका असली ऑथर, लेखक कृष्ण नहीं हैं; इसका असली लेखक | | मालकियत का, वहां हम सिर्फ घृणा ही पैदा करते हैं। और जहां अर्जुन है। अर्जुन की यह चित्त-दशा आधार बनी है। और कृष्ण को | घृणा है, वहां हिंसा आएगी। इसलिए हमारे सब संबंध हिंसा के साफ दिखाई पड़ रहा है कि एक हिंसक अपनी हिंसा के पूरे दर्शन | | संबंध हो गए हैं। हमारा परिवार हिंसा का संबंध होकर रह गया है। को उपलब्ध हो गया है। और अब हिंसा से भागने की जो बातें कर | | यह जो अर्जुन को दिखाई पड़ा, मेरे सब मिट जाएंगे तो मैं कहां! रहा है, उनका कारण भी हिंसक चित्त है। अर्जुन की दुविधा और मेरों को मिटाकर जीत का, साम्राज्य का क्या अर्थ है! इससे
अहिंसक की हिंसा से भागने की दुविधा नहीं है। अर्जुन की दुविधा वह अहिंसक नहीं हो गया है, अन्यथा कृष्ण आशीर्वाद देते और हिंसक की हिंसा से ही भागने की दुविधा है।
कहते, विदा हो जा, बात समाप्त हो गई। लेकिन कृष्ण देख रहे हैं इस सत्य को ठीक से समझ लेना जरूरी है। यह ममत्व हिंसा ही | कि हिंसक वह पूरा है। मैं और ममत्व की बात कर रहा है, इसलिए है, लेकिन गहरी हिंसा है, दिखाई नहीं पड़ती। जब मैं किसी को. अहिंसा झूठी है।