Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi

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Page 964
________________ आचार्य सिद्धसरि का जीवन ] [ोसवाल सं० ६८२-६९८ मगदपति राजा विम्बसार ( श्रोणिक ) के पुत्र एवं मन्त्री अभयकुमार के साथ भी चण्डप्रद्योतन राजा का सम्बन्ध था जिसके लिये जैन शास्त्रों में एक कथा लिखी गई है कि ए समय राजा चण्ड मगद की गजधानी राजगृह नगर पर सैना लेकर चढ़ आया था पर राजा श्रेणिक ने सोचा कि विना ही कारण युद्ध कर लाखों मनुष्यों का संहार करना इसकी अपेक्षा तो राजा चण्ड विना युद्ध किया ही चला जाय तो अच्छा है दूसरा राजा श्रोणिक और चण्ड आपस में साढू भी होते थे । और उस समय अभयकुमार राजा श्रोणिक कों परिणाम करने को आया था पित को चिन्तातुर देख कर कारण पूछा तो गजा ने चण्ड का हाल कहा इस पर अभयकुमार ने विश्वास दिलाया कि आप इस बात की चिन्ता न करे मैं ऐसा ही करूँग कि राजा चण्ड बिना युद्ध किये चला जायगा । राजा श्रेणिक को अभयकुमार के कहने पर सदा श्विास था कारण अभयकुमार बड़ा ही बुद्धि कुशल था। अभयकुमार अपनी बुद्धि चातुर्य से कुच्छ सुवर्णादि द्रव्य लेजा कर गुप्त पने नगर के बाहर और राजा चण्ड की सेना के पास भूमि ये दाट दिया जिसकी किसी को खबर न पड़ी बाद कुमार राजा चण्ड के पास गया और युद्ध सम्बन्धी बातें करनी शुरू की और कहा कि आप हमारे मासाजी लगते हो अतः मैं आपके हित की बात कहने को आया हूँ और वह यह है कि आपकी सेना के मुख्य योद्धे राजा श्रेणिक से रिश्वत लेकर उनके हो गये हैं । शायद आपको धोखा देकर श्रापका अहित न कर डाले मैं आपका शुभचिन्तक हूँ अतः आपको चेता दिया है पर राजा चण्ड को विश्वास नहीं हुआ तव अभयकुमार राजा को साथ लेजा कर पास ही भूमि के अन्दर दाटा हुआ द्रव्य दिखाया जिससे राजा चण्ड को विश्वास हो गया और रात्रि में हस्ती पर सवार होकर एवं भाग कर उज्जैन आ गया और अपने योद्धाओं पर गुस्सा कर उनके लिये दरबार में आने की सख्त मनाई करदी। उधर जप युद्ध का समय हुमा और देखा तो राजा चण्ड का पता नहीं लगा बस बिना नायक की सेना क्या कर सकती है वे योद्धा भी अपनी सेना लेकर उज्जैन की ओर चल धरा । जब उज्जैन आकर राज सभा में जाने लगे तो उन सब को बाहर ही रोक दिये। जब उन लोगों ने राजा से कहलाया कि भाग कर तो श्राप आये और गुस्सा हमारे पर क्यों ? राजा ने कहलाया कि अरे नीच योद्धाओ तुम हमारा नमक खाते हुए भी राजा श्रेणिक से रिश्वत लेकर उनसे मिल गये । क्या तुम मुंह दिखाने लायक हो। इस पर योद्धाओं ने विचार किया कि इसमें हो या न हो मन्त्री अभयकुमार की कूटनीति है अत: उन्होंने राजा से कहलाया कि एक बार हमारी बात तो सुन लीजिये। इस पर राजा ने योद्धाओं को राजसभा में बुलवा कर उनकी सब बातें सुनी जिससे राजा को ज्ञान हुआ कि यह सब अभ कुमार का ही प्रपंच था। मैं उसके धोखा में आकर हाथ में आया सुअवसर गमा दिया इत्यादि । कथा विस्तृत है। श्रावती प्रदेश में जैसे उज्जैन का महत्व है वैसा ही विदिशानगरी का भी महत्व है इतना ही क्यों पर विदिशानगरी जैनों का एक तीर्थधाम था आचार्य महोगिरि और सुहस्ती एक समय विदिशा की यात्रार्थ पधारे थे और कई स्थानों पर तो यह भी लिखा मिलता है कि आचार्य सुहस्ती सूर ने राजा सम्प्रतिको विदिशानगरी में ही धर्म का उपदेश देकर जैन बनाया था इससे पाया जाता है कि राजा सम्प्रति ने अपने राज के समय उज्जैननगरी की राजधानी छोड़ विदिशानगरी में अपनी राजधानी बनाई होगी तब ही तो सुहस्ती सूरि ने विदिशा में राजा को प्रतिबोध दिया था इतना ही क्यों सम्राट अशोक के समय भी विदिशा धन धान से समृद्ध और बहुत से धनाढय ब्यापारी वहाँ व्यापार भी करते थे खुद अशोक एक व्यापारी की कन्या मंत्री अभयकुमार की बुद्धि चातुर्य ७३५ wwwwwwnnnnnnniwwwrnNARARMINARIAAAAnnnnnnn Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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