Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi

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Page 954
________________ आचार्य सिद्धसूरि का जीवन ] [ ओसवाल सं० ६८२ - ६९८ बड़ी चिंता करता था? और उसका मन भी नहीं लगता था। अतः उसने अपनी राजधानी अंगदेश की चम्पानगरी में ले जाना उचित समझा । जब राजा अपनी राजधानी चम्पा नगरी में ले गया तो कूणिक के लघु भ्राता विल्ल कुमार जो कि अपने माता पिता की मौजूदगी में राज के हिस्से के बदले हार हाथी (जिसकी कथा राजा श्रेणिक के जीवन में लिखी गई है) दे दिये थे ! वह भी अपना परिवरादि माल स्टाक और हार हाथी लेकर चम्पानगरी में चला गया । विहल्लकुमार और उसकी रानी हार एवं हस्ती से भली प्रकार ऐश-आराम करने लगे, कभी २ नदी पर जाते और हस्ती के जरिये जल मन्जन ब जल क्रीड़ा करते थे जिसकी प्रशंसा नगर में चारों ओर फैल गई थी । कूणिक की रानी पद्मावती ने वह हाल सुन धार हाथी मंगानें के लिये कूणिक से कहा । पहले तो कूणिक ने इन्कार कर दिया और कहा कि वह भी मेरा छोटा भाई है । माता-पिता का दिया हुआ हार हस्ती लेना ठीक नही है । पर जब रानी ने बहुत आम्ह किया तब कूणिक ने विहल्ल कुमार को राजदूत द्वारा कहलाया कि राज में जो रत्न होता है उसका मालिक राजा ही होता है इस लिये हार हस्ती को भेज दो । इसके उत्तर में विहल्ल कुमार ने कहलाया कि श्रव्वल तो श्राप बृद्ध भ्राता, दूसरे पिता की दी हुई चीज है अतः श्राप को हार-हस्ती लेना नहीं चाहिये । यदि आप ऐसा न कर सके तो हार-हस्ती के बदले में मुझे आधा राज दे दें। पर कूणिक ने इसको मंजूर नह किया और वार वार द्वार हस्ती के लिये तकाजा किया। विइल्ल कुमार ने सोचा कि जिसने पिता को पिंजरे में बंद कर दिया तो मैं क्या विश्वास रख सकता हूँ। वह समय पाकर हार-हस्ती और माल सामान लेकर नगर से निकल वैशाला नगरी के राजा चेटक के ( जो खुद की माता के पिता अपने नाना लगते थे ) शरण में चला गया । जब इस बात की खबर राजा कूणिक को मिली तो कूणिक ने राजा चेटक पर पत्र लिखा कि आप हमारे नानाजी हैं, बुजुर्ग एवं राजनीति के अनुभवी हैं। विल्ल कुमार मेरी बिना आज्ञा हार-हस्ती लेकर आपके यहाँ आया है । आप उसको समझा बुझा कर हार हस्ती के साथ वापिस भेजदें । इस तरह का पत्र लिख कर राजा चेटक के पास भेज दिया । राजा चेटक ने पत्र पढ़ा और जबाब में लिखा कि मेरी दृष्टि में तो जैसे चेलना का पुत्र विहरलकुमार है वैसे तुम परन्तु न्याय की दृष्टि से पहिले तो तुम्हारे मा बाप का दिया हुआ हारहस्ती लेने में शोभा नहीं देता यदि तुम लेना चाहो तो आधा राज देना इन्साफ की बात है । जब यह पत्र राजा कूणिक ने पढ़ा तो बड़ा गुस्सा आया और फौरन लिख दिया कि या तो विल्लकुमार और हारहस्ती को भिजवादो वरना युद्ध करने के लिये तैयार हो जाओ । राजा चेटक न्यायाशील था शरण में आये हुए विद्दल्ल कुमार को वापिस भेजना ठीक न समझा पर कूणिक की अपेक्षा चेटक पास सेना कम होने की वजह से काशी कौशल वगैरा १८ राजाओं को बुला कर सलाह पूछी तो उन्होंने कहा कि विल्लकुमार का पक्ष न्याय एवं सत्य का है अतः यदि युद्ध करना पड़े तो हम आपके साथ हैं । बात ही बात में युद्ध छिड़ गया । कूणिक राजा १० भाइयों व ३३ हजार गम, अश्व, रथ अनगिनती पैदल सेना के साथ तथा राजा चेटक के ५७ हजार गज, अश्व, रथ, और अनगिनती पैदल सेना के साथ युद्धस्थल में आ गये। पहिले दिन के युद्ध में राजा चेटक द्वारा कालीकुमार मारा गया (राजा चेटक को देवी का वरदान था कि राजा का बाण खाली न जाय ) दूसरे दिन के युद्ध में सुकाली, इस प्रकार दस दिन में दस भाई मर गये अब तो कूणिक अकेला रह गया । इस हालत में कूणिक ने अष्टम तप कर देवता की आराधना हार हाथी के लिये भयंकर युद्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only ७२५ www.jainelibrary.org

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