Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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जिन नाम
नगरी
माता
पिता
१००
१०२
१०४
पुंडरिगिणी सुसीमा वितशोका विजया पुंडरिगिणी
वृषभ गज हरिण वन्दर सूर्य
सुसीमा
चन्द्र सिंह
हस्ती
श्री सीमंधर श्री युगमंधर श्री बादु श्री सुबाहु श्री सुजात श्री स्वयंप्रभ श्री ऋषभानन श्री अनन्तवीर्य श्वी सूरप्रभ श्री विशाल श्रो वनधर श्री चन्द्रानन श्री चन्द्रवाहु श्री भुजंग श्री ईश्वर श्री नेमिप्रभ श्री वीरसेन
श्री महामद | श्री देवजला | श्री अजितवीर्य
सत्य की देवी श्रीयंश राजा सुतारा " विजया " सुग्रीव " सुनन्दा " निसद देवसेना देवसेन सुमंगला " मित्रभुवन वीरसेना " कीर्तिराजा मंगलावती" मेघराजा विजयावती" | विजयसेन भद्रावती - श्रीनाग सरस्वती " पभरथ पद्मावती" वाल्मीक रक्षिका "
देवानन्द महिमा महाबल जशोजला " गजसेन सेनादेवी" वीरराज भानुमती " | भूमिपाल ऊमादेवी "देवराज | गंगादेवी " सर्वभूति कानिकादेवी" | राजपाल
रूकमणी प्रियमंगला मोहनी किंपुरिषा जयसेना प्रियसेना जयावती विजया नंदलेना विमला विजयावती लीलावती सुगन्धा गंधसेना भद्रावती मोहनी राजसेना सुरिकांता पद्मावती रत्नावती
वितशोका विजया पुंडरिगिणी सुसीमा वितशोका विजया पुंडरिगिणी सुसीमा वितशोका विजया पुंडरिगिणी सुसीमा वितशोका विजया
वृषभ
पकमल
सूर्य
हस्ती वृषभ चन्द्र स्वास्तिक
३-पादपीठ सहित स्फटिक रत्न मंडित सिंहासन हो ४ चारों दिशा में ऊपर तीन तीन छत्र हो ५-~-रत्नमय इन्द्रध्वज प्रभु के आगे चले ६-सुवर्णामय नौ कमन जिस पर प्रभु पैर रखकर चले और कमल भी स्वयं बलते रहें ७ मणि सुवर्ण रजित मय तीन गढ़ वाला समवसरण हो ८-प्रभु चौमुख देशना दें जिसमें तीन दिशा देवता प्रतिबिंब रखे ९ --प्रभु से बारह गुणा आशोक वृक्ष जो छत्र घंटा पताक संयुक्त हो १०-मार्ग के कांटा अधोमुख हो ११-प्रभु गमन करे तब सर्व वृक्ष नमन भाव से प्रभु को प्रणाम करे १२-आकश में देव दूधवी बाजती रहे १३-पवन-वायु अनुकूल चले १४-पाक्षी जीव प्रभु को प्रदिक्षण करते जाय १५-सुगन्धी नल वृष्टि हो १६-ढींचण प्रमाणे सुगंधी पुष्प की वृष्टि हो १७-दीक्षा लेने के साद ढाढ़ी मूछ के बाल नहीं बढ़े १८-कम से कम चारों निकाय के एक करोड़ देव प्रभु की सेवा में रहे १९-छोऋतु अनुकूल और अपने २ समय फलवती हो इत्यादि एवं उन्निश अतिशय देवकृत होते हैं १.११-१९ सर्व मिला कर ३४ अतिशय सर्व त थैकर देवों के होते हैं।
१३-तीर्थहरदेव के पुनः चार अतिशय १-आपायापगम अतिशय-विहार क्षेत्र में चारों ओर १२५
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