Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi

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Page 959
________________ वि० सं० २८२-२९८ ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास जैन प्रन्थों में राजा उदाई की मृत्यु एक दुष्ट के षडयंत्र द्वारा खून से हुइ लिखी है। राजा उदाई के पुत्र नहीं था अतः राजा उदाई के साथ शिशुनाग वंश का अंत हो गया और मगद की गद्दी पर राजा नंद का अधिकार हो गया था पर शाह त्रिभुवनदास लेहरचन्द बड़ौदा वाले ने अपने प्राचीन भारतवर्ष पुस्तक पहला पृष्ठ ३०७ पर लिखा है कि दुष्ठ व्यक्ति के षडयंत्र द्वारा मृत्यु शिशुनाग वंशी राजा उदाई की नहीं हुई थी और वह अपुत्रीय भी नहीं पर उसके दो पुत्र थे अनुरुद्ध और मुंदा इन दोनों पुत्रों ने मगद की गद्दी पर आठ वर्ष तक शासन किया था तब वात्सपति राजा उदाई अपुत्रीय था और उसकी मृत्यु एक षड्यंत्र एवं खून द्वारा हुई जबकि शाह का कहना है कि मगदेश्वर राजा उदाई के मृत्यु के बाद उदाई के पुत्र रुद्ध ने मगद पर आठ वर्ष तक शासन किया । और राजा श्रनुरुद्ध ने सिंहलद्वीप में भगवान महावीर का एक स्तूप भी बनवाया था । और भी उसने धार्मिक कार्य किये थे । जव इस प्रकार राजा धर्म की उन्नति करने वाले होते हैं तभी तो धर्म की प्रभावना होती है । भगद के सिंहासन पर शिशुनाग वंश के अन्तिम राज्य राजा मुंदा का हुआ और इसके ही समय में मगद देश का राज कमजोर हो गया था क्योंकि राजा मुंदा राज की सार संभाल की अपेक्षा भोग विलास में अधिक रक्त विलासी हो गया था । कहा जाता है कि जब इसकी रानी की मृत्यु हो गई थी तब से वह रानी के प्रेम में इतना मुग्ध हो गया कि रानी की लाश तक को नहीं उठाने दिया । इस हालत में मगद जैसे साम्राज्य का रक्षण कैसे हो सकता है ? यही कारण कि बहुत राजा स्वतंत्र बन गये। कई आदमियों को जो बहुत विश्वसनीय थे जो सूबों पर रखे गये थे वो भी स्वतंत्र होकर वहां के शासक बन गये । अर्थात् सुंदा समय मगद साम्राज्य छिन्न भिन्न हो गया । इस हालत में राजा का सैनापति शिशुनागवंशी नागदशक था वह मगद के सिंहासन पर राजा बनकर राज सत्ता अपने हाथ में ले ली । राजा मुंदा के साथ शिशुनाग वंश का अन्त होगया । इस घटना का समय भगवान महावीर निर्वाण के ६०वर्ष बाद का था । अर्थात् ई० सं० पूर्व ४६७ वर्ष का था। यहां तक शिशुनाग वंश के १० राजा हुए और इनका समय ३३३ वर्ष जो वायु पुराण में लिखे हुआ हैं नागदशक के सिक्कों पर नाग (सर्प) का चिन्ह होने से वह भी नागवंश का ही था ऐसा निर्णय सहज ही में हो सकता है । सेनापति नागदशक भी शिशुनाग वंश का ही वीर था पर यह लघु शाखा का होने से इसको नाग वंशी कहते थे। जब नागदशक ने मगद का साम्राज्य अपने अधीन कर लिया। तब से आपको नंदिवर्धन के नाम से पुकारा जाने लगा । और इसके पीछे जितने राजा मगद की गद्दी पर बैठे थे वे सब नंद वंश के नाम से ओलखाये जाने लगे । १ - नंदवर्धन - यह गजा उदाई के शासन समय से ही सेनापति के पद पर नियुक्त था और राजा उदाई - अनुरुद्ध ने जो देश विजय किये थे इसमें मुख्यतया सेनापति नागदशक की सहायता थी अतः नागदशक एक वीर पराक्रमी योद्धा था जब मगदपति बना तो राजा मुंदा के शासन में फैली हुई अराजकत की व्यवस्था करना सबसे पहले हाथ में लिया । और जो जो राजा स्वतंत्र हो गये फिर वापिस मगद की सत्ता में मिला लिया और मगद की राज व्यवस्था ठीक कर ली । राजा नंदवर्धन के मंत्रियों में मुख्य मंत्री कल्पक था वह ब्राह्मण वर्ण का होने पर भी कट्टर जैन धर्मोपासक था । ७३० Jain Education International शिशुनागवंश के बाद नंदवंश का राज - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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