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IITRA अर्जुन के विषाद का मनोविश्लेषण Ham
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उसका चित्त, यह अहिंसा की तरफ आकर्षण से नहीं, हिंसा के ही भी मरती है; क्योंकि मां बेटे के पहले मां नहीं थी, मां बेटे के जन्म मूल आधार पर पहुंचने के कारण है। स्वभावतः, इतने संकट के के साथ ही हुई है। जब बेटा जन्मता है, तो एक तरफ बेटा जन्मता क्षण में, इतने क्राइसिस के मोमेंट में हिंसा की जो बुनियादी | | है, दूसरी तरफ मां भी जन्मती है। और जब बेटा मरता है, तो एक आधारशिला थी, वह अर्जुन के सामने प्रकट हुई। अगर पराए होते | तरफ बेटा मरता है, दूसरी तरफ मां भी मरती है। जिसे हमने अपना तो अर्जुन को पता भी न चलता कि वह हिंसक है; उसे पता भी न |
है; उसे पता भी न कहा है, उससे हम जुड़े हैं, हम भी मरते हैं। चलता कि उसने कुछ बुरा किया; उसे पता भी न चलता कि युद्ध | अर्जुन ने जब देखा कि अपने ही सब इकट्ठे हैं, तो अर्जुन को अधार्मिक है। उसके गात शिथिल न होते, बल्कि परायों को देखकर अगर अपना ही आत्मघात, स्युसाइड दिखाई पड़ा हो तो आश्चर्य उसके गात और तन जाते। उसके धनुष पर बाण आ जाता; उसके | नहीं है। अर्जुन घबड़ाया नहीं दूसरों की मृत्यु से; अर्जुन घबड़ाया हाथ पर तलवार आ जाती। वह बड़ा प्रफुल्लित होता। आत्मघात की संभावना से। उसे लगा, सब अपने मर जाएं, तो मैं
लेकिन वह एकदम उदास हो गया। इस उदासी में उसे अपने बचूंगा कहां! चित्त की हिंसा का मूल आधार दिखाई पड़ा। उसे दिखाई पड़ा, इस ___ यह थोड़ा सोचने जैसा है। हमारा मैं, हमारे अपनों के जोड़ का संकट के क्षण में उसे ममत्व दिखाई पड़ा!
| नाम है। जिसे हम मैं कहते हैं, वह मेरों के जोड़ का नाम है। अगर यह बड़े आश्चर्य की बात है कि अक्सर हम अपने चित्त की | | मेरे सब मेरे विदा हो जाएं, तो मैं खो जाऊंगा। मैं बच नहीं सकता। गहराइयों को केवल संकट के क्षणों में ही देख पाते हैं। साधारण | यह मेरा मैं, कुछ मेरे पिता से, कुछ मेरी मां से, कुछ मेरे बेटे से, क्षणों में हम चित्त की गहराइयों को नहीं देख पाते। साधारण क्षणों | | कुछ मेरे मित्र से-इन सबसे जुड़ा है। में हम साधारण जीते हैं। असाधारण क्षणों में, जो हमारे गहरे से ___ आश्चर्य तो यह है कि जिन्हें हम अपने कहते हैं, उनसे ही नहीं पहरे में छिपा है, वह प्रकट होना शुरू हो जाता है।
जुड़ा है, जिन्हें हम पराए कहते हैं, उनसे भी जुड़ा है—परिधि के अर्जुन को दिखाई पड़ा, मेरे लोग! युद्ध की वीभत्सता ने, युद्ध | बाहर–लेकिन उनसे भी जुड़ा है। तो जब मेरा शत्रु मरता है, तब की सन्निकटता ने, बस अब युद्ध शुरू होने को है, तब उसे दिखाई | | भी थोड़ा मैं मरता हूं। क्योंकि मैं फिर वही नहीं हो सकूँगा, जो मेरे पड़ा, मेरे लोग!
शत्रु के होने पर मैं था। शत्रु भी मेरी जिंदगी को कुछ देता था। मेरा काश! अर्जुन ने कहा होता, युद्ध व्यर्थ है, हिंसा व्यर्थ है, तो शत्रु था, होगा शत्रु, पर मेरा शत्रु था। उससे भी मेरे मैं का संबंध गीता की किताब निर्मित न होती। लेकिन उसने कहा, अपने ही लोग | | था। उसके बिना मैं फिर अधूरा और खाली हो जाऊंगा। इकट्ठे हैं; उनको काटने के विचार से ही मेरे अंग शिथिल हुए जाते __ अर्जुन को, दूसरों का घात होगा, ऐसा दिखाई पड़ता, तो बात . हैं। असल में जिसने अपने जीवन के भवन को अपनों के ऊपर और थी। अर्जुन को बहुत गहरे में दिखाई पड़ा कि यह तो मैं अपनी बनाया है, उन्हें काटते क्षण में उसके अंग शिथिल हों, यह बिलकुल ही आत्महत्या करने को उत्सुक हुआ हूं; यह तो मैं ही मरूंगा। मेरे स्वाभाविक है।
मर जाएंगे, तो मेरे होने का क्या अर्थ है! जब मेरे ही न होंगे, तो मृत्यु होती है पड़ोस में, छूती नहीं मन को! कहते हैं, बेचारा मर मुझे सब मिल जाए तो भी व्यर्थ है। गया। घर में होती है. तब इतना कहकर नहीं निपट पाते। तब छती। यह भी थोडा सोचने जैसा है। हम अपने लिए जो कछ इकट्टा है। क्योंकि जब घर में होती है, अपना कोई मरता है, तो हम भी करते हैं, वह अपने लिए कम, अपनों के लिए ज्यादा होता है। जो मरते हैं। हमारा भी एक हिस्सा मरता है। हमारा भी इनवेस्टमेंट था | मकान हम बनाते हैं, वह अपने लिए कम, अपनों के लिए ज्यादा उस आदमी में। हम भी उसमें कुछ लगाए थे। उसकी जिंदगी से हमें | | होता है। उन अपनों के लिए भी जो साथ रहेंगे, और उन अपनों के भी कुछ मिलता था। हमारे मन के भी किसी कोने को उस आदमी | | लिए भी जो देखेंगे और प्रशंसा करेंगे, और उन पराए-अपनों के ने भरा था।
लिए भी, जो जलेंगे और ईर्ष्या से भरेंगे। पत्नी मरती है, तो पत्नी ही नहीं मरती, पति भी मरता है। सच | अगर इस पृथ्वी पर सबसे श्रेष्ठ भवन भी मेरे पास रह जाए और तो यह है कि पत्नी के साथ ही पति पैदा हुआ था, उसके पहले पति अपने न रह जाएं-मित्र भी नहीं, शत्रु भी नहीं तो अचानक मैं नहीं था। पत्नी मरती है तो पति भी मरता है। बेटा मरता है, तो मां पाऊंगा, वह भवन झोपड़ी से भी बदतर हो गया है। क्योंकि वह